Thursday, May 29, 2008
आ जा भिड़ जा
गौर से देखिए इस कार को ये फंसी हुई है रेल की पटरी पर...और उस ओर से आ रही है ट्रेन तेज रफ्तार से...और ये कार नहीं निकल रही है। क्या होगा इसका? गौर से देखिए, जरा नजदीक से देखिए, आइए एक बार फिर देखिए....ये नजारा है आजकल न्यूज चैनलों पर चलने वाले प्रोग्राम का...अरे भई ऐसे में कार के परखच्चे उड़ जाएंगे...कार में अगर कोई है तो उसकी जान चली जाएगी..और क्या होगा. इसको सरेआम सबको दिखाने का क्या मतलब! सबको डराना चाहते हैं या किसी की जान जा रही है और आप उस पर मसाले लगाकर तड़के के साथ मजा ले रहे हैं और दर्शकों को भी मजा लेने को कह रहे हैं। कहां हुई ये घटना,कब हुई,क्यों हुई....इन सब सवालों के जवाब नदारद। बस, कहीं से हेलीकाप्टर के टकराकर क्रैश होने की वीडियो दिखाने लगे तो कहीं किसी कलाबाज के उड़ने को बार-बार दिखाने लगे...और बार-बार ये कह के कि अब देखिए आदमी भी चि़ड़िया की तरह उड़ रहा है, जरा दूर से देखिए, जरा पास से देखिए...आपको लग रहा होगा कि कैसे उड़ रहा है, अबे, सभी दर्शकों को बेवकूफ समझ रखा है क्या! इतनी भी अक्ल नहीं कि पीठ पे बंधा बड़ा-सा झोला दिखे, हांय!...और तब तो हद ही लग रही है जब कुत्ते, बिल्ली, बाघ, बंदर पर भी अपनी मीडियागिरी दिखाने लगे, बाघ की आवाज भी निकलने लगी, बंदर की आवाज भी...वाह क्या कला है, वाह, भई कमाल है...अरे कमबख्तों ऐसा नहीं कि दुनिया में कोई खबर नहीं बची जिसमें दर्शकों की रुचि जग सके। वास्तव में खबर दिखाओगे तो पब्लिक उसे सीरियसली देखेगी और सराहेगी कि आज मीडिया ही बची है जिससे कुछ आस है....इन सबके बीच एक चैनल पर ये भी तो दिखाया जा रहा है कि कैसे एक आदमी पिछले 18 सालों से लगातार इंसाफ की चौखट पर एड़ियां रगड़ रहा है, और बदले में उसे कंगाली के अलावा कुछ नसीब नहीं हो रही. बेचारा कोलकाता से भीख मांग-मांग कर किसी तरह दिल्ली आता है, तारीख पे तारीख...तारीख पे तारीख बढ़ती जाती है और इसी तरह उसकी बेचैनी भी बढ़ती जाती है,उसकी घुटन बढ़ती जाती है...पब्लिक की उस बेचैनी को महसूस करो शर्म के सौदागरों...!
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2 comments:
मैं आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ। आजकल न्यूज़ चैनेल भी घटिया तमाशा दिखाने वाले बहुरुपिओं का काम कर रहा है अन्धविश्वास फैला रहा है और सनसनीखेज ख़बर दिखाने की होड़ मे अनर्गल तरीको को अपना कर अपनी रेटिंग बढाने मे लगे हुए है.
media pe bharosa abhi barkarar hai...lekin halat yahi rehe to wo din dur nahi jab kisi ko ye batane par ki ham journlist hai to log kuch aur hi samjhe...
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