Saturday, May 17, 2008
एक सेकुलर स्टेट में......
ताज महल, प्रेम का अद्भुत स्तंभसारी दुनिया यही जानती और मानती है,लेकिन यह केवल प्यार का स्तंभ नहीं है,यह गवाह है असुरक्छा का,यह गवाह है एक मुसलमान के प्रेम का,जिसने भारत में प्रेम किया,यहाँ प्रेम वर्जना की वस्तु है,शायद इसीलिए शाहजहाँ ने,अपने प्रेम को दीर्घकालिक बनाने के लिए ताज का निर्माण कराया,अजीब बात है मैं यह सब क्यों कह रहा हू,जबकि सारी दुनिया जानती है।लेकिन दुर्भाग्य इस प्रेम के प्रतीक का,कोई प्रेमी नहीं खाता कसम ताज कीक्यों खाते है प्रेमी कसमे लैला और मजनू कीहीर और रांझा की ?यह महज विडम्बना नहीं है,यह है एक राष्ट्र की मानसिकता,हिन्दू राष्ट्र की मानसिकता,पुरुष प्रधानता की मानसिकता,अकबर महान ने प्रेम किया जोधा बाई से,लेकिन नहीं बनवाया कोई ताज महल,शुरू किया दीने इलाही,जहाँ पर लोग स्वतंत्र हो अपनी स्वतंत्रता व पसंद के साथ,क्यों रह गयी यह कहानी अधूरी?क्यों आज भी प्रेम वर्जना की वस्तु है,एक सेकुलर स्टेट में?
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1 comment:
प्रेम क्या क़समें खाने की चीज है? जो प्रेमी क़समें खाते है वह किसे अपने प्रेम का विश्वास दिलाना चाहते हैं, ख़ुद को या प्रेमी को? अब यह प्रेमी ताजमहल की कसम क्यों नहीं खाते यह तो वही बताएँगे. लेकिन इस सब का हिन्दू राष्ट्र की मनासिकता और पुरुष प्रधानता की मानसिकता से क्या सम्बन्ध है, यह मैं नहीं समझ पाया? पहली बात तो क्या कोई हिन्दू राष्ट्र है? दूसरी बात प्रेम तो स्त्री पुरूष दोनों करते हैं, इस में पुरूष मानसिकता कहाँ से आ गई?
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