- विवेक सत्य मित्रम् (अगर आप भी किसी न किसी जॉब में हैं तो आप चाहें या न चाहें इस कहानी का हिस्सा हैं। आपका किरदार क्या है..? ये तो आप ही बता सकते हैं। जिंदगी में हम बहुत सी चीजों से इसलिए नफरत करने लगते हैं क्योंकि वो हमारे पास नहीं होती। मेरे लिए चमचागिरी भी ऐसी ही एक काबिलियत है जिसकी एबसेंस मुझे बहुत खली है। और इसके नहीं होने से जिंदगी में बहुत कुछ जो मिल सकता था, नहीं मिल पाया। इसलिए इसकी महिमा का बखान कर रहा हूं, शायद आपके काम आ जाए। फिलहाल पेश है.... इंडियन इंस्टीट्यूट आफ चमचागिरी –अध्याय एक )
प्राइवेट जाब वालों को रिटायरमेंट की चिंता सताती है। मुझे भी सताने लगी है। पांच सालों से जर्नलिज्म में हूं, अभी तक तो कोई तीर मार नहीं पाया। स्यूडो अपर मिडिल क्लास होने की फिराक में सिर पे हजारों का कर्जा हो गया है सो अलग। यही नहीं, ईश्वर ने मेरे शरीर के किसी हिस्से में सुर्खाब के वो पर भी नहीं लगाए जिनकी मदद से मेरे कई सारे बैचमेट और जूनियर्स कामयाबी की नई बुलंदियां हासिल कर रहे हैं। और लगता नहीं कि निकट भविष्य में साइंटिस्ट सुर्खाब के पर डेवलप कर पाएंगे। मान लीजिए, कर भी लिया तो इस बात की क्या गारंटी है कि उनके लिए जरुरी जीनोम संरचना मेरे शरीर में मौजूद हो। कुल मिलाकर बायोलाजिकली मैं इसके लिए फिट साबित हो जाऊं, इस बात की भी गारंटी नहीं है। खैर, जर्नलिज्म से उठाकर फेंक दिए जाने के बाद कौन सा धंधा कर पाउंगा...बहुत सोचा। माथापच्ची की। मेरे एक मित्र ने बताया कि वो वेस्ट मैनेजमेंट में कुछ करने की सोच रहा है। एक ने कहा कि वो किसी जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट में फैकल्टी हो जाएगा। किसी ने कहा कि वो गांव जाकर खेती बाड़ी संभालेगा। मैंने भी इन तमाम धंधों के बारे में सोचा। वेस्ट मैनेजमेंट करना इसलिए मुश्किल लगा क्योंकि इसके लिए जरुरी साफ्टवेयर मेरे भीतर नहीं है। अगर कबाड़ से जुगाड़ करने की काबिलियत रखते हों तो ये फील्ड ठीक है, अगर नहीं तो आप खुद ही कबाड़ हो जाएंगे। और यही वो डर है जो इस फील्ड के लिए जरुरी साफ्टवेयर मेरे भीतर इंस्टाल नहीं होने देगा। लिहाजा इस आप्शन को मैं टेक्निकली सपोर्ट नहीं करता। जहां तक बात पत्रकारिता पढ़ाने की है, तो भईया..वो आदमी भला क्या पत्रकारिता पढ़ाएगा जो खुद इस फील्ड में इतनी कमाई नहीं कर पाया कि उसे रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ सोचना न पड़े। मुझे तो लगता है अगर मैं फ्री में भी पढ़ाने को तैयार हो जाऊं तो कोई लड़का पढ़ने को तैयार नहीं होगा। आफ्टर आल इट्स आल अबाउट मेकिंग मनी। इस तरह उस धंधे से भी कमाई नहीं कर पाऊंगा जिसके लिए पूरी जिंदगी लगा दी। ले देकर अब अपनी खेती बाड़ी देखनी होगी। उसमें भी सोचने वाली बात ये है कि तब तक मेरे नाम में एक धूर भी जमीन हो..तब तो ये आप्शन मेरे सामने बचा रहे। लेकिन मेरे खानदान में जिस तरह से जमीन जायदाद घटती चली गई उसे देखकर तो इसकी उम्मीद रखना खुद को गफलत में रखने में जैसा है। मसलन आज से ४० साल पहले मेरे परिवार के पास कुल ३०० बीघे जमीन जायदाद हुआ करती थी। लेकिन आज की तारीख में हम दो भाइयों के हिस्से बमुश्किल १० बीघे जमीन है। अब तो आप खुद ही भविष्य का अंदाजा लगा सकते हैं। इस तरह, ये भी कोई ठोस आप्शन नहीं है। इतनी पूंजी होगी नहीं कि नून तेल लकड़ी की ही दुकान खोल दूं। इसलिए आज मैं इस कंप्यूटर को साक्षी मानकर कहता हूं कि मैं रिटायरमेंट के बाद एक ऐसा स्कूल खोलूंगा जिसमें कामयाब चापलूस बनने की तालीम दी जाएगी। और इस स्कूल का नाम होगा..इंडियन इंस्टीट्यूट आफ चमचागिरी...। लेकिन इसके साथ ही एक सवाल खुद खड़ा होगा कि जिसे चमचागिरी करने नहीं आई वो भला इस तरह का स्कूल क्या खाक चलाएगा...?
प्राइवेट जाब वालों को रिटायरमेंट की चिंता सताती है। मुझे भी सताने लगी है। पांच सालों से जर्नलिज्म में हूं, अभी तक तो कोई तीर मार नहीं पाया। स्यूडो अपर मिडिल क्लास होने की फिराक में सिर पे हजारों का कर्जा हो गया है सो अलग। यही नहीं, ईश्वर ने मेरे शरीर के किसी हिस्से में सुर्खाब के वो पर भी नहीं लगाए जिनकी मदद से मेरे कई सारे बैचमेट और जूनियर्स कामयाबी की नई बुलंदियां हासिल कर रहे हैं। और लगता नहीं कि निकट भविष्य में साइंटिस्ट सुर्खाब के पर डेवलप कर पाएंगे। मान लीजिए, कर भी लिया तो इस बात की क्या गारंटी है कि उनके लिए जरुरी जीनोम संरचना मेरे शरीर में मौजूद हो। कुल मिलाकर बायोलाजिकली मैं इसके लिए फिट साबित हो जाऊं, इस बात की भी गारंटी नहीं है। खैर, जर्नलिज्म से उठाकर फेंक दिए जाने के बाद कौन सा धंधा कर पाउंगा...बहुत सोचा। माथापच्ची की। मेरे एक मित्र ने बताया कि वो वेस्ट मैनेजमेंट में कुछ करने की सोच रहा है। एक ने कहा कि वो किसी जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट में फैकल्टी हो जाएगा। किसी ने कहा कि वो गांव जाकर खेती बाड़ी संभालेगा। मैंने भी इन तमाम धंधों के बारे में सोचा। वेस्ट मैनेजमेंट करना इसलिए मुश्किल लगा क्योंकि इसके लिए जरुरी साफ्टवेयर मेरे भीतर नहीं है। अगर कबाड़ से जुगाड़ करने की काबिलियत रखते हों तो ये फील्ड ठीक है, अगर नहीं तो आप खुद ही कबाड़ हो जाएंगे। और यही वो डर है जो इस फील्ड के लिए जरुरी साफ्टवेयर मेरे भीतर इंस्टाल नहीं होने देगा। लिहाजा इस आप्शन को मैं टेक्निकली सपोर्ट नहीं करता। जहां तक बात पत्रकारिता पढ़ाने की है, तो भईया..वो आदमी भला क्या पत्रकारिता पढ़ाएगा जो खुद इस फील्ड में इतनी कमाई नहीं कर पाया कि उसे रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ सोचना न पड़े। मुझे तो लगता है अगर मैं फ्री में भी पढ़ाने को तैयार हो जाऊं तो कोई लड़का पढ़ने को तैयार नहीं होगा। आफ्टर आल इट्स आल अबाउट मेकिंग मनी। इस तरह उस धंधे से भी कमाई नहीं कर पाऊंगा जिसके लिए पूरी जिंदगी लगा दी। ले देकर अब अपनी खेती बाड़ी देखनी होगी। उसमें भी सोचने वाली बात ये है कि तब तक मेरे नाम में एक धूर भी जमीन हो..तब तो ये आप्शन मेरे सामने बचा रहे। लेकिन मेरे खानदान में जिस तरह से जमीन जायदाद घटती चली गई उसे देखकर तो इसकी उम्मीद रखना खुद को गफलत में रखने में जैसा है। मसलन आज से ४० साल पहले मेरे परिवार के पास कुल ३०० बीघे जमीन जायदाद हुआ करती थी। लेकिन आज की तारीख में हम दो भाइयों के हिस्से बमुश्किल १० बीघे जमीन है। अब तो आप खुद ही भविष्य का अंदाजा लगा सकते हैं। इस तरह, ये भी कोई ठोस आप्शन नहीं है। इतनी पूंजी होगी नहीं कि नून तेल लकड़ी की ही दुकान खोल दूं। इसलिए आज मैं इस कंप्यूटर को साक्षी मानकर कहता हूं कि मैं रिटायरमेंट के बाद एक ऐसा स्कूल खोलूंगा जिसमें कामयाब चापलूस बनने की तालीम दी जाएगी। और इस स्कूल का नाम होगा..इंडियन इंस्टीट्यूट आफ चमचागिरी...। लेकिन इसके साथ ही एक सवाल खुद खड़ा होगा कि जिसे चमचागिरी करने नहीं आई वो भला इस तरह का स्कूल क्या खाक चलाएगा...?
( ये इस श्रृंखला का पहला लेख था। दरअसल लिखते - लिखते बहुत ज्यादा हो गया। इसलिए ब्लाग जैसे माध्यम की बाध्यताओं के मद्देनजर मुझे लगा कि इसे कई कड़ियों में पेश करना ठीक रहेगा। लिहाजा चमचागिरी स्कूल खोलने से जुड़े दूसरे पहलुओं पर अगले अंकों में बात होगी..)
4 comments:
अरे वाह भाई जिन खोजा तिन पाईयां । हमें इसी की तलाश थी, कल रात को काफी देर तक इस संबंध में लिखने का प्रयास करते रहे । आज आपके इस पोस्ट को देख कर खुशी हुई , अब चलिए हम भी ठेल देते हैं एक पोस्ट इस पर ज्ञान चतुर्वेदी जी बुढा रहे हैं इस पर लिख लिख कर ।
आरंभ
महामना आपका की सूर्य की किरणो के समान चमकती प्रतिभा के कायल इस अंकिचन को अपने स्कूल का प्राचार्य बनने का सौभाग्य प्रदान करे,मै उम्मीद करता हू आप जैसे दिव्य सोच और गुणो वाले व्यक्तित्व के साथ रहने का सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा,(ज्यादा मक्खन तो नही लग गया...?)
मैं फैकल्टी के लिए आवेदन करना चाहता हूं फारम कौन देगा
are maharaj tab to apna dept usi me marj kar jaayaega,ek baar hamare yaha campus selection karayae plz, man maafik aadmi milenge.
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