Friday, December 31, 2010

'शीला की जवानी..' का भावार्थ

प्रस्तुत उत्तेजक गीत हिन्दी फिल्म जगत के नवीनतम रत्न 'तीस मार खान' से लिया गया है. यह गाना नायिका के संगमरमर जैसे शरीर से आकर्षित होने वाले लंगोट के ढीले पुरुषों पर नायिका की अपमानजनक प्रतिक्रया को व्यक्त करता है. नायिका उन्हें सीधे और कटु शब्दों में बताना चाहती है कि शीशे के पीछे रसगुल्ले की ख्वाहिश करना एक बात है और उसे चखना दूसरी बात!

I know you want it
But you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
Yeh saari, mere ishq ki hai deewani

गाने की शुरुआत नायिका के ईमानदारीपूर्ण वक्तव्य से होती है. वो जानती है कि इन मर्दों को उसकी भावनाओं, दिल और प्रेम से कोई सरोकार नहीं. वो तो बस एक ही चीज चाहते हैं. पर वो उन्हें मिलने वाली नहीं. उन्हें मुंह में भर आये पानी से ही अपनी प्यास बुझानी होगी. दुर्भाग्यपूर्ण, परन्तु सत्य.


Hey hey, I know you want it
but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
yeh saari Mere ishq ki hai deewani
Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun

नायिका पुनः दर्जनों पुरुषों में उसके प्रति जगी वासना पर प्रकाश डालती है. वो अपने आस-पास मंडराते छिछोरों को बताती है कि उनकी दाल नहीं गलने वाली. पर साथ ही यहाँ नायिका के व्यक्तित्व का एक और पक्ष उजागर होता है. सौंदर्य से जागृत अहंकार का पक्ष. वो अपनी सुन्दरता से इतनी प्रभावित है कि उसे किसी पुरुष की ज़रुरत नहीं. वो अपने अन्दर की स्त्री के लिए खुद ही पुरुष बन जाना चाहती है. अब इसे अहंकार की पराकाष्ठा कहें या आत्म-प्रेम की मादकता!


what's my name
what's my name
what's my name
My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani

अब नायिका अपना परिचय देती है. अपना नाम बताती है. और नाम भी ऐसा जो बूढ़ी नसों के लिए वायाग्रा का काम करे. उनमें यौवन का झंझावात ला दे. नाम बताने के साथ वो यह भी बताती है कि वो बहुत ही ज़्यादा सेक्सी है. अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. पर इस आत्म-प्रशंसा में भी अहंकार की सुगंध है. वो खुद को इतना ज़्यादा सेक्सी बताती है कि वो सबकी पहुँच से बाहर है. एक ऐसे चन्द्रमा की तरह जिसकी चांदनी तो सबको उपलब्ध है, पर उस चाँद को छूकर उसे महसूस करना किसी के बस की नहीं. यहाँ यह सिद्ध होता है है कि नायिका सौंदर्य की साधक ही नहीं, बल्कि अहंकार से भरी चुड़ैल भी है.


Take it on
Take it on
Take it on
Take it on

अब नायिका सीधे शब्दों में चुनौती देती है. एक ऐसी चुनौती जो शायद मर्दों में शराब के बिना भी साहस ला दे.


Silly silly silly silly boys
O o o you're so silly
Mujhe bolo bolo karte hain
O o oHaan jab unki taraf dekhun,
baatein haule haule karte hain
Hai magar, beasar mujh par har paintra

अब नायिका उनका उपहास करती है. उन्हें मूर्ख कहकर पुकारती है. उन्हें ज़लील करती है. वो मर्द नायिका के बारे में गुप-चुप बातें कर सकते हैं

12 comments:

anil said...

kya be kafi prabhawit lag rahe ho sheela ki jawani se...............

NICE very nice interpitation of the song . HAPPY NEW YEAR 2010
MY SHEELA

imamit23 said...

मिथिलेश जी छा गए....

imamit23 said...

छा गए...छा गए मिथिलेश जी...

Anonymous said...

Bhaiya IS vivechna pulitzar na sahi paratu ek sahitya akadmy Puraskar awashya milana chahiye.

Anonymous said...

Bhaiya IS vivechna pulitzar na sahi paratu ek sahitya akadmy Puraskar awashya milana chahiye.

jr... said...

Kya baat hai.. sahi bhabartha nikalna to koi aapse siikhe..

lage rahiye...

Unknown said...

apne records banayein rakhein.. I am waiting for your new Operation (Cheer-Faad Of The Song)... Thanks..

Nivedita said...

Sandarbh, prasang sahit bhaawaarth! :-)

A very good analysis of a woman who mocks the value system that commodifies her by engaging with the theme of 'unrequited lust'. What is ironical is that in the process she has internalized the very identity that she mocks.

Nivedita said...

Sandarbh, prasang sahit bhaawaarth! :-)

A very good analysis of a woman who mocks the value system that commodifies her by engaging with the theme of 'unrequited lust'. What is ironical is that in the process she internalizes the identity that has been assigned to her by this value system.

Nivedita said...

Sandarbh, prasang sahit bhaawaarth! :-)

A very good analysis of a woman who mocks the value system that commodifies her by engaging with the theme of 'unrequited lust'. What is ironical is that in the process she has internalized the very identity that she mocks.

vandana says said...

very detail discription. nice.

Prabodh Kumar Govil said...

Badi mehnat kar daali aapne is gahan vishay par!