This Is Biology: The Science of the Living World: by Ernst Mayr
चन्द्रभूषण जी ने पहलू मे चेतना और पदार्थ पर एक रोचक बहस छेड़ी है। हम सभी कंही न कंही आत्मा की अवधारणा, या फिर चेतना का आधार क्या है ? जैसे सवालों से जरूर उलझे होंगे। और सिर्फ हम ही नही हमसे पहले भी कई peedhiyaa और हमारे बाद आने वाली कई peediyon को अभी इस सवाल से उलझना होगा।
Ernst Mayr की यह किताब इन्ही एतिहासिक सवालों से उलझती है और कुछ हद तक इन सवालों के उत्तर की दिशा भी तय करती है। हालांकि इन उत्तरों की पकड़ के लिए आधुनिक biology और खासतौर पर genomics की समझ की भी दरकार है। इस किताब का लिंक आपको गूगल पर ले जायेगा, जहाँ पर आप मूल लेख इस विषय पर पढ़ सकते है। मेरा ख्याल है, कि वों अपनेआप मे एक अनूठा अनुभव है। यहाँ पर मैं सिर्फ अपने नजरिये और इस किताब की बात करूंगी।
वैज्ञानिक मंडलियों मे अभी तक गडित और भौतिकी का ही वर्चस्व रहा है, और करीब दो सदियों तलक, जीव विज्ञान एक दूसरी श्रेणी का विज्ञान माना जाता रहा है। अधिकतर descriptive, कुछ हद तक तर्कहीन। दर्शन और विज्ञान को लेकर सारी की सारी बहस का केंद्र बिन्दु भौतिकी ही है। यही कारन रहा है कि बहुत से प्रकृती के रहस्यों को या नियमों का समाधान इस धारा के अन्दर हुया है, सिवाय जीवन को छोड़कर, चेतना को छोड़कर। यही पर भौतिकी मात खा जाती है।
जीवन और चेतना की खोह तक जानेवाली दो धारानाये दर्शिनिको के बीच मतभेद का कारण रही है। पहली धारणा भौतिकी से प्रभावित mechanistic दार्शनिकों की रही है, जिन्होंने जीव शरीर को एक मशीन माना, और दूसरी "vitality" की जिन्होंने जीव को और चेतना को सिर्फ मशीन मानने से इनकार किया। दोनो धाराओं से जीव विज्ञान को फायदा हुआ है, वहाँ तक पहूँचाने मे, जहाँ ये आज खडा है। और सिदांत और दर्शन के तौर पर ये दोनो धाराये आज सिर्फ एतिहासिक महात्व की राह गयी है।
१९५० के आसपास जब ये साबित हो गया कि माता-पिता से संतति मे सारे लक्षण DNA के द्वारा पहुंचते है, फिर हर लक्षण को निर्धारण करने वाले कारक "genes" की खोज हुयी, और अभी तक बादस्तूर जारी है। जिस तरह atom की खोज के बाद ये पाया गया कि किसी भी पदार्थ के गुण जानने के लिए , वों जिन atoms से बना है, उनके गुण जानना पर्याप्त है। कुछ इसी तरह के सिद्दांत पिचले ५-६ दसकों मे जीव विज्ञान पर भी लागू करने की कोशिश की गयी। ये माना गया कि जिस दिन सारे genes की पहचान हो जायेगी, वों क्या करते है ये पता चल जायेगा, उस दिन जीवन के आधार का भी पता चल जाएगा।
पिचले १० सालों मे जीव वैज्ञानिकों मे ये सहमती बनती दिख रही है के टुकडे-टुकडे मे जीवन की समझ नही बसती, बल्की समग्र जीव को उसके, पर्यावरण के परिपेक्ष्य मे जब देखा जाएगा तभी जीवन की समझ भी मिलेगी। जीव विज्ञान भौतिकी और रसायन पर आधारित होते हुए भी इनके नियमों मे नही बंधा है, और कुछ नए स्वतंत्र नियम भी बनाता है। इसे हम लोग "principle of Emergence" कहते है। यही पर बहुत क्लिस्ट रुप मे चेतना के आस्तित्व की भी व्याख्या की जा सकती है। इस पर फिर कभी .......
फिलहाल गुणीजन इस किताब का स्वाद ले...........
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