The problem is not that left has been trapped in the vicious cycle of debate and counter debate, rather the problem for this debate-master (or twister?) group is that perhaps in the first time of the history its hippocrassy is being exposed. How undemocratic they are, can be understood by the foreword in the veteran Hindi writer Uday Prakash’ book “ Peeli chhatari bali ladki” in which Rajendra Yadav calls him one day and warns ..” Don’t be undemocratic to behave like Left whenever find any criticism.” This is the statement of a person who is understood to be the strongest propagator of the leftist ideas. Name any of the left ruled countries in the world where they have let the opposition exist? .And same is the case in the West Bengal…which has been converted into a cage covered by iron curtain. A student from Bihar knows more about Tamil Nadu than West Bengal…Does this have any specific reason?
Second thing that is more important, is that what is the Lefts’ view on Nationalism? Why leftist are always afraid of this word? As far as I know Left does not recognize any nationalist feeling, for them it is the International brotherhood of poors which is more important and the Leftist party of each country is just the affiliate of that supreme invisible power. Have you ever seen the Indian communist Party? No, it is or will be always a Communist Party of India or Communist Party of China etc. How cleaver are they, they will always confuse you with the term such as secularism and socialism. But have you ever tried to know that in Kerala Left plays the Hindu card often as Muslims or Christians always vote for Congress-allaince. And as far as socialism is concernd have You heard about Chandan Basu? Why in a secular country, Taslima is forced to withdraw the content of her novel? Has the self-made secualarists got the courage to answer this question? No boss, they will not because their whole politics is based on propaganda and Character assassination.
1 comment:
वॉट एन आईडिया सर जी..
पीली पगड़ी पहने दाढीमय अभिषेक के पीछे निहोरे करते, टीवी स्क्रीन पर खींसे निपोरते.. एक चमचानुमा इंसान तो आपने देखा ही होगा। अमिताभनंदन के आइडिए पर वह कहते हैं- वॉट एन आईडिया सर जी..। यह चरित्र हमारे समाज का आईना है। चमचा। मक्खनबाज़। .... चलिए मुखिया जी के नायाब आइडिया पर बात करते हैँ। सचमुच शानदार आइडिया है। कोई आगे से बुरमी ( बिहार, यूपी के लोग पढ़े- कुरमी, ) और बूमिहार (पढ़ें भूमिहार..) नहीं होगा। लोग अब से अपने नंबरों से पहचाने जाने जाएंगे.. । स्वागत है। ऐसा एड दिमाग़ में लाने वालों स्वागत है।
लेकिन कुछ प्रश्न सचमुच दिमाग़ को मथते हैं। मसलन, लोगों के नाम नंबर होंगे, उनकी जाति भी नहीं होगी। लेकिन उनका संप्रदाय तो फिर भी बना रहेगा। आइडिया, एयरटेल, टाटा इंडिकॉम, वोडाफोन जैसे संप्रदाय उभर आएंगे। जिसका नेटवर्क जितना मज़बूत, उसका उतना ज़्यादा ज़ोर . उसकी सत्ता में उतनी भागीदारी।
फिर झगड़े होंगे... नंबर (नाम) परिवर्तन के। टेलाकॉलर्स दिन-रात , सुबह-शाम आपको फोन किया करेंगे.. सर मैं अमुक संप्रदाय की ओर से बोल रही हूं क्या आपको हमारा संप्रदाय जॉइन करना है? आपको १०० दिनों का टॉक टाइम मुफ्त दिया जाएगा. सलोगद धडल्ले से अपना धर्म बदलने लगेंगे। फिर आइडिया से लेकर वोडाफोन और एयरटेल तक में कोई शाही इमाम और कोई तोगड़िया पैदा होगा. मोदी भी हो सकते हैं।
किसी खास नंबरों को लेकर नंदीग्राम जैसा संग्राम भी हो सकता है। खास नंबर सिर्फ सत्तापुत्रों और नजदीकी दल्लों को मिलेंगे। दलितों, कमज़ोरों और निचले तबके के लोगों को ऐसे नंबर ही मिला करेंगे जो आसानी से याद ही न हों. इसके अलावा कई सामाजिक समस्याएं भी पैदा होंगी। मसलन, नंबर से कोई भेदभाव न भी हो, तो आप किस ब्रांड का, किस मॉडल का मोबाईल इस्तेमाल करते हैं, वह आपकी आर्थिक कलई खोल देगा। यह देखा जाएगा कि आपका मोबाईल कैमरे वाला है या नहीं, उसके क्या-क्या फीचर्स हैं। ४-५ हज़ार से कम कीमत वाला सेट इस्तेमाल करने वाला हंसी का पात्र माना जाएगा और फिर समरसता का एक और सिद्धांत हमेशा की तरह ध्वस्त हो जाएगा।
(यह एक शंकालु के सवाल हैं, दिल पर मत लें).. गुस्ताख़
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