Saturday, April 18, 2009

तो मामला महज 20 सीटों का है......

लोकसभा चुनाव के लिए भविष्यवाणियों का दौर जारी है। सब अंधेरे में तीर मार रहें है। सर्वे एंजेंसियां फिर वहीं ग़लती दुहराने जा रही है, जो पिछले कई दफा कर चुके है। टीवी चैनल्स तो और भी दिवालिए हैं। शातिर सियासतदान इस बार भी उसका इस्तेमाल कर रहें हैं। प्रधानमंत्री कौन बनेगा इसका सारा जिम्मा ज्योतिषियों को दे दिया गया है। पत्रकार सिर्फ सनसनीखेज़ बयानों के पीछे अपनी प्रतिभा गोबर कर रहे हैं। फिर सवाल ये है कि अंतिम आंकड़ों का एक मोटा-मोटा अंदाज भी क्यों नहीं लग पा रहा?

ये तो पक्की बात है कि सरकार वही बनाएगा जो आंकड़ों के खेल में बीस होगा। अब वो आंकड़ा क्या है ? बहुत पहले तक वो 272 होता था, लेकिन नोटों, स्वार्थों और कलाबाजियों के दौर में वह घटकर लगभग 200 रह गया है। यानी जो भी गठबंधन 200 ले आएगा, सरकार बना लेगा। यहां चकराने की जरुरत बिल्कुल नहीं है। जी हां, 50-60 सीट दोनों ही गठबंधन चुटकी में जुगाड़ लेगी, ये उन्हे पता है। कांग्रेस के लिए वाम और बीजेपी के लिए चंद्राबाबू-जयललिता इतनी सीटें थाली में लेकर बैठी हुईं हैं। हां, मुद्रास्फीति के इस दौर में कीमत कुछ ज्यादा हो सकती है।

अब सवाल ये है कि वो 200 सीटे किसके पास है। सवाल यहां आकर थोड़ा टेढ़ा हो जाता है। पूरे देश में लगभग सवा दो सौ सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की सीधी भिड़ंत हैं इसमें शामिल हैं-हिमाचल(4), उत्तराखंड(4) राजस्थान(25), गुजरात(21) मध्यप्रदेश(29) छत्तीसगढ़(11) कर्नाटक(28) दिल्ली(7) झारखंड (12), महाराष्ट्र (48) असम(14), पंजाब(13), हरियाणा(10), गोवा(2) अरुणाचल प्रदेश(2), और इस भिड़ंत में भाजपा बीस दिख रही है। कहने का मतलब ये कि भाजपा यहां से तकरीबन 120 से 130 सीटें जीत सकती है। इसके आलावे बिहार(40), यूपी(80) और उड़ीसा(21) की वो 140 सीटें हैं जहां भाजपा कमजोर नहीं हैं। इसमें भाजपा गठबंधन 50 तक सीटें अपनी झोली में डाल सकती है। और छिटपुट सीटें पार्टी, केरल, तमिलनाडू आंध्रप्रदेश में भी लाएगी। तो बदतरीन हालात में भी पार्टी 180 सीटों से ऊपर है। हलांकि अभी भी वो 200 से नीचे है लेकिन नजदीक दिखती है।

अब जरा कांग्रेस के आंकड़ों पर गौर करें। सबसे ऊपर के सवा दो सौ सीटों में कांग्रेस के पास पाने को ज्यादा नहीं है। जो उम्मीद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात में पार्टी ने पाल रखी थी, उसमें भाजपा ने अपने तमाम ढ़ीले नट-वोल्ट कस दिए हैं। राजस्थान और दिल्ली को लेकर पार्टी खुशफहमी पाल सकती है, लेकिन भाजपा ने बड़ी तेजी से डेमेज कंट्रोल किया है। उसकी विधानसभा में हार आपसी कलह से ज्यादा, कांग्रेस की काबिलियत से कम हुई थी। एक निर्मम समीक्षा यह भी कहता है कि कांग्रेस खुद 100 सीट जीतने की हालत में नहीं है,जबकि यूपीए जो कि कागजों पर ही बचा है, 150 पर अटक सकता है।

कांग्रेस की उम्मीदें उड़ीसा और बंगाल और केरल से है। बंगाल और केरल में तो वह तरक्की पर है लेकिन उड़ीसा में भाजपा कमजोर नहीं। उसने अपना साम्प्रदायिक होमवर्क करके काफी सोच समझकर नवीन पटनायक से पल्ला झाड़ा है। भाजपा वहां इस हालात में है कि वो सूबे को अगला कर्नाटक बनाने की राह पर है। दो-तीन चुनावों में खंडित जनादेश-और फिर सूबे पर कब्जा भाजपा की रणनीति है। चुनाव के बाद नवीन पटनायक भाजपा के सबसे विश्वस्त सहयोगी बनने को फिर से अभिशप्त हो सकते हैं।

अब भाजपा को जो 20-30 सीटों की कमी महसूस हो रही है उसे वो आक्रामक चुनाव प्रचारों से पाटना चाहती है। पार्टी का वार रुम कांग्रेस से बेहतर है। टीवी चैनल से लेकर वेबसाईट तक पर भाजपा कांग्रेस पर भारी है। उसके पास प्रचारकों की एक सीरीज है जबकि कांग्रेस के पास महज सोनिया-राहुल हैं। हलांकि मुद्दे, संसाधन और हालात कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा थे, लेकिन पार्टी उसका फायदा नहीं उठा पा रही। रोजगार गारंटी योजना, किसानों की कर्ज़ माफी, दोपहर का भोजन, सर्व शिक्षा अभियान और ग्रामीण विद्युतीकरण को कांग्रेस मतदाताओं को बेच नहीं पा रही।

दूसरी तरफ भाजपा चाहती है कि चुनाव ध्रुवीकृत हो। वो चाहती है कि बीजेपी खुद मुद्दा बन जाए। इसमें आडवाणी की टीम सफल दिख रही है। पहले वरुण गांधी का बयान, फिर आडवाणी का मनमोहन को डिवेट की चुनौती, फिर मोदी का बुढ़िया-गुड़िया प्रकरण बीजेपी की शातिर चाल है, जिसमें कांग्रेस फंसती जा रही है। खंडित जनादेश कांग्रेस के पक्ष में जाएगा, जबकि ध्रुवीकृत जनादेश भाजपा की जागीर है। भाजपा इसी चक्कर में है। तो मामला अब महज 20 सीटों का रह गया है।

Friday, April 10, 2009

जुते का साइड इफेक्ट ...




जनाब ये बात लिखते हुये ताज्जुब हो रहा है, लेकिन लिखना पड़ रहा है.......कभी समाज में गाली खाने वाला जूता अब राजनीतिक हलके का एक सम्माननीय परिचय हो गया है। समाज में जुते का सम्मान इस कदर बढ़ गया है कि जहां देखो लोग जुता पर जुता दिये जा रहे है। कहीं बुश जुता खा रहे है तो कही चिदंबरम.....अब सिलसिला नवीन जिंदल तक पहुंच गया है। समाज में लोग को गाली देते हुये आप बहुत सुने होगें कि ....अब बोलोगे तो जूते से मारूगां ..... कितना हेय दृष्टि से लोग जूते को देखते थे। अब जूते का रूतबा बढ़ गया है। अब जूते से मार खाने वाले की पब्लिसिटी बढ़ रही है साथ में मारने वाले को एक वर्ग विशेष में अच्छा खासा इज्जत....
दो जूते आपस में बात कर रहे थे कि ....
(पहला जूता यार अब तो हमे इज्जत मिल रही है....कहीं ये नेता लोगो की चाल तो नहीं है?
दुसरा जूता हां यार सही कह रहे हो....ये नेता लोगो की कोई चाल हो सकती है....क्योंकि एक मारता है तो उसको लोग टिकट देने की बात करते है .... तो दूसरी तरफ एक का टिकट कट जाता है....ये नेता लोग अब हमारी कौम में भी दखल देने लगे है......)
दोस्तों अब चलते - चलते ये बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अब जूते का वैल्यू बढ़ गया है ..... चप्पल पहनना छोड़ दीजिये ॥ हो सकता है कही जूता आपको टिकट ना दिलवा दे....लोकसभा चुनाव सिर पर है......।