Sunday, December 23, 2007

क्या हम वाकई कुकुरमुत्ता जेनरेशन हैं ?

- विवेक सत्य मित्रम

बहुत दिनों बाद अपने गाँव गया था। ज़मानिया तहसील पर महफिल जमी थी। बाबूजी के एक करीबी मित्र ने एक बार फिर वही राग अलापा जो वो पिछले कई सालों से अलापते आ रहे हैं। बेहद जोरदार तरीके से कहा कि आज कि जेनरेशन ' कुकुरमुत्ता जेनरेशन ' है। इसके बाद करीब दस मिनट तक युवा पीढ़ी को गरियाने का कार्यक्रम चला। लेकिन जब बात बर्दाश्त से बाहर हो गयी। मुझे लगने लगा कि दरअसल ये सीधे तौर पर मुझे गली दी जा रही है तो मैंने अपने तेवर में कहा कि महाशय ये जेनरेशन आपकी जेनरेशन से कहीं ज्यादा प्रोग्रेसिव, लिबरल, ट्रांस्परेंट और काबिल है। ये आपकी जेनरेशन से कम से कम सौ गुना बेहतर है। बात आयी गयी हो गयी, लेकिन कुकुरमुत्ता शब्द रह रह कर जेहन में आ जाता है और मैं सोच में पद जाता हूँ कि कहीं मैंने महज जवाब देने के लिए तो भरी भरकम बातें नहीं कर दीं..क्या मेरी जेनरेशन वाकई कुकुरमुत्ते कि तरह कमज़ोर है..कुछ भी ठोस ढंग से कहना मुश्किल लग रह है....खैर, ये बात इसलिए लिख दी कि समझ नहीं पा रहा हूँ कि आख़िर एक पीढ़ी जिसके कन्धों ने हमारा बोझ उठाया है..उसे हमें कुकुरमुत्ता कहने में कोई तकलीफ क्यों नहीं होती....? सवाल गंभीर है।

1 comment:

संजय शर्मा said...

हम बाबूजी के दोस्त से कई मायने मे कमजोर हैं . हालाकि इस कमजोरी का शिलान्यास उनके ही द्वारा अनजाने मे हो गया लगता है . उनलोगों ने समस्या से न लड़ कर समझोता के तहत ग़लत निर्णय लिया . हम सब उनसब से ज्यादा तेज कहलाने के होड़ मे .आगे ही देखते गए .वे लोग एक एक कोना पर नज़र रखते थे .हम केवल अपना ही देख रहे है फ़िर भी बहुत कुछ छुट ही जाता है . पुरातन को ललकारना हमने अपने फैशन मे शामिल
किया .पुरातन नूतन को कैसे सराहे जबकि दोनों एक दूसरे के विपरीतार्थक हैं.

मुदा सुंदर और आज इसी का रस्सा कशी है . और विचार आयें . मैं भी इंतज़ार मे रहूंगा .
हम बाबूजी के दोस्त से कई मायने मे कमजोर हैं . हालाकि इस कमजोरी का शिलान्यास उनके ही द्वारा अनजाने मे हो गया लगता है . उनलोगों ने समस्या से न लड़ कर समझोता के तहत ग़लत निर्णय लिया . हम सब उनसब से ज्यादा तेज कहलाने के होड़ मे .आगे ही देखते गए .वे लोग एक एक कोना पर नज़र रखते थे .हम केवल अपना ही देख रहे है फ़िर भी बहुत कुछ छुट ही जाता है . पुरातन को ललकारना हमने अपने फैशन मे शामिल
किया .पुरातन नूतन को कैसे सराहे जबकि दोनों एक दूसरे के विपरीतार्थक हैं.

मुदा सुंदर और आज इसी का रस्सा कशी है . और विचार आयें . मैं भी इंतज़ार मे रहूंगा .