Tuesday, September 1, 2009

फुटबॉल का दर्द...



फुटबॉल एक ऐसा खेल जिसको पैर से खेला जाता है.... इसको लात से भी मारा जाता है..... शायद क्रिकेट के क्रेज से इसको हर कोई लात से ही मार रहा है। इस खेल में खिलाडी़ जितना भी फुटबॉल को लात मारता है खेल में उतना ही मजा आता है। लेकिन फेडरेशन और प्रशासन का उदासीन रवैया के चलते ये खेल आज हासिये पर है। फुटबॉल को लात पड़ रहा है आज के भ्रष्ट प्रशासन का..... साथ में फेडरेशन का जहां पर देखिये भ्रष्टाचार ही इस खेल पर हावी..... आखिरकार राजनीतिक हलके के लोग क्यों इन खेलो पर कुदृष्टि रखे है.....क्यों संसद के गलियारे में चिल्ल-पों करने वाले राजनेता खेल के मैदान पर अपनी हेकड़ी निकालते है....जवाब ये निकल के आता है फेडरेशन में आने वाले सरकारी पैसा इन राजनेताओं को अपनी ओर खींचता है। खैर इस फुटबॉल को जिसको भूटिया का नेतृत्व दूसरी बार सरताज बनाया है उसका हाल बेहाल हो गया है। प्रफुल्ल पटेल जो कि एक राजनेता है उनका नेतृत्व फेडरेशन में एक राजनेता से इतर कुछ भी नहीं है। भारत में यहीं नेहरू कप है जो १९९७ से २००७ तक हासिये पर था....खैर ओएनजीसी की मदद कहे या फिर सरकार का शिगूफा.....नेहरू कप फिर से शुरू हुआ....और भूटिया ने दूसरी बार सीरिया को हरा कर कप पर कब्जा किया.....भारत में राजनीति हर गली और कुचे में देखी और समझी जा सकती है। उसका परिणाम खेल के मैदान में भी देखने को मिलता है..... किसी भी फेडरेशन की बात करे तो हर जगह इन राजनेताओं की एक अच्छी खासी जमात देखने को मिल जायेगी....लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम की दूसरी जीत को देख के लगता है कि इसको एक संजीवनी की जरूरत है।


आपका


विवेक

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