-विवेक सत्य मित्रम्
बचपन में हिंदी की परीक्षा में मुहावरों का वाक्य प्रयोग करने के नंबर मिलते थे। सुबह सुबह अखबार में एक खबर देखी डील पर लेफ्ट ने फिर तरेरी आंखें। पढ़ते ही कुछ मुहावरे जेहन में सरपट चले आए। मसलन थूक कर चाटना, उल्लू बनाना और बिना पेंदी का लोटा। पता नहीं क्यों, इस मुद्दे पर गंभीरता से बात करने का मन नहीं हो रहा। नंदीग्राम पर गर्दन फंसी तो आनन फानन में यूपीए को आईएईए में जाने की इजाजत दे दी। मातमपुर्सी का दौर खत्म हुआ, बुद्धदेव ने माफी मांग ली, बिफरे हुए वामपंथी बुद्धिजीवियों ने माफ कर दिया। कुल मिलाकर जब मीडिया से नंदीग्राम गायब हुआ तो फिर से वही ढांक के तीन पात। फिर से वही अमेरिकी साम्राज्यवाद का रोना गाना और एक बार फिर वही मिड इलेक्शन के लिए तैयार रहने की गीदड़ भभकी। कांग्रेस और बीजेपी तो पहले से ही गई गुजरी थीं, अब ये लेफ्ट वाले भी वही थूककर चाटने की स्टाइल में रहने लगे हैं। वाकई अब तो मुझे इन आम आदमी की चिंता में दुबले होने वाले नेताओं पर भी घिन्न आने लगी है। यार कोई एक बात तो करना सीखो... नरक कर दिया है। अपनी बात से पलटने के पीछे लाजिक ये कि मिड इलेक्शन टालने के लिए उस वक्त यूपीए को इजाजत दे दी थी, ताकि बीजेपी को गुजरात इलेक्शन में फायदा न हो जाए...। बीजेपी से इतना डर आखिर क्यों ? ! पता नहीं क्यों पर आज सभ्य लहजे में बात करने का मन नहीं हो रहा, मेरी बात का बुरा न मानें। इनकी दोगली सियासत देखकर मन खट्टा हो गया है...।
2 comments:
अच्छा है जनाब. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ. तीनों मुहावरे भी बिल्कुल सटीक बैठे हैं.
सभी ऐसे ही हैं.
क्या किया जा सकता है?
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