हैलो क्या हाल चाल है ?
क्योंकि -
रात अच्छी नहीं बीती
सपने थे पर डरावने
कुछ बता देने की चाह रखने वाले
काले ;
चमगादड़ों को हाँक देने वाली
हवा
सनसनाती रही
झुलसती रही उलझती सी
सायरन बजाती चल निकली
नक़ली ;
चुभन बाक़ी है अभी तलवे में
गिट्टी की
अजीब सी रगड़ की आवाज़ के साथ
जमा हुआ ख़ून है ;
हुँह !
ख़ून है !
ओ !!! सोये नहीं ?
2 comments:
कैसे सोयें-आप लिख जो रहे हैं. वाह वाह कौन करेगा फिर?? :)
मैं सोता हुआ सोंच रहा था कि क्या यहीं आदमी शुक्रवार को मंडी हाउस के बगल में टहल रहा था...बिंदास सा...या कोई और था..जिसके चेहरे पर कभी कोई शिकन नहीं आती..
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