विवेक सत्य मित्रम्
( 'मेरा गांव - मेरा देश' श्रृंखला की कड़ी में ये पहला लेख है। गाजीपुर जिले के जमानियां का रहने वाला हूं। लिहाजा जमानियां को जिस रुप में मैंने देखा है, उस पर अपनी समझ दर्ज करा रहा हूं। आप में से बहुत से लोग शायद नहीं जानते होंगे कि जमानियां भगवान परशुराम की जन्मभूमि है। मुझे इस बात का गर्व तो है कि मैं भी उसी मिट्टी में पैदा हुआ, लेकिन इसे कुछ नहीं दे पाने का कहीं न कहीं मलाल भी है जो भीतर ही भीतर सालता रहता है। खैर, उम्मीद है आप लोग भी इस लेख श्रृंखला को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। )
गाजीपुर की एक तहसील जमानियां। जी हां, वही गाजीपुर जिसे कभी कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके डा. मुख्तार अंसारी के नाम से लोग जानते थे। और आजकल, माफिया डान मुख्तार अंसारी के नाम से जानते हैं। खैर, गाजीपुर मेरा जिला है, और जमानियां मेरी तहसील। यहां के बाशिंदों की जुबान पर एक जुमला अक्सर आकर ठहर जाता है। ‘जमाने से आगे जमानियां….’। लेकिन मैं आज तक समझ नहीं पाया कि लोग ऐसा कहते क्यों हैं...खैर, मिलते हैं जमानियां से।
ज्योग्राफी के लिहाज से जमानियां दो हिस्सों में बंटा है...जमानियां स्टेशन और जमानियां कस्बा। जिस जमानियां को मैंने जिया है, वो जमानियां कस्बा है..जहां तहसील, थाना, अस्पताल, मिडिल स्कूल, गर्ल्स स्कूल और हेड पोस्ट आफिस है। यानि कि मोटे तौर पर आप जमानियां कस्बे को डेवलपिंग और जमानियां स्टेशन को अंडर डेवेलप्ड कह सकते हैं।
जमानियां मेरे गांव किशुनीपुर से तीन किलोमीटर पश्चिम में है। इस हिंदू बहुल कस्बे में मुसलमानों की आबादी भी ठीक ठाक है। दो अलग अलग-मजहबों के लोग यहां एक दूसरे की जिंदगी में इस तरह रच बस गए हैं कि आपके लिए बातचीत के लहजे और बाकी चीजों से उन्हें पहचानना थोड़ा मुश्किल होगा। दशहरा और दुर्गा पूजा जैसे मौकों पर मजहबी भाईचारे की जबरदस्त मिसाल आपको यहां देखने को मिल सकती है।
नाम की बात करें तो जमानियां नाम मुगलकाल की पैदाइश है। नहीं तो, कभी इस कस्बे को जमदग्नियां तो कभी मदन बनारस के नाम से जाना जाता था। हो सकता है आप में से बहुतों ने इस कस्बे का नाम न सुना हो लेकिन हकीकत ये है कि ये कस्बा ऐतिहासिक तौर पर बेहद समृद्ध रहा है। और इसका पौराणिक महत्व तो इसे किसी भी बड़े शहर से ज्यादा बड़ा बना देता है।
विष्णु के अवतारों भगवान राम और कृष्ण की जन्मभूमि को कौन नहीं जानता। लेकिन ये जमानियां का दुर्भाग्य ही है कि इतनी उर्वरा धरती के बारे में गिने चुने लोगों को ही जानकारी है। दरअसल विष्णु के ही एक और अवतार भगवान परशुराम का जन्म जमानियां में हुआ था। आपने गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाते हुए राजा भगीरथ के ऱथ का पहिया फंसने की कहानी भी सुनी होगी। ये वाकया भी इसी जमीन पर पेश आया था। आजकल उस जगह को चक्काबाँध कहा जाता है।
आपको ये सब कुछ जानकर हैरानी हुई होगी। पौऱाणिक तौर पर समृद्ध कस्बे को कोई नहीं जानता। और आपकी ये हैरानी ही असल में मेरे जैसे तमाम लोगों के लिए एक सजा है जो खुद को इस मिट्टी से जोड़कर देखते हैं। लेकिन औरों की बात क्या करुं मैं खुद इस माटी का गुनहगार हूं। पिछले पांच सालों से दिल्ली में हूं लेकिन इस बारे में कुछ भी कहने सुनने की जहमत पहली बार उठा रहा हूं।
जमानियां में रहने वाले लोग अपनी विरासत को लेकर कितने सचेत हैं इसका नमूना है यहां का परशुराम मंदिर। आप सोच रहे होंगे कि ये मंदिर बहुत ही भव्य होगा तो जनाब ये आपकी गलतफहमी है। हालांकि इस मंदिर को किसी राजा ने बनवाया था लेकिन इसे देखकर गांव गिरांव में बने शिवालों की ही याद ताजा हो पाएगी। उपेक्षा का आलम ये है कि इसकी रंगाई पुताई भी समय से नहीं हो पाती है और कुछ लोग तो इसके पीछे पेशाब करने से भी नहीं हिचकते।
कुछ सालों पहले बाबूजी ने परशुराम जयंती मनाने की पहल की थी। कुछ वक्त तक बहुत ही जोशो खरोश के साथ ये कार्यक्रम चला। लेकिन खाने कमाने में लगे यहां के बाशिंदों का रुझान इसे जारी रखने में एक बड़ी बाधा साबित हुआ। दो चार सालों में जयंती मनाने का उत्साह ठंडा पड़ गया। और ले देकर फिर वही...ढांक के तीन पात।
अब बात कर लेते हैं इस कस्बे की सियासत की। राम मंदिर आंदोलन के दौरान जमानियां विधानसभा सीट से बीजेपी जीती भी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद इस तहसील का माहौल बदल गया। तहसील पर बैठने वाले नेताओं की डील डौल, बोल-चाल और चाल-ढ़ाल देखने से ही पता चल जाता था कि लखनऊ की गद्दी पर किसी यादव का कब्जा हो चुका है। खैर, इस क्षेत्र में यादवों का वर्चस्व है, सो ये तो होना ही था।
जमानियां विधानसभा सीट से सपा का उम्मीदवार लगातार दो बार चुनाव जीता लेकिन जमानियां कस्बे को विकास के नाम पर कुछ भी नहीं मिला। हालांकि सड़क, गंगाजी के घाटों का पक्का निर्माण, बिजली की व्यवस्था जैसे कई बुनियादी सवाल कायम रहे, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। इस बार के चुनावों में दलित ब्राह्मण गठजोड़ ने यहां भी रंग दिखाया है लेकिन क्या कुछ बदलेगा ये तो वक्त बताएगा।
जमानियां के गंगाजी के घाटों, पीपे के पुल, और यहां के मशहूर जय हलवाई के समोसों का जिक्र आए बिना इस कस्बे की मुकम्मल तस्वीर बनाना बहुत मुश्किल है। आपको चलते – चलते ये जरुर बताना चाहूंगा कि बाकी मामलों में जमानियां की हालत चाहे जैसी हो। मोबाइल धारकों की तादाद यहां गजब है। बड़े शहरों में रहने वाले लोगों के पास शायद वो मोबाइल फोन न हों...जो यहां के निम्न मध्यम वर्ग के हाथों में दिख जाएंगे। चलते-चलते एक और रोचक जानकारी। बालीवुड के जाने माने फिल्म अदाकार आमिर खान का ननिहाल इसी कस्बे के पठानटोली मुहल्ले में है।
अगर ये सब जानकर आपको समझ में आ गया हो कि जमानियां जमाने से आगे क्यों है...? तो बताइएगा जरुर....।
5 comments:
भाई साहब... कहीं परशु उठा लेने के मूड में तो नहीं हैं?
सचमुच, पौराणिक दस्तावेज को समेटे जमनिया जमाने से आगे है। मै तो गाजीपुर को बीर अब्दुल हमीद के नाम से जानता था, लेकिन जानकर दुख हुआ कि लोग इसे मुख्तार अंसारी के नाम से जानते हैं। वैसे इसके किस्से काफी रोमांचक हैं। मैं इससे वाकिफ नहीं था। पढ़कर जानकारी भी मिली।
सत्येन्द्र जी, सोचने समझने की क्षमता थोड़ी कम है। इस वजह से आपकी टिप्पणी समझ में नहीं आई। इसे थोड़ा और साफ करें तो बड़ी मेहरबानी होगी।
वाकई जमनियां बहुत आगे हैं, लेकिन सबसे अच्छी बात जो आपने बताई, वो है यहां के लोगों का साम्प्रदायिक सदभाव। हिंदू, मुसलमान का एक साथ रहना। खुशियां बांटना। वाकई जमनियां इस जमाने से आगे हैं। जहां आज भी जात-पात को लेकर दंगे फसाद हो रहे हैं। लेकिन मुख्तार अंसारी की वजह से गाजीपुर प्रसिद्ध है। ये आप अपने जिले की बड़ाई कर रहे हैं। या खिचाईं।
Post a Comment