Saturday, May 24, 2008

आरुषि..! अच्छा हुआ हम नहीं मिले

- विवेक सत्य मित्रम्

अच्छा हुआ-
हम कभी किसी चौराहे,
किसी गली या फिर-
किसी नुक्कड़ पर नहीं टकराए-
अच्छा हुआ-
तुम उन तमाम लड़कियों में-
कभी शऱीक नहीं थी-
जो गाहे बगाहे-
मेरे ख्वाबों का हिस्सा बनीं-
अच्छा हुआ-
हमारी जिंदगी के सभी रास्ते-
अलग-अलग रहे-
कभी साझा नहीं हुए-
अच्छा हुआ-
कोई ऐसी लड़की नहीं गुजरी-
मेरी नजरों से-
जिसके चेहरे से मिलता हो-
तुम्हारा चेहरा-
वरना-
मुश्किल होता, मेरे लिए-
तु्म्हारी खूबसूरत तस्वीर पर-
वो हर्फ उकेरना-
जिनसे टपक रहा हो खून-
मुश्किल होता, मेरे लिए-
खड़े करना सवाल-
तु्म्हारे चरित्र पर-
मुश्किल होता, मेरे लिए-
हाथ पर हाथ रखे...
देखना वो तमाशा-
जिसमें शामिल रहा मैं भी-
शुरु से आखिर तक-
बना रहा हिस्सा-
भेड़ियों के भीड़तंत्र का।
आरुषि...!
अच्छा हुआ हम कभी नहीं मिले।

8 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

विवेक जी,

कल से मीडिया द्वारा परोसी जा रही गंदगी से आक्रोशित था...आपकी रचना नें राहत दी है कि कलमकार अब भी जगे हैं, संवेदन शील हैं।

मुश्किल होता, मेरे लिए-
हाथ पर हाथ रखे...
देखना वो तमाशा-
जिसमें शामिल रहा मैं भी-
शुरु से आखिर तक-
बना रहा हिस्सा-
भेड़ियों के भीड़तंत्र का।
आरुषि...!
अच्छा हुआ हम कभी नहीं मिले।

आपकी संवेदनशीलता को नमन..

***राजीव रंजन प्रसाद

योगेन्द्र मौदगिल said...

aapki samvedna pranamya hai

sushant jha said...

यह कविता...झकझोड़ती है..सारे रिपोर्ताज और न््यूज चैनल््स की सारी लफ््फाजी इस कविता के सामने बौनी दिखती है...कम से कम ..कविता के क्षेत्र में इतने बेहतर और संवेदना से भरपूर पेशकश की उम््मीद आप से नहीं थी..बधाई स््वीकार करें...

bhupendra said...

मेरी दिल की बात आपने कह दी। अब कहने को कुछ नहीं। कविता बेहद शानदार है।

अनिल कुमार वर्मा said...

विवेक जी, पिछले एक हफ्ते से एक अजीब से घुटन महसूस कर रहा था। जब से आऱुषि हत्याकांड प्रकाश में आया तब से लेकर कल तक जब पुलिस ने इसके खुलासे का दावा किया एक अजीब सी उधेड़बुन में रहा कि इस घटना को लेकर अपने विचार कैसे व्यक्त करू लेकिन समझ नहीं पाया। थक हार कर अपने व्लॉग पर एक लेख लिखा लेकिन संतुष्टि नहीं मिली। ब्लॉग सर्च के दौरान आरुषि हत्याकांड से जुड़ी आपकी कविता पढ़ी तो मन को सुकून हासिल हुआ। धन्यवाद।

Udan Tashtari said...

अति संवेदनशील रचना.

Anonymous said...

you are the only blogger who thought of paying a tribute to the departed soul thanks

रंजू भाटिया said...

बहुत ही दिल क छु लेने वाली रचना लिखी है ..सच में मिडिया ने एक तमाशा बना दिया है .बहुत ही भावुक कर देने वाली संवेदन शील रचना है यह .