Monday, October 6, 2008

नाम नमाज, काम सड़क जाम

....कल मेरे जख्मों पे अपनी हंसी के धमाकों का बारुद छिड़कने के बाद आज रोने, गुस्साने या अपना ब्लड प्रेशर फ्चक्चुएट कराने के लिए तैयार हो जाइए....!! क्योंकि आज मैं बताऊंगा कि क्या वजह है अपने रोड एक्सीडेंट को शेरनी का चुम्मा करार देने की.....रोज की तरह कल भी मैं अपने घर से तकरीबन १२ बजे निकला था, लेकिन पता नहीं कैसे दशहरी रावण दिमाग में घुस गया...और मैंने ५४३ नंबर की बस की बजाय ऑटो पकड़ लिया...यहीं से मेरे जख्म अंदर ही अंदर कुलबुलाने लगे, बस सही मौके की तलाश में थे बाहर आने के लिए.....ऑटो के बाहर बस पर लदे लोग...स्कूटर और बाइक पर बंदर की तरह चिपके लोग...कार की एसी में भी झल्ला रहे लोग चले रहे हैं....मैं भी चला जा रहा हूं...ऑटो में लदकर...मुझे भी लग रहा है जैसे मैं लदा हुआ हूं किसी पर...क्योंकि जहां कहीं भी नजर दौड़ा रहा हूं...हर किसी में बस एक ही चेहरा दिख रहा है....बस एक ही चेहरा......खैर, इसकी चर्चा फिर कभी...ऑटो आखिर ऑफिस पहुंच गया...दिवास्वप्नलोक और स्वप्न सुंदरी के आकर्षण की तंद्रा टूटी.....जेब टटोली...केवल ६० रुपए...किराया हुआ था ८० रुपए...ऑटोवाले से बोला- आगे एटीएम ले चलो....एटीएम गया....लेकिन वही हुआ जिसका डर लग रहा था.....दशहरी रावण ससुरा पहले ही पहुंच गया था और एटीएम मशीन के अंदर सारा पैसा मुंह में दबाकर बैठ गया था...मैंने चार बार मुंह से पैसा खींचना चाहा मगर जैसे उसे कलियुग बाबा का स्पेशल आशीर्वाद त्रेतायुग में ही मिल गया था....एसबीआई और पीएनबी दोनों की एटीएम मशीनों ने कुछ भी उगलने से इनकार कर दिया....''अब क्या....अभी कौन होगा...ऑफिस में.....फलां...फलां...फलां.......हुंह किसी ने नहीं मागूंगा....फालतू में क्यों एहसान लूं किसी का......''...अंदर के जख्म दिमाग पे बड़ी चालाकी से हावी होकर हीहीहीही कर रहे थे......ऑटो वाले को एक नया आदेश मिला....गढ़ी चलो वहां एचडीएफसी का एटीएम है....पैसा निकाल कर दे दूंगा.....मुझे याद नहीं था कि उस दिन शुक्रवार है....और शुक्रवार को तो दुनिया के तमाम सफेद जालीदार टोपी वाले अपनी-अपनी टोपियां झाड़-पोंछकर शान से निकलते हैं......कबीरदास जी की भाषा में किसी बहरी अलौकिक शक्ति को खुश करने के लिए सड़क को अपनी बपौती, अपने बाप-दादा की जागीर समझ कर घंटा भर उलटते-पुलटते रहते हैं.......ओखला मंडी और गढ़ी से पहले इतना ट्रैफिक था जैसे ओखला में प्रलय आ रही हो और सारे लोग ओखला छोड़कर जाने पर आमादा हों और बीच में इबादत करने रुक गए हों........मेरा ऑटो एक रिक्शेवाले और उस पर बैठी एक दंपति को बचाने के चक्कर में जा टकराया....कत्लेआम बाइ फटाफट स्पीड के लिए मशहूर ब्लू लाइन बस से....मैं अभी भी उन्हीं ख्यालों में खोया...उसी चेहरे के पीछे दीवाना....बस फिर क्या था मेरे जख्मों के लिए भरपूर मौका था निकल पड़े मेरे अंदर बाहर आकर अट्टहास करने लगे.......ऑटो घूमा ४५ डिग्री के कोण पर मैं घूमा ९० डिग्री के कोण पर और धप्प...आवाज नहीं हुई....लेकिन सुनाई सबको दे गई...धरती मां ने काफी समय से मुझे गले नहीं लगाया था.....सो उस दिन उनकी हसरत पूरी हो गई.....कलेजे को ठंडक मिल गई.....और गले मिलने की निशानी भी देती गईं मुझे.....मेरे जख्म अब अपनी लंबी-लंबी लाल-लाल जीभ निकाल कर चिढ़ा रहे थे मुझे.....और यही नहीं पानी के बुलबुलों की तरह मोटे भी होते जा रहे थे.....बचपन में पढ़े गए चाचा चौधरी और बांकेलाल के कॉमिक्स याद आने लगे....सिर पर डंडा पड़ने के बाद आस-पास तारे मंडराने लगते थे और सिर के ऊपर एक लड्डू निकल आता था....चित्र में देखकर मैं खूब खीखीखीखी किया करता था...असलियत आज फोकस हो रही थी....मन में जो गालियां आ रही थीं और जिनके लिए आ रही थीं, बाहर निकल पड़तीं तो शायद आज दिल्ली सांप्रदायिक दंगों की आग में जल रहा होता......खैर, मैंने खुद से ज्यादा अपनी जुबान को सम्हाला और किसीतरह एटीएम से पैसे निकालकर ऑटोवाले को दिया....ऑफिस के वाश बेसिन में अपना हाथ धोते वक्त 'मर्डर' फिल्म का वो सीन याद आ रहा था जिसमें अस्मित पटेल, इमरान हाशमी का खून करने के बाद अपने हाथ धो रहा होता है........

(कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया...नईं!!!!...........कूल रहिए, मुझे पता है कुछ सवाल पेट में गुड़गुड़ाने के बाद ऊपर पहुंचकर कुलबुला रहे हैं आपके यक्क दिमाग में.......!, बस टिप्पियाइए, और प्रेशर कुकर की सीटी की तरह अपना ब्लड प्रेशर भी.......सीईईईईईईई........)

3 comments:

सौरभ कुदेशिया said...

bhaiyaa..sab sahi salamat to hai na..kuch toot phoot to nahi hui na?

Umeed hai jyaada serious chot nahi aai hogi

अखिलेश चंद्र said...

Shukra hai jaan bach gayi. Is muae Blue line ne to kitanon ko asamay hi upar pahuncha diya hai.Haan, aage se ATM ke sahare sab kuchh mat chhodana!

Anonymous said...

भाई...इसपूरे वाक. के बाद आपके हाथ के शानदार पहनावे को तो मैं देख चुका हूं...लेकिन पूरा वाक. इतना दिल्चस्प होगा...इसका अंदाजा नहीं था...मैं तो यही समझ रहा था कि हो न हो इसके पीछे भी उम्र का तकाज़ा है...जिसकी तोहमत हर बार मेरे साथ हुए हादसों के बाद मेरे उपर लगाई गई...लेकिन इस मानसिकता से मैं भी निकल नहीं पाया...ख़ैर शायद आपके हाथे ये किस्सा दर्झ होना था...शायद इसिलिए वारदात में मय आटो आप शामिल हो गए....ख़ैर अगली बार आप सावधान रहिएगा किसी ब्लू लाइन के आसपास से निकलते बक्त....क्योंकि ये किसी भी दूत से कम कतई नहीं है.....