Friday, December 14, 2007

न्यायपालिका बनाम न्यायपालिका

- राजीव कुमार
( अच्छा लग रहा है कि ऑफ द रिकॉर्ड पर लिखने वालों की तादाद बढ़ रही है। राजीव यूं तो मेरे बैचमेट रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार है जब इनका लिखा कुछ पढ़ने को मिल रहा है। बहरहाल वो टीवी टुडे ग्रुप के न्यूज चैनल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उम्मीद है आगे भी उनकी भागीदारी कायम रहेगी। -विवेक सत्य मित्रम् )
लीजिए, पहले तो न्यायपालिका पर कार्यपालिका अपने अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण का आरोप लगाया करती थी लेकिन अब तो भाई न्यायपालिका के भीतर ही जंग झिड़ती नजर आ रही है। जैसा कि आपने अखबारों में पढ़ा और टीवी पर सुना होगा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एके माथुर और मार्कंडेय काटजू की पीठ ने कहा था कि न्यायपालिका की सक्रियता के नाम पर कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करना असंवैधानिक है। लेकिन अब खुद मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका की सक्रियता पर हाल में की गई दो जजों की पीठ की टिप्पणी से बँधा नहीं है। अब भाई ऐसा नहीं तो कम से कम सोच-विचार कर ऐसे फैसले सुनाए जाने चाहिए न, पब्लिक में भ्रम क्यों फैलाते हैं। ये तो सब जानते थे कि जज कानून बना कर उसे लागू नहीं करवा सकते, तो फैसले में नई बात क्या थी। थी न नई बात लेकिन उसे तो न्यायपालिका के प्रधान ने ही खारिज कर दिया। लेकिन थोड़े दिनों के लिए ही सही जनता के प्रतिनिधि काफी खुश हुए...अफसोस उनकी खुशी अब काफुर हो गई। लेकिन न्यायपालिका के इस विवादास्पद फैसले पर कार्यपालिका चुटकी लेने से पीछे नहीं रहेगी....

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