Monday, January 19, 2009
अरे भइया, कहां चांदनी चौक, कहां चाइना, इहां तो खाली जोकरई और कुंगफू
हम गए चांदनी चौक से चाइना, शुरुआत में तो लगा कि पहुंचिए जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे पता चला...कि भइया कहां चांदनी चौक है, अउर कहां चाइना, मुझे तो केवल दीपिका पादुकोण की खूबसूरती, अक्षय की जोकरई और कुंगफू ही नजर आया हर मिनट। मैं परसों गया था चांदनी चौक टू चाइना देखने, देखने से पहले ही अखबारों और वेबसाइटों में पढ़ा कि औसत दर्जे की है, बहुत बकवास है, महानिराशाजनक है। लेकिन प्रोमो देखकर गाने सुनकर फिल्म देखने का मोह नहीं छोड़ पाया। लेकिन फिल्म शुरू होते ही जैसे क्रिटिक्स की क्रिटिक याद आने लगी। अक्षय के पिछवाड़े पर मिथुन की लात पड़ना और उसके बाद सिद्दू बने अक्षय का हवा में उड़ते जाना,फिर वापस आकर जमीन पर गिरना। मिथुन की एक और लात और अक्षय फिर हवा में....कुछ मिनटों तक तो यही चलता रहा। भई अगर यही कॉमेडी है तो रियल कैरेक्टर क्यों चुनते हो भई, कार्टून फिल्म बना दो, ज्यादा हंसी आएगी। यहां हंसी आई तो समझ में आता है, लेकिन हंसी वहां भी आ गई जब फिल्म के विलेन होजो ने अपनी टोपी के जलवे दिखाए। जनाब, ऐसी टोपी हम सबके पास होनी चाहिए। जिसमें इतनी तेज धार हो, और भगवान श्रीकृष्ण के चक्र की तरह वो दुश्मन की गर्दन काटकर वापस आपके सिर पर आकर सवार हो जाए। इस टोपी ने तो हद तब कर दी जब कुंगफू सीख चुके सिद्दू ने उस टोपी से लू शेन की मूर्ति ही काट डाली। होजो की खासियत ये जादुई टोपी हो तब तो कुछ हजम हो जाता, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। होजो चीन का इतना बड़ा बड़ा गैंगस्टर है, लेकिन उसके गुर्गे गोली बंदूक नहीं चलाते, बल्कि खंजर, दांती, या चाकू से ही लड़ते हैं, लगता है उसने इन सब चीजों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है, ताकि कोई उसकी टोपी गोली से न उड़ा दे। होजो की टोपी का शिकार होते हैं सिद्दू के दादा मिथुन दा। सिद्दू बदला लेने के लिए कुंगफू सीखता है। ये कुंगफू कोई आम कुंगफू नहीं है जनाब। एक से एक शॉट्स और मूव्स हैं इसके। इस कुंगफू से सिद्दू पल भर में तूफान भी खड़ा कर देता है, इसका नाम है कॉस्मिक किक। बस एक फ्लाइंग किक सीने पर और उसके बाद आंख बंद कर कांसंट्रेट किया और आस-पास समुद्र में उठ गया बवंडर। जिसमें न तो सिद्दू उड़ा, न उसका दोस्त और न उसका कुंगफू गुरू। बस उड़ गया तो होजो का बेटा, जैसे सबसे लूज शंटिंग उसी की हो, बाकी सब तो पत्थर के बने हों। इन सबके बीच अच्छा हुआ कि सखी और सूजी की ठूंसी हुई कहानी की बदौलत दीपिका पादुकोण आती रहीं, वरना अक्षय की जोकरई से ९० के दशक की फिल्में याद आने लगतीं। पूरी फिल्म में बस एक चीज दिखी और वो थी कुंगफू की महानता। अगर आपको कुंगफू आती है तो आप बड़े से बड़े गैंगस्टर को भी नेस्तनाबूद कर सकते हैं।
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