Wednesday, May 28, 2008
ब्लॉ-ब्लॉ ब्लॉग
ब्लॉ, ब्लॉ-ब्लॉ, ब्लॉ-ब्लॉ, ब्लॉ-ब्लॉ,ब्लॉ...ये तरजुमा है उस विज्ञापन का जिसमें बाकी न्यूज चैनलों की छीछालेदर करके खुद को अच्छा बताया जाता है। पिछले कई दिनों तक जो ब्लॉगवार चला उसमें भी मुझे ऐसा ही कुछ दिखाई देता है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के बहाने तो हर वक्त चलते रहते हैं। किसी को बढ़ती टीआरपी से चिढ़ है तो किसी को बढ़ती बौद्धिकता से...आरोपों की हकीकत चाहे जो हो हर बार शिकार होते हैं आम लोग। बड़े नेताओं पर आरोप जितना हो-हल्ला करके लगते हैं उससे कई गुना ज्यादा शांति से सुलट जाते हैं, बस मारी जाती है बेचारी भोली-भाली जनता। जनता टक-टकी लगाए देखती रहती है, कि अब क्या होगा, अब क्या होगा। सुबह-सुबह फारिग होने से ज्यादा अखबार आया कि नहीं इसी की चिंता ज्यादा रहती है। लेकिन मामला धीरे-धीरे ठंडा पड़ता जाता है और एक दिन पता चलता है, अरे फलनवां तो बाइज्जत बरी हो गया हो..नहीं पता क्या!...वही हाल हमारा है..जिन लोगों ने आज तक एक शब्द भी नहीं ब्लॉग पर वो भी पूछते फिर रहे हैं, अरे क्या हुआ भई, फलनवां का? सही में ऐसा कुछ हुआ क्या? और ब्लॉग एग्रीगेटर खोलिए तो वहां भी वही सब परसों रात के बचे चिकन की तरह कुलबुला रहे हैं। मेरा तो मन भन्ना गया है। इसीलिए कई सारे ऐसे ब्लॉग पर गया जहां कुछ शांति मिल सके.खैर,मन में तो मेरे भी है कि आगे क्या होगा?
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