Sunday, May 4, 2008

यूं ही...पर

बिन पासपोर्ट
गया था चांद पर
जागा रात भर
ठंड बहुत थी
पर मजा आया
पासपोर्ट के बगैर
हहा ! सोचो
- कृष्ण

1 comment:

sushant jha said...

वाकई....ये कविता ऊपर से गुजर गई...वैसे विद्वतजनों का कहना है कि वो कविता ही क्या जो समझ में आ जाए...खैर, चूंकि छोटी है...और पाठकों को बोर करने मे नाकाम है...इसलिए भी आप बधाई के हकदार हैं....