आखिरकार क्यों पुरबिया लोग पलायन करते है ......कारण अशिक्षा , बेरोजगारी , गरीबी और बढ़ते अपराध है । इनके पीछे क्या कोई यह जनता है की कारण कौन है ????? जवाब आता है वही राजनीती की अड़ंगेबाजी। बिहार में कभी लालू की कभी नीतिश की ..... उत्तर प्रदेश में माया मुलायम भी कम नही है । कहने को तो इन प्रदेशो में खनिज संसाधनों की कमी नही है लेकिन रोजगार के तो जैसे लाले पड़ गए है ।
उद्योग धंधो की कमी के चलते ये यू पी और बिहार के लोग महानगरो की ओर रुख करते है और वहां जगह भी बना लेते है । इसमे कोई संदेह नही है कि ये पुरबिया मेहनती और इमानदार है। लेकिन ये कम अपने यहाँ भी किया जा सकता है । इसके लिए जरुरत है सरकार क खिलाफ एक आन्दोलन कि एक क्रांति कि ।
क्यो ये पुरबिया मजबूर है पलायन के लिए ?
अब जवाब ये निकल के आता है यहाँ कि सरकार जो विगत पच्चीस सालो से यहाँ राज कर रही है । क्यों महाराष्ट्र और अन्य महानगरो में उत्तर प्रदेश और बिहार कि अपेक्षा रोजगार अधिक है । देश के संसद में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व ये पुरबिया ही करते है तो अपने प्रदेश में विकाश के नाम पे इनकी संख्या कम क्यो हो जाती है ?
हमारा ये मानना है की राज ठाकरे को दोष देने के बजाय ये पुरबिया अपने नेता लालू , नीतिश , मायावती , और मुलायम को दोष दे तो ज्यादा ठीक होगा । ये वो नेता है जिनके कारण ये पुरबिया पलायनवादी रुख अख्तियार करते है ।
कहते है राजनीती में सब जायज है तो राज ठाकरे की राजनीती भी एक तरीके से जायज है । जब ये उत्तर प्रदेश और बिहार के नेता अप्रत्य्क्ष्य रूप से प्रदेश को खोखला कर रहे है तो राज ठाकरे प्रत्यक्ष्य रूप से अपने वोट बैंक को मजबूत कर रहे है ।
देखना यह है की ये वोट की राजनीती कब तक चलती रहेगी ? कब तक हम मासूम जनता इन राजनीती के ठेकेदारों की बलि चढ़ते रहेंगे? ? ?
2 comments:
मेरे विचारों का समर्थन करने के लिये धन्यवाद्… यही बात मैंने आज से तीन-चार माह पहले भी लिखी थी, कि बिहारी लोग मेहनती और कर्मठ होते हैं, लेकिन लालू जैसे लोगों को सबक नहीं सिखाते बल्कि उनकी राजनीति के खिलौन बन जाते हैं… ये आजकल जो बिहार में ट्रेने रद्द करने का गेम चल रहा है उसके पीछे भी गहरी राजनीति है, वरना गुर्जर आंदोलन के वक्त जब तक पटरियां नहीं उखड़ गईं तब तक रेलें रद्द नहीं की गई थी, लेकिन पर्दे के पीछे की राजनीति यही है कि खुद रेलमंत्री चाहता है कि बिहार के लोग छठ और दिवाली पर अपने घर न पहुँच सकें और वह राज ठाकरे को आगे करके अपनी राजनीति खेलता रहे… लानत है बिहार के ऐसे नेताओं पर… यदि रेल और बिहार प्रशासन चाहे तो क्या वह आसानी से रेलें नहीं चला सकता? लेकिन फ़िर नीतीश, लालू और अबू आजमी जैसे नेता मुम्बई में अपनी राजनीति कैसे चमकायेंगे?
विचारणीय आलेख!!
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
Post a Comment