Tuesday, November 10, 2009

ये शीला तूने क्या किया...




दो तीन दिन पहले दिल्ली की बसो में सफर करते हुए अचानक सुनने को मिला कि अब पांच रूपये की जगह दस रूपये का टिकट लगेगा....भाई मैंने पूछा क्या बात है तो जवाब मिला कि शीला का एलान है टिकट तो लगेगा ही....भाई मैंने फिर पूछा कि क्या इसीलिये सरकार बनवाया गया था...फिर जवाब आया टिकट लेले ...कानून ना समझा...खैर किसी तरह मन मसोस कर पैसा निकाला और बरबस मुंह से निकल आया कि ये शीला तूने क्या किया.........
डीटीसी बसो का किराया बढ़ाने के पीछे शीला की दलील थी कि हर महीने डीटीसी घाटे में जा रही थी .....इसलिये किराया बढ़ाना लाजिमी है...भाई हम पूछते है कि पचास परसेन्ट बढ़ाना तो लाजिमी नहीं था...एक रूपया बढ़ाओ दो रूपया बढ़ाओ एक साथ पांच रूपया बढ़ाने के पीछे क्या वजह थी....खैर जहां पंद्रह से बीस रूपये में ऑफिस पहुंचा करते थे अब वो दायरा पच्चीस से तीस रूपये तक पहुंच गया है....दिल्ली में बढ़ रही महंगाई के पीछे कॉमनवेल्थ गेम में हुए खर्च को जोड़ के देखा जा रहा है ...लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल ये निकल के आ रहा है कि आखिर हम सरकार चुनते क्यों है....क्या इसीलिये कि जब भी जहां पर ज्यादा खर्च हो वहां पर भरपाई के लिये हर चीज को मंहगी कर दे....आखिर इसी दिन के लिये सरकार को चुना जाता है....नब्बे रूपये दाल तीस का आलू चालीस की चीनी... आटे का भाव पता नही कहां जा पहुंचा हैं.....दिल्ली में इतनी आसानी से मंहगाई को सरकार बढ़ा देती है कोई विरोध करने को आगे आता ही नहीं क्या दिल्ली वालो को सांप सूघ गया है....या फिर विपक्ष नकारा हो गया है......
मैट्रो का किराया अभी बाकी है दोस्त..........
आपका विवेक

Friday, November 6, 2009

चले गये दद्दा...


हिन्दी पत्रकारिता के पितामह प्रभाष जोशी हमारे बीच में नहीं है..................

खबर सुनते ही लगा कि धरती डोलने लगी...भूकंप आ गया....ऐसा लगा कि हिन्दी पत्रकारिता अब खत्म हो गयी.....

इलाहाबाद से दिल्ली चला था तो एक इच्छा थी कि लेखनी के इस दद्दा से मिलू...अब ये इच्छा कभी पूरी नहीं होगी । क्रिकेट के प्रति उनकी दीवानगी का आलम ये था कि भारत का कोई मैच वो मिस नही करते थे। शायद ये दीवानगी ही उनको इस दुनिया से रुखसत कर गयी...जोशी जी सचिन के महान प्रशसंको में से एक थे। उनकी एक आर्टिकिल याद आ रही है..... जब सचिन नर्वस नाइन्टी के शिकार होते थे तब उन्होने एक लेख लिखा था....उसमें अपनी भावनाओ को पूरा उकेर कर लिख दिया था...उन्होनें लिखा था जब सचिन अस्सी या नब्बे के करीब पहुंचते थे तब मै अपनी टीवी बंद कर दिया करता था...शायद उनका शतक बन जाये...सचिन के प्रति उनकी अल्हड़ता इतनी थी कि वो ऐसे टोटका कर दिया करते थे....अगर वो आज होते तो सचिन के सत्रह हजार रन बनाने पर ऐसा आर्टिकिल लिखते कि मन बाग-बाग हो जाता। जोशी जी आज हमारे बीच नही है लेकिन उनकी लेखनी उनका आदर्श उनका कलम आंदोलन सब कुछ हमारे जेहन में अमर रहेगा। बाकी उनके बारे में और लिखने कि हिम्मत नहीं हो रही क्योंकि मन बहुत भावुक हो रहा है...
आपका
विवेक

Tuesday, September 1, 2009

फुटबॉल का दर्द...



फुटबॉल एक ऐसा खेल जिसको पैर से खेला जाता है.... इसको लात से भी मारा जाता है..... शायद क्रिकेट के क्रेज से इसको हर कोई लात से ही मार रहा है। इस खेल में खिलाडी़ जितना भी फुटबॉल को लात मारता है खेल में उतना ही मजा आता है। लेकिन फेडरेशन और प्रशासन का उदासीन रवैया के चलते ये खेल आज हासिये पर है। फुटबॉल को लात पड़ रहा है आज के भ्रष्ट प्रशासन का..... साथ में फेडरेशन का जहां पर देखिये भ्रष्टाचार ही इस खेल पर हावी..... आखिरकार राजनीतिक हलके के लोग क्यों इन खेलो पर कुदृष्टि रखे है.....क्यों संसद के गलियारे में चिल्ल-पों करने वाले राजनेता खेल के मैदान पर अपनी हेकड़ी निकालते है....जवाब ये निकल के आता है फेडरेशन में आने वाले सरकारी पैसा इन राजनेताओं को अपनी ओर खींचता है। खैर इस फुटबॉल को जिसको भूटिया का नेतृत्व दूसरी बार सरताज बनाया है उसका हाल बेहाल हो गया है। प्रफुल्ल पटेल जो कि एक राजनेता है उनका नेतृत्व फेडरेशन में एक राजनेता से इतर कुछ भी नहीं है। भारत में यहीं नेहरू कप है जो १९९७ से २००७ तक हासिये पर था....खैर ओएनजीसी की मदद कहे या फिर सरकार का शिगूफा.....नेहरू कप फिर से शुरू हुआ....और भूटिया ने दूसरी बार सीरिया को हरा कर कप पर कब्जा किया.....भारत में राजनीति हर गली और कुचे में देखी और समझी जा सकती है। उसका परिणाम खेल के मैदान में भी देखने को मिलता है..... किसी भी फेडरेशन की बात करे तो हर जगह इन राजनेताओं की एक अच्छी खासी जमात देखने को मिल जायेगी....लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम की दूसरी जीत को देख के लगता है कि इसको एक संजीवनी की जरूरत है।


आपका


विवेक

Thursday, July 23, 2009

भारत में भारतीय खेलों की उपेक्षा...

राष्ट्रीय खेल हॉकी का एक बार फिर मजाक उड़ाया गया। स्पोर्ट्स एथोरेटी ऑफ इंडिया ने अपने गैरजिम्मेदाराना रवैया पेश किया। सबसे मजेदार बात इ है कि ये बार-बार मजाक स्पोर्ट्स एथारिटी के ओर से किया गया। दरअसल पूरा मामला ये है कि भारतीय महिला और पुरूष टीम पुणे से दिल्ली आ रहे थे, जिनको लेने के लिये भारतीय खेल प्राधिकरण खिलाड़ियो के लिये होटल में बस नहीं भेजा.. वो खिलाड़ी लोग अपने द्वारा किये गये साधन से होटल से गतंव्य स्थान तक पहुंचे। खैर ये कोई नया मामला नहीं है जब इस तरह से भारतीय हॉकी खिलाड़ियो के साथ बदसलूकी की गयी हो। यहां पर सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। जब राष्ट्रीय खेल के साथ ऐसा किया जा सकता है तो किसी भी खेल के साथ ऐसा हो सकता है...भारत में तीरंदाजी हो..कबड्डी हो या फिर कोई भी खेल....जिनका विश्व पटल पर महत्व होता है..इन खेलों के साथ हमेशा से नाइंसाफी ही हुई है...क्रिकेट के इस देश में कभी हॉकी का वर्चस्व होता था...जमाना बदला लोग बदले बदल गया खेल का स्वाद..जहां भारत के गांवो में हॉकी बांस के डंडे से खेला जाता था..आज उसकी जगह लकड़ी का बल्ला ले लिया है..इस मामले पर चिंतित होना लाजिमी है...क्योंकि आने वाले ओलंपिक में स्वर्ण...कांस्य ..रजत जैसे पदक इन्ही खेलो से मिलते है... चीन ...अमेरिका..जापान जैसे देश अपने यहां इस तरीके के खेलों पर पूरा ध्यान देते है...जिससे कभी भी ओलंपिक में उन देशों का स्थान सोना और चांदी लाने में नंबर एक पर होता है।
आपका
विवेक

Monday, May 25, 2009

जीत गया डेक्कन .....


आखिरकार आईपीएल का महाजंग ख़त्म हो गया है... और डेक्कन चार्जर्स को छ रन से जीत मिल गई है । बंगलोर रायल को हरा के डेक्कन ने एक इतिहास कायम कर दिया है । गौर करने वाली बात ये है की यही दोनों टीमे थी जो पिछले बार सबसे कमजोर टीम रही थी । जम्बो की कप्तानी कहे की गीली का आत्मविश्वास दोनों ही तारीफ की चोटी पर है । रोमांचक मुकाबले में मेरे साथ - साथ मेरी पुरी टीम आकलन लगा रही थी की कौन जीतेगा कौन हारेगा लेकिन परिणाम तक कोई नही पहुच पा रहा था । भाई आईपीएल है हर गेंद पर करिश्मा कुछ भी हो सकता है ? लेकिन हुआ ही कुछ ऐसा सब कुछ बढ़िया चल रहा था लेकिन लेकिन 15वें ओवर में सायमंड्स ने दो गेंदों पर रॉस टेलर और विराट कोहली को आउट कर दिया.... बस डेक्कन जीत की ओर बढ़ता चलता गया । पुरे मैच में जम्बो के फिरकी का अंदाज देखने लायक था कुम्बले के हाथ में कुल चार विकेट था ... उनके ही द्वारा लिए गए विकेट से डेक्कन टीम बैकफुट पर आ गई थी । लेकिन अन्तिम समय पर डेक्कन टीम को ही जीत मिली ..... अब आगे टी ट्वेंटी वर्ल्ड कप की रणनीति बनानी है ।
आपका दोस्त

विवेक

Saturday, May 23, 2009

आईपीएल में मेरी भूमिका....

इंडियन प्रीमियर लीग को कोई इंडियन पैसा लीग कहा तो कोई इंडियन लव लीग...... लेकिन हम कहते है कि ये एक बड़ा एक्सपोजर है उन खिलाड़ियों के लिये जिनको नेशनल टीम में चांस नही मिलता। ये एक्सपोजर है उन खिलाड़ियों को जो छोटे- छोटे शहरों से आते है। हमारे देश में क्रिकेट का इतना क्रेज है कि लोग क्रिकेटरो को भगवान की तरह भी है कहीं- कहीं पूंजते है। दोस्तो आईपीएल अब आगाज से अंजाम की ओर है तो कुछ तसल्ली हो रही है साथ में कुछ फुर्सत का एहसास.... स्पोर्ट्स बीट पर तो यही सब खबर रही है कि .... कौन जीत रहा है कौन हार रहा है.... फाइनल की जंग में कौन जीतेगा कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन कुछ अप्रत्याशित सा ही परिणाम आयेगा। खैर मुझे क्या लेना है हम तो पत्रकार है जो भी होगा खबर निकालेंगे, आईपीएल के बाद ही टी ट्वेन्टी विश्व कप शुरू होने वाला है जिसमें भी हमें जूझना ही होगा ... हां एक बात और गौर करने वाली है कि इस बार मंहगे खिलाड़ियों की एक ना चली.... चले वही जो सस्ते थे या फिर वो जिनका नाम कम था, अभी डेक्कन और बैंगलोर के जंग में मनीष पांडे जैसे खिलाड़ीयों का शतक इस बात का गवाह है, साथ में कामरान खान अभिषेक नायर भी इस फेहरिस्त को लंबा बढ़ाते है। खबरिया चैनल की एक ख़ास बात ये होती है कि क्रिकेट के खबर को चटखारा लेकर ही दिखाते है.... हम भी वही करते है भाई टीआरपी का जो सवाल है... चलिये आईपीएल की खबर करके मजा खूब आया...भाई पूरे महीने नाइट शिफ्ट काम करके अब दिन में काम करने का मजा ही कुछ और है......

आपका
विवेक

Friday, May 22, 2009

मनमोहन केबिनेट का एक विश्लेषण

मनमोहन सरकार की दूसरी पारी में 19 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है जिसमें अनुभव और उनके समाजिक पृष्ठभूमि का पूरा ख्याल रखा गया है। मंत्रिमंडल में कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और अबिका सोनी को पदोन्नति देकर केबिनेट का दर्जा दिया गया है जबकि अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज को इसबार कोई जगह नहीं मिली है।


मनमोहन की इस कैबिनेट में शायद हाल के दिनों में पहली बार कांग्रेस के कोटे से चार दलित नेताओं को केबिनेट मंत्री बनाया गया है। जिन दलित नेताओं को केबिनेट मंत्री बनाया गया है उनमें सुशील कुमार शिन्दे, बीरप्पा मोईली,मीरा कुमार और वायलार रवि का नाम शामिल है जबकि पिछड़े वर्ग से चार और अल्पसंख्यकों से दो को(गुलाम नबी आजाद और ए के एंटोनी) अभी तक मंत्री बनाया गया है।

केबिनेट में तीन महिलाओं को जगह दी गई है जिनमें से एक ब्राह्मण, एक पिछड़ा और एक दलित है। मनमोहन मंत्रिमंडल में कांग्रेस के पुराने वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए चार ब्राह्मणो को भी मंत्री बनाया गया है।

मंत्रिमंडल का अभी विस्तार होना बाकी है और डीएमके, नेशनल कांफ्रेंस और अन्य दलों के मंत्रियों और राज्यमंत्रियों को शपथ दिलाना अभी बाकी है। इसके बाद दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों की संख्या और भी बढ़ने की उम्मीद है।

हलांकि केंद्रीय स्तर पर मंत्रीमंडल के गठन में जातिगत आधार पर नहीं बल्कि संख्यावल और अनुभव को वरीयता दी जाती है लेकिन हिंदुस्तान जैसे देश में जाति और समाजिक पृष्ठभूमि को पूरी तरह नकारना मुश्किल है।

एक बात जो साफ तौर पर उभरकर सामने आ रही है वो ये कि कांग्रेस, बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कमर कस चुकी है। साथ ही वो अपने पुराने आधार दलित, सवर्ण और अल्पसंख्यकों को भी वापस लाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।

दूसरी अहम बात ये कि मंत्रियों के चयन में अनुभव और वरीयता का काफी खयाल रखा गया है जो सुकून की बात है। मनमोहन सरकार की दूसरी पारी में काबिल, बेदाग और गैर-विवादास्पद लोगों को जगह मिलना वाकई उम्मीदें जगाता है।

Saturday, April 18, 2009

तो मामला महज 20 सीटों का है......

लोकसभा चुनाव के लिए भविष्यवाणियों का दौर जारी है। सब अंधेरे में तीर मार रहें है। सर्वे एंजेंसियां फिर वहीं ग़लती दुहराने जा रही है, जो पिछले कई दफा कर चुके है। टीवी चैनल्स तो और भी दिवालिए हैं। शातिर सियासतदान इस बार भी उसका इस्तेमाल कर रहें हैं। प्रधानमंत्री कौन बनेगा इसका सारा जिम्मा ज्योतिषियों को दे दिया गया है। पत्रकार सिर्फ सनसनीखेज़ बयानों के पीछे अपनी प्रतिभा गोबर कर रहे हैं। फिर सवाल ये है कि अंतिम आंकड़ों का एक मोटा-मोटा अंदाज भी क्यों नहीं लग पा रहा?

ये तो पक्की बात है कि सरकार वही बनाएगा जो आंकड़ों के खेल में बीस होगा। अब वो आंकड़ा क्या है ? बहुत पहले तक वो 272 होता था, लेकिन नोटों, स्वार्थों और कलाबाजियों के दौर में वह घटकर लगभग 200 रह गया है। यानी जो भी गठबंधन 200 ले आएगा, सरकार बना लेगा। यहां चकराने की जरुरत बिल्कुल नहीं है। जी हां, 50-60 सीट दोनों ही गठबंधन चुटकी में जुगाड़ लेगी, ये उन्हे पता है। कांग्रेस के लिए वाम और बीजेपी के लिए चंद्राबाबू-जयललिता इतनी सीटें थाली में लेकर बैठी हुईं हैं। हां, मुद्रास्फीति के इस दौर में कीमत कुछ ज्यादा हो सकती है।

अब सवाल ये है कि वो 200 सीटे किसके पास है। सवाल यहां आकर थोड़ा टेढ़ा हो जाता है। पूरे देश में लगभग सवा दो सौ सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की सीधी भिड़ंत हैं इसमें शामिल हैं-हिमाचल(4), उत्तराखंड(4) राजस्थान(25), गुजरात(21) मध्यप्रदेश(29) छत्तीसगढ़(11) कर्नाटक(28) दिल्ली(7) झारखंड (12), महाराष्ट्र (48) असम(14), पंजाब(13), हरियाणा(10), गोवा(2) अरुणाचल प्रदेश(2), और इस भिड़ंत में भाजपा बीस दिख रही है। कहने का मतलब ये कि भाजपा यहां से तकरीबन 120 से 130 सीटें जीत सकती है। इसके आलावे बिहार(40), यूपी(80) और उड़ीसा(21) की वो 140 सीटें हैं जहां भाजपा कमजोर नहीं हैं। इसमें भाजपा गठबंधन 50 तक सीटें अपनी झोली में डाल सकती है। और छिटपुट सीटें पार्टी, केरल, तमिलनाडू आंध्रप्रदेश में भी लाएगी। तो बदतरीन हालात में भी पार्टी 180 सीटों से ऊपर है। हलांकि अभी भी वो 200 से नीचे है लेकिन नजदीक दिखती है।

अब जरा कांग्रेस के आंकड़ों पर गौर करें। सबसे ऊपर के सवा दो सौ सीटों में कांग्रेस के पास पाने को ज्यादा नहीं है। जो उम्मीद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात में पार्टी ने पाल रखी थी, उसमें भाजपा ने अपने तमाम ढ़ीले नट-वोल्ट कस दिए हैं। राजस्थान और दिल्ली को लेकर पार्टी खुशफहमी पाल सकती है, लेकिन भाजपा ने बड़ी तेजी से डेमेज कंट्रोल किया है। उसकी विधानसभा में हार आपसी कलह से ज्यादा, कांग्रेस की काबिलियत से कम हुई थी। एक निर्मम समीक्षा यह भी कहता है कि कांग्रेस खुद 100 सीट जीतने की हालत में नहीं है,जबकि यूपीए जो कि कागजों पर ही बचा है, 150 पर अटक सकता है।

कांग्रेस की उम्मीदें उड़ीसा और बंगाल और केरल से है। बंगाल और केरल में तो वह तरक्की पर है लेकिन उड़ीसा में भाजपा कमजोर नहीं। उसने अपना साम्प्रदायिक होमवर्क करके काफी सोच समझकर नवीन पटनायक से पल्ला झाड़ा है। भाजपा वहां इस हालात में है कि वो सूबे को अगला कर्नाटक बनाने की राह पर है। दो-तीन चुनावों में खंडित जनादेश-और फिर सूबे पर कब्जा भाजपा की रणनीति है। चुनाव के बाद नवीन पटनायक भाजपा के सबसे विश्वस्त सहयोगी बनने को फिर से अभिशप्त हो सकते हैं।

अब भाजपा को जो 20-30 सीटों की कमी महसूस हो रही है उसे वो आक्रामक चुनाव प्रचारों से पाटना चाहती है। पार्टी का वार रुम कांग्रेस से बेहतर है। टीवी चैनल से लेकर वेबसाईट तक पर भाजपा कांग्रेस पर भारी है। उसके पास प्रचारकों की एक सीरीज है जबकि कांग्रेस के पास महज सोनिया-राहुल हैं। हलांकि मुद्दे, संसाधन और हालात कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा थे, लेकिन पार्टी उसका फायदा नहीं उठा पा रही। रोजगार गारंटी योजना, किसानों की कर्ज़ माफी, दोपहर का भोजन, सर्व शिक्षा अभियान और ग्रामीण विद्युतीकरण को कांग्रेस मतदाताओं को बेच नहीं पा रही।

दूसरी तरफ भाजपा चाहती है कि चुनाव ध्रुवीकृत हो। वो चाहती है कि बीजेपी खुद मुद्दा बन जाए। इसमें आडवाणी की टीम सफल दिख रही है। पहले वरुण गांधी का बयान, फिर आडवाणी का मनमोहन को डिवेट की चुनौती, फिर मोदी का बुढ़िया-गुड़िया प्रकरण बीजेपी की शातिर चाल है, जिसमें कांग्रेस फंसती जा रही है। खंडित जनादेश कांग्रेस के पक्ष में जाएगा, जबकि ध्रुवीकृत जनादेश भाजपा की जागीर है। भाजपा इसी चक्कर में है। तो मामला अब महज 20 सीटों का रह गया है।

Friday, April 10, 2009

जुते का साइड इफेक्ट ...




जनाब ये बात लिखते हुये ताज्जुब हो रहा है, लेकिन लिखना पड़ रहा है.......कभी समाज में गाली खाने वाला जूता अब राजनीतिक हलके का एक सम्माननीय परिचय हो गया है। समाज में जुते का सम्मान इस कदर बढ़ गया है कि जहां देखो लोग जुता पर जुता दिये जा रहे है। कहीं बुश जुता खा रहे है तो कही चिदंबरम.....अब सिलसिला नवीन जिंदल तक पहुंच गया है। समाज में लोग को गाली देते हुये आप बहुत सुने होगें कि ....अब बोलोगे तो जूते से मारूगां ..... कितना हेय दृष्टि से लोग जूते को देखते थे। अब जूते का रूतबा बढ़ गया है। अब जूते से मार खाने वाले की पब्लिसिटी बढ़ रही है साथ में मारने वाले को एक वर्ग विशेष में अच्छा खासा इज्जत....
दो जूते आपस में बात कर रहे थे कि ....
(पहला जूता यार अब तो हमे इज्जत मिल रही है....कहीं ये नेता लोगो की चाल तो नहीं है?
दुसरा जूता हां यार सही कह रहे हो....ये नेता लोगो की कोई चाल हो सकती है....क्योंकि एक मारता है तो उसको लोग टिकट देने की बात करते है .... तो दूसरी तरफ एक का टिकट कट जाता है....ये नेता लोग अब हमारी कौम में भी दखल देने लगे है......)
दोस्तों अब चलते - चलते ये बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अब जूते का वैल्यू बढ़ गया है ..... चप्पल पहनना छोड़ दीजिये ॥ हो सकता है कही जूता आपको टिकट ना दिलवा दे....लोकसभा चुनाव सिर पर है......।

Saturday, March 28, 2009

कटुआ कहने में खराबी का है भाई !

कटुआ कहने में खराबी क्या है भई....जो वो हैं वही तो कहा है वरुण गांधी....ये गाली कहां से हो गई जो न्यूज चैनलों पर इस शब्द के आने पर लंबी बीप लगा दी जा रही है, अरे जब किसी को डायन कहे जाने पर किसी को आपत्ति नहीं हुई.....किसी को काफिर कहे जाने पर आपत्ति नहीं हुई तो फिर कटुओं को कटुआ कहने पर गां....में मिर्च काहे लग रही है भाई... आम बोलचाल में हम कितनी बार अपने मुसलिम दोस्तों को कटुआ कहते हैं...और वो बुरा नहीं मानते.......ये अल्फाज मेरे अपने नहीं है....कहीं किसी के श्रीमुख से सुनी है, लेकिन इन शब्दों ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर ही दिया। आखिरकार वरुण गांधी पर इतना बवाल क्यों मचा ? मेरे हिसाब से तो अब जाहिर ही है...पूरा का पूरा प्रकरण चुनावी स्टंट है...इस बार के चुनाव में बीजेपी के पास कोई मुद्दा तो है नहीं, राम मंदिर का मुद्दा है नहीं, महंगाई कम हो ही गई...फिर आखिर वो सरकार को घेरे तो कैसे घेरे, इसलिए उसने एक बार फिर हिंदुओं के दबे हुए आक्रोश को भुनाने का प्लान बनाया। और प्लान के तहत ही वरुण गांधी ने ये भड़काऊ भाषण दिया और अपने मीडिया मित्रों के सहारे रातोंरात बीजेपी के स्टार प्रचारक बन गए...अब हालत ये है कि बीजेपी और हिंदुत्व के समर्थक वरुण गांधी के झंडे तले इकट्ठे होने लगे हैं। जाहिर है इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। यही नहीं वरुण गांधी को बाकायदा सरेंडर करवा कर बीजेपी ने वरुण की टीआरपी और बढ़ा दी है...बुद्धिजीवी वर्ग इस पूरे प्रकरण की निंदा कर रहा है...लेकिन जिस वर्ग को वोट देने जाना है वो तो वरुण गांधी पर फिदा हो गई है।

Friday, March 20, 2009

चुनाव और हम.....


दोस्तो चुनाव सिर पर है और हम जैसे पत्रकार चुनावी दंगल में अपना-अपना एंगिल देने में लग गये है। कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी नहीं तो थर्ड फ्रंट है ना। सरकार किसकी बनेगी अभी तय नहीं है लेकिन आलाकमान अपने-अपने प्रधानमंत्री तय कर लिये है। भारतीय जनता पार्टी तमाम अदंरूनी विरोध के बाद आखिरकार लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर दिया है। कांग्रेस के लिये तो मनमोहन ही मन को मोह लिये है। रहा सवाल थर्ड फ्रंट का तो तीसरा मोर्चा में तो सभी पीएम बनने के लिये बेताब है....चाहे चुनाव में कम ही सीट क्यों ना मिले।
सबसे पहले बात भारतीय जनता पार्टी की.... १९९८ के बाद अब जाके पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र जारी हुआ है। घोषणा पत्र में राम मंदिर की बात को प्रमुखता से दिया गया है, एक बार सरकार बनने पर हिंदुवादी नजरिये के बाद बीजेपी राम मंदिर तो नही बना पायी देखते है अब सरकार अगर सरकार बन जाती है तो क्या होता है.......... कांगेस की बात करे तो कांग्रेस अभी तो मेनीफैस्टो नहीं जारी की है लेकिन अपने पांच साल के कार्यकाल को भुनाने में गुरेज नही करेगी।
समाजवाद को भूल चुकी समाजवादी पार्टी अब लोहिया का नाम लेने से नही चुकेगी। खैर चुनाव में सीट जो लेनी है।
आम आदमी के पैसे से अपने घर के रोशनी जलाने वाले ये नेता लोग वोट लेने के चक्कर में कुछ भी करने से नहीं चुकेंगी.........
आम आदमी की जीवन शैली में थोड़ा सा परिवर्तन जरूर हुआ है लेकिन गांव में अभी भी जागरूकता की कमी है। लोग जातिगत राजनीति से उपर नही उठ रहे है। लेकिन जब भी आम जनता जागेगी तो क्रांति जरूर आयेगी।

Friday, February 27, 2009

A must watch

Dear Friends,
I got a chance to watch this...fantastic performance... a must watch.

http://renaissancepr.blogspot.com/2009/02/must-watch.html

Thanks,

Monday, February 9, 2009

ब्लॉगर्स मेनिफेस्टो- लोकसभा 2009

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सारी पार्टियां मेनिफेस्टो बनाने में जुट गई हैं, जिसमें ऐसी-ऐसी बातें होंगी जो सियासी पार्टियों के लिए इस जनम में करना संभव नहीं। फिर से मेनिफेस्टोज में व्यावहारिक कम, भावनात्मक और वोट खिचाऊं बातें ज्यादा होंगी।मुझे लगता है वक्त आ गया है कि जनता की तरफ से भी मेनिफेस्टो जारी किया जाए, जो विभिन्न मंचो से प्रकाशित-प्रसारित हों।
൧. हर पार्टी की एक बिजली- सड़क नीति हो, उस पर उसकी राय हो, समाधान के तरीके हों और उसका वादा हो कि अगले पांच साल में कितने मेगावाट और किलोमीटर वो जोड़ेंगे।
൨. देश में अलग से शिक्षा का बजट हो, जीडीपी का कमसे कम ൬ फीसदी हमें चाहिए। हर दो किलोमीटर पर एक हायरसेकेंडरी स्कूल और हर जिले में एक यूनिवर्सिटी और एक मेडिकल क़ॉलेज।
൩.प्राथमिक स्तर से अनिवार्य अंग्रेजी हो, यूनिवर्सिटी में सिर्फ अंग्रेजी माध्यम हो-इस पर खुलकर बहस हो।
൪. हर साल कमसे कम एक आईआईटी और एक एम्स की स्थापना।
൫. शिक्षकों और सेना के लिए अलग से बेतन आयोग।
൭. विवादस्पद मुद्दों को सुलझाने के लिए पार्टियों की राय का खुलासा हो।
8.डिफेंस बजट को तार्किक किया जाए.
൯. दलित- आदिवासियों और महिलाओं का अलग बजट हो।
൧൦. पर्यावरण के बारे में नीति

Monday, February 2, 2009

नीतीश बने पॉलिटिक्स के स्लमडॉग

नीतीश कुमार को सीएनएन-आईबीएन ने पालिटिशियन आफ द ईयर का अवार्ड दिया है। कुछ ही दिन पहले बिहार सरकार को बेहतरीन ई-गवर्नेंस के लिए चुना गया। भारत सरकार ने भी प्राथमिक शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार के लिए बिहार सरकार की तारीफ की थी। उससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास मंत्री भी बिहार सरकार की ताऱीफ कर चुके हैं। जाहिर है नीतीश कुमार के कामकाज की तारीफ करनेवालों में उनके राजनीतिक विरोधी भी कोताही नहीं बरत रहे हैं। ये बात अलग है कि प्रचार के विभिन्न मंचों पर ये खबरें बहुत जगह नहीं बना पाईं है।

नीतीश कुमार को पालिटिशियन आफ द ईयर अवार्ड में शीला दीक्षित से काफी कड़ी टक्कड़ झेलनी पड़ी। लेकिन नीतीश के इन उपलव्धियों को कुछ लोग कई नजरिये से देखते हैं। बिहार जैसे सूबे में जहां विकास के काम कभी ढ़ंग से हुए ही नहीं, ऐसे जगह पर कुछ भी थोड़ा काम किसी नेता को काफी आगे बढ़ा सकता है-इसमें कोई शक नहीं। लेकिन दूसरी तरफ इसका एक सकारात्मक पक्ष ये भी है कि बिहार जैसे कार्य संस्कृति विहीन सूबे को पटरी पर लाना भी कोई आसान काम नहीं है, और इसमें नीतीश को सफलता मिलती नजर आ रही है।

एक बात तो तय है कि बिहार में अब विकास राजनीति के एजेंडे में शामिल हो गया है। लालू यादव हों या रामविलास पासवान सभी विकास को अपना एजेंडा बना रहे हैं। हलांकि ये कहना अभी भी जल्दबाजी है कि ये विकास, वोट में कितना तब्दील हो पाएगा। फिलहाल बिहार में किसी भी दल के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी का फैक्टर नहीं है। नीतीश के लिए ये बात तो सूकून की है ही, लालू यादव के प्रति भी लोगों का पुराना आक्रोश कम हुआ है। ऐसे में सियासी पार्टियां अगले चुनावों में कोई बड़ा फैक्टर नहीं रहेंगी-हां, उम्मीदवारों का बेहतर चयन जरुर चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा। फिलहाल तो नीतीश कुमार के लिए अवार्डों की बरसात जरुर सुकून देनेवाली है।

Monday, January 26, 2009

मैथिल ब्राह्मण संस्कार

ब्राह्मण हमेशा सँ संस्कारक लेल विख्यात रहल अछि। ओना ई बात अलग अहि जे आई ब्राह्मण अपन संस्कार केँ बिसरि रहल छथि। जाति-प्रथा में ब्राह्मण कें सबसँ श्रेष्ठ मानल गेल अहि जाहि चलते हुनकर कर्तव्य होईत छनि जे ओ अपन ज्ञान आ शास्त्रसम्मत कर्म सँ समाजक मार्ग दर्शन करैत रहथि। ब्राह्मणक किछु प्रमुख संस्कारक बारे मे एतए बतएबाक प्रयास क’ रहल छी...

छठिहार: ब्राह्मणक संस्कारक पहिल शुरुआत छठिहार दिन सँ होईत अछि। छठिहार बच्चा के जन्मक छठम दिन मनाओल जाइत अछि। एहि दिन सांझक समय सति भगवती के सामने अरिपण द विशेष पूजा-पाठ कएल जाईत अछि। एहि अवसर पर मां आ बच्चा के पीयर कपड़ा विशेष तौर पर पहिराओल जाइत अछि आ ओकर बढ़िया संस्कारक कामना कएल जाइत अछि। एहि प्रथा मे महिले टा हिस्सा लैत छथि। छठिहार में प्रयुक्त होबए वला सामग्री: कागत, लाल रोसनाई, पुरहर पाटिल, बियैन, दीप, कजरौटा, शाही कांट, चक्कु, छूरा आ लावा।

नामकरण: जन्मक एगारहम वा बारहम दिन बच्चा केर नामकरण कएल जाइत अछि। एहि अवसर पर पंच देवता, विष्णु, नवग्रह आ पार्थिव शिवलिंग के पूजा विधि विधानक संग कएल जाइत अछि। एकर बाद बच्चा के राशि के हिसाब सँ कोनो उपयुक्त नाम देल जाईत अछि। बच्चा आ मां नबका कपड़ा पहिर भगवानक पूजा-अर्चना करैत छथि। एकर बाद दुरबा पातक डांट के मौध में डुबा बच्चाक ठोर पर नाम लिखल जाईत अछि। नब वस्त्र अक्सरहां बच्चा के मात्रिक सं अबैत अछि। ओना ई कोनो जरूरी नै। अन्नपराशन: अगर बेटा हो त छह सं आठ महिना के बीच आ बेटी हो तो सात सं नौ महिना के बीच कोनो शुभ मुहुर्त मे बच्चा के नबका कपड़ा पहिरा घरक कोनो बुजुर्ग महिला इ विधि करैत छथि। एहि विधिक तहत बच्चा के पहिलुक बेर अन्न खुआओल जाइत अछि। एहि अन्न के तहत मुख्य रूप सँ बच्चा के पायस आ मिठाई खुऔबाक प्रथा अछि। कतेक ठाम इ विधि बच्चा के मामाक द्वारा कयल जाईत अछि। कहल जाईत अछि जे मामा चांदी के बाटी मे बच्चा के पायस खुआबैत छथि। ओना मामाक सामथ्र्य गुने बाटी कोनो आरो चीज के भए सकैत अछि। एहि बारे मे एकटा धारणा ईहो अछि जे अगर इ विधि नै कएल जाइत छैक त बच्चा तोतराय लागैत अछि।

मुड़न: मुड़न अक्सरहां एक सं पांच सालक बीच मे कोनो शुभ मुहुर्त पर कएल जाइत अछि। एहि अवसर पर बच्चा के केस हजाम द्वारा कैंची सँ काटल जाइत अछि जकरा घरक कोनो बुजुर्ग महिला बच्चाक पाछू बैसि अपना आंचर में रखैत छथि। केस कटला के बाद बच्चा के नाहाओल जाइत अछि आ फेर नबका पकड़ा पहिरा दुर्बाछत देल जाइत अछि। एकर बाद बच्चा पहिने भगवती के प्रणाम करैत अछि आ तकर बाद सब केँ पैर छूबि आशीर्वाद लैत अछि। एहि अवसर पर सांझ में भोज-भात आ मिठाई सेहो बांटल जाईत अछि। कतेक ठाम मुड़न पर बलि प्रथाक सेहो प्रचलन अछि जकरा प्रायः जगमुड़न कहल जाईत अछि। सांझ मे केस के बंसबिट्टी या फेर कोनो पवित्र नदी में भंसाओल जाइत अछि। मुड़नक अवसर पर कतेक ठाम बच्चा के कान सेहो छेदल जाईत अछि। बच्चा के कान सोनाक कुंडल सं छेदल जाइत अछि। ओना ई कोनो जरूरी नै कि कुंडल सोने के होमए। हालांकि ई प्रथा कतेक ठाम उपनयन में सेहो कयल जाईत अछि।

अक्षारंभ: प्रायः तीन सँ पांच सालक बीच में कहियो बच्चाक शिक्षारंभ कएल जाईत अछि। हालांकि ई बिधि कतेक ठाम मुड़नेक दिन क’ लेल जाईत अछि। बच्चा के हाथ में चैक पकड़ौबाक शुरुआत आचार्य भोरका उखराहा मे करैत छथि। एहि अवसर पर पंच देवता, कुल देवता, लक्ष्मी-गणेश, सरस्वती, विष्णु, महादेव और ब्रह्मा केेर पूजा कएल जाईत अछि। एकटा साबूत केराक पात पर अरिपण द’ पांच किलो अरबा चाउर ओहि पर पसारल जाईत अछि। एकर बाद आचार्य बच्चा के अपना कोरा मे ल’ बच्चा के दहिना हाथ मे चैक पकड़ा ओहि चावल पर ओम नमः शिवाय लिखबावैत छथि। एकर बाद एहि चावल के पीयर कपड़ा सँ झांपि देल जाईत अछि। चाउर के सांझ में उठा लेल जाईत अछि। ओना बहुत केयो ई बिधि सरस्वती पूजा के दिन क’ लैत छथि। सरस्वती के विद्या के देवी मानल गेल अहि आ लोक एहि दिन के एहि कार्यक लेल विशेष शुभ मानैत छथि।

उपनयन: कहल जाईत अछि जे उपयनक बादे ब्राह्मणत्वक संस्कार लोक मे अबैत अछि। एहि दिन सँ बच्चा के ब्रह्मक ज्ञान होईत अछि आ ओ अपन संस्कारक प्रति सजग होईत अछि। उपनयनक लेल ओना त’ उम्रक कोनो सीमा नहि अछि मुदा कहल जाईत अछि जे जँ पांच सालक भीतर भ’ जए तं ई विशेष उत्तम। उपनयनक विधि विवाहो सँ कहिं भाड़ी होईत अछि। उपनयनक विधि के शुरुआत उद्योग सँ होईत अछि। एकर बाद मैट मंगल, मरब ठट्ठी, चरखकट्टी, कुमरम, मात्रिका पूजा, अभ्युदयक श्रद्धा, चूड़ाकर्ण, उपनयन, वेदारंभ, समाबर्तन आ उपनयनक चारिम दिन रातिम होईत अछि। रातिम दिन सत्यनारायण भगवानक पूजा क’ उपनयनक विधि-विधानक समाप्ति कएल जाईत अछि। उपनयनो मे कतेक ठाम बलि प्रदानक प्रथा अछि।

विवाह: कहल जाईत अछि जे विवाहक बादे मानव जन्म के पूर्ण मानल जाईत अछि वरना जन्म अधूरा अछि। मैथिल विवाहक विधि अछि - सिद्धांत, कुमरम, लाबा भुजाई, आज्ञा डाला, मात्रिका पूजा वा अभ्युदयक श्रद्धा, आम-मौह विवाह, पैर धोआई, परिछन, धोबिनयां सँ सोहाग, नैना-जोगिन, कन्यादान, बिवाह, सिंदुरदान, चतुर्थी आ फेर दुईरांगमन। ओना कतेक ठाम मैथिल विवाह मे कुमरमक प्रथा नहीं अछि। एतबे नहि कतेक ठाम मात्रिका पूजा बरियातिक एलाक बाद होईत अछि तँ कतेक ठाम पहिने भ’ जाईत अछि।

मरण: संस्कारक अंतिम चरम थिक मरण। ताहि चलते एकरा अंतिम संस्कार सेहो कहल जाईत अछि।

Tuesday, January 20, 2009

प्रेम के बारे में कुछ विचार

16, 30 और 48 साल का प्यार खतरनाक होता है !
बुद्धिजीवी लड़की से प्रेम तो और भी खतरनाक होता है !
बुद्धिजीवी लड़के मांसल लड़कियां चाहते हैं !
ज्यादा दिमागदार पुरुष कई-कई प्रेम करते हैं। उनका मानना है कि उनमें बहुत उर्जा है जिसे एक महिला नहीं संभाल सकती !
(सदी के सबसे जीनियस का खिताब पाए बर्टेंन्ड रसेल ने भी शायद एकबार कहा था कि दुनिया में बुद्धिमानों की कमी है-इसलिए उनकी जिम्मेदारी है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं से प्रेम कर ज्यादा से ज्यादा बुद्धिमान पैदा करें।)
कभी-कभी बुद्धिजीवी पुरुष एक ही साथ समर्पित और अपने से उम्र में कम लड़की चाहते हैं तो साथ ही साथ एक बुद्धिजीवी लड़की भी।
कुछ काबिल लोगों का मानना है कि लड़की की आंख और आवाज खूबसूरत नहीं है तो वो ज्यादा देर तक आकर्षित नहीं कर पाएगी !!
आध्यात्मिक प्रेम दूसरे ग्रह पर पाया जाता है। कृपया आध्यात्मिक प्रेमीगण इस कथन को अपने अपमान के तौर पर मत लें।
महिलाओं के सामने ज्यादातर पुरुषों की शराफत उसे पटाने का ही एक तरीका होता है।
एक हालिया शोध कहता है प्रेम में पड़े हुए आदमी की कार्यक्षमता और खूबसूरती बढ़ जाती है।
दोस्तों में एक मजाक प्रचलित है कि जो एक लड़की नहीं पटा पाया वो कारपोरेट जगत को खाक पटाएगा। यानी लड़की पटाने का आपके आत्मविश्वास से गहरा नाता दिखाया गया है।
(हलांकि ये हर हाल में आवश्यक नहीं कि आप प्रेम में पड़ गए तो कारपोरेट जगत में भी सफल ही होंगे। एक अंतर्मुखी और तीन-पांच न जाननेवाला व्यक्ति भी प्रेम में पड़ सकता है। लेकिन कारपोरेट जगत में....हरि.. हरि...)
नोट- उपर्युक्त विवरणों के आधार कुछ अपने अनुभव हैं, तो कुछ मित्रों के। इन विवरणों में सार्वभौम सत्य का दावा नहीं किया गया है।)

Monday, January 19, 2009

अरे भइया, कहां चांदनी चौक, कहां चाइना, इहां तो खाली जोकरई और कुंगफू

हम गए चांदनी चौक से चाइना, शुरुआत में तो लगा कि पहुंचिए जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे पता चला...कि भइया कहां चांदनी चौक है, अउर कहां चाइना, मुझे तो केवल दीपिका पादुकोण की खूबसूरती, अक्षय की जोकरई और कुंगफू ही नजर आया हर मिनट। मैं परसों गया था चांदनी चौक टू चाइना देखने, देखने से पहले ही अखबारों और वेबसाइटों में पढ़ा कि औसत दर्जे की है, बहुत बकवास है, महानिराशाजनक है। लेकिन प्रोमो देखकर गाने सुनकर फिल्म देखने का मोह नहीं छोड़ पाया। लेकिन फिल्म शुरू होते ही जैसे क्रिटिक्स की क्रिटिक याद आने लगी। अक्षय के पिछवाड़े पर मिथुन की लात पड़ना और उसके बाद सिद्दू बने अक्षय का हवा में उड़ते जाना,फिर वापस आकर जमीन पर गिरना। मिथुन की एक और लात और अक्षय फिर हवा में....कुछ मिनटों तक तो यही चलता रहा। भई अगर यही कॉमेडी है तो रियल कैरेक्टर क्यों चुनते हो भई, कार्टून फिल्म बना दो, ज्यादा हंसी आएगी। यहां हंसी आई तो समझ में आता है, लेकिन हंसी वहां भी आ गई जब फिल्म के विलेन होजो ने अपनी टोपी के जलवे दिखाए। जनाब, ऐसी टोपी हम सबके पास होनी चाहिए। जिसमें इतनी तेज धार हो, और भगवान श्रीकृष्ण के चक्र की तरह वो दुश्मन की गर्दन काटकर वापस आपके सिर पर आकर सवार हो जाए। इस टोपी ने तो हद तब कर दी जब कुंगफू सीख चुके सिद्दू ने उस टोपी से लू शेन की मूर्ति ही काट डाली। होजो की खासियत ये जादुई टोपी हो तब तो कुछ हजम हो जाता, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। होजो चीन का इतना बड़ा बड़ा गैंगस्टर है, लेकिन उसके गुर्गे गोली बंदूक नहीं चलाते, बल्कि खंजर, दांती, या चाकू से ही लड़ते हैं, लगता है उसने इन सब चीजों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है, ताकि कोई उसकी टोपी गोली से न उड़ा दे। होजो की टोपी का शिकार होते हैं सिद्दू के दादा मिथुन दा। सिद्दू बदला लेने के लिए कुंगफू सीखता है। ये कुंगफू कोई आम कुंगफू नहीं है जनाब। एक से एक शॉट्स और मूव्स हैं इसके। इस कुंगफू से सिद्दू पल भर में तूफान भी खड़ा कर देता है, इसका नाम है कॉस्मिक किक। बस एक फ्लाइंग किक सीने पर और उसके बाद आंख बंद कर कांसंट्रेट किया और आस-पास समुद्र में उठ गया बवंडर। जिसमें न तो सिद्दू उड़ा, न उसका दोस्त और न उसका कुंगफू गुरू। बस उड़ गया तो होजो का बेटा, जैसे सबसे लूज शंटिंग उसी की हो, बाकी सब तो पत्थर के बने हों। इन सबके बीच अच्छा हुआ कि सखी और सूजी की ठूंसी हुई कहानी की बदौलत दीपिका पादुकोण आती रहीं, वरना अक्षय की जोकरई से ९० के दशक की फिल्में याद आने लगतीं। पूरी फिल्म में बस एक चीज दिखी और वो थी कुंगफू की महानता। अगर आपको कुंगफू आती है तो आप बड़े से बड़े गैंगस्टर को भी नेस्तनाबूद कर सकते हैं।

Friday, January 16, 2009

जिन्न को बोतल में बंद करना नामुमकिन है नेताजी...

जिस देश को बर्बाद करने का ठेका नेताओं ने ले लिया हो, वहां अपनी गलती का ठीकरा मीडिया पर थोपना कितना आसान है-इसका ज्वलंत उदाहरण है मीडिया रेगुलेशन का प्रस्तावित बिल। वो तमाम खद्दरधारी जिनके माथे पर न जाने कितने हत्याओं, आत्महत्याओं, किसान हत्याओं और घोटालों का आरोप लगा हुआ है-वे ही आज मीडिया को संयमित होने की सलाह दे रहे हैं। कितना आसान था प्रिंट का जमाना जब कोई भी लालू या आडवाणी आपके रिपोर्ट को तोड़-मोरोड़ कर पेश किया गया बता देता था-लेकिन मजे की बात देखिए मीडिया को लगाम लगाने की बात पर भगवा और हरा दोनों ही एक हो गया है।

उन्हे खुंदक इस बात की नहीं है कि मुम्बई हमलों का फुटेज क्यों दिखाया गया, खुंदक तो इस बात की है कि उनके बिरादरी के कई स्वनामधन्यों को अतीत में घूस लेते हुए सरेआम नंगा क्यों किया गया। माना कि जनता का एक तबका हमसे इसलिए नाराज है कि हमने कुछ दिन भूत-प्रेत और संपेरों का बीन भी दिखाया था-लेकिन इस बात की आलोचना का हक उन नेताओं को कैसे मिल गया जो दिन रात तांत्रिकों और साधुओं के आशीर्वादों के सहारे चुनाव जीतना चाहते हैं ? ये नेता अपनी निजी जिंदगी में इतने जन-विरोधी हैं जितना इस मुल्क का ब्यूरोक्रेट भी नहीं है। हमें ये याद दिलाने की कोई जरुरत नहीं कि दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय और विशाल संसाधनों से लैश संस्थान की नेताओं ने क्या दुर्गति कर रखी है।

दरअसल सरकार तो मीडिया को खुली प्रतिस्पर्धा के लिए खोलना ही नहीं चाहती थी, भला हो 90 के दशक का,जब देश में गठबंधन सरकारें बनने लगी और लालकिला किसी की बपौती नहीं रहा। अब जब एक बार जिन्न बोतल से बाहर आ ही गया है तो इन नेताओं के बाप का दिन नहीं है कि इसे फिर से अपनी बंदरिया बना लें। अभी तो कुछ नहीं हुआ है, एफएम रेडियो में जरा न्यूज आने दीजिए-नेताओं की हालात तो और खराब होने वाली है-रही सही कसर गांवो तक इंटरनेट की पहुंच खत्म कर देगी। दरअसल ये बौखलाहट दिन से दिन जागरुक होते जाते लोगों के खिलाफ है-टीवी न्यूज मीडिया के खिलाफ नही।

नेताओं को लगता है कि अब भ्रष्ट पैसों से बढ़े तोंद को कैमरे से छिपाना अब आसान नहीं है-इसलिए मीडिया को रेगुलेट करने का नायाब बहाना ढ़ूढ़ा गया है। लेकिन इन खद्दरधारियो को ये नहीं पता कि जनता हमारी आलोचना तो करती है-लेकिन वे इन नेताओं से मुहब्बत भी नहीं करती। इस मुल्क का पोलिटिकल सिस्टम आवाम कि चिंताओं को समझने में नाकाम साबित हुआ है और जनता अभी भी अपने आक्रोश और अपनी समस्याओं का अक्श मीडिया में ही तलाशती है-और वो हमारी आलोचना इसलिए करती है कि उसे लगता है हम राह से भटक रहे हैं।

Wednesday, January 14, 2009

पत्रकारिता पर शिकंजा .....

दोस्तों ...लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को सरकार की टेढी नजर लगनी शुरू हो गई है ........सरकार की नई नीति में अब न्यूज़ चैनल वालो को किसी प्रसारण के पहले उनकी अनुमति लेनी पड़ेगी । कोई ख़बर दिखाने के पहले सम्बंधित जिलाधिकारी को दिखाना पड़ेगा फ़िर उसको दिखाना पड़ेगा । सरकारी तंत्र के लचर रवैये को देखते हुए किसी ख़बर को तुंरत दिखा पाना .....आसमान से तारे तोड़ लाने के बराबर होगा । क्या ये सही है ?????जायज है ???
नही ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में संवैधानिक रूप से ये अधिकार मिला हुआ है की हर कोई अपनी बात कह सकता है । अनुच्छेद १९ (1) इस बात का गवाह है कि भारत का हर एक नागरिक अपनी बात को बेखौफ होकर व्यक्त कर सकता है । लेकिन मुंबई हमलो के बाद प्रसारण मंत्रालय को लगा कि प्राइवेट न्यूज़ चैनल टी आर पी को लेकर कुछ ज्यादा ही दिखा रहे है । यहाँ हम ये भी बता देना चाहते है कि ख़ुद सरकारी मिडिया भी मुंबई हमले की कवरेज़ कर रही थी ।
कई मामलो में खबरिया चैनल बहुत ही बढ़िया है, जैसे एन एस जी के जवानो की जांबाजी को दिखाना या फ़िर हमलो की हर बारीक़ से बारीक़ जानकारिया दिखाना ।इसी बीच में आंतकवादी टीवी देख कर जवानो के हर कदम को जानने लगे तो यही न्यूज़ चैनल लाइव प्रसारण बंद कर दिए ।
चाहे कड़ी धुप हो या मुसलाधार बारिस हमारे पत्रकार बंधू कैमरे की नजर से सब कुछ हम लोगो के बीच पहुचाते है । हाँ ये सही है की बाजारवादी युग में टी आर पी के मायने थोड़ा बदल गए है फ़िर भी अभी जो स्थिति है वो सरकारी तंत्र से बहुत ही बढ़िया है ।
हालाँकि हमारे संपादक लोग इसका विरोध कर रहे है और प्रधानमंत्री जी से भी मिलकर इस बारे में बात करेंगे ....देखते है क्या होता है ।