(यह लेख मेरे मेल पर २ अक्टूबर को १२:२३ बजे ही आ गया था लेकिन प्रकाशित काफी लेट कर पा रहा हूं...इसके लिए माफी चाहूंगा...आपको बता दूं लेखक श्री विभूति नारायण चतुर्वेदी फिलहाल पीटीआई -भाषा में वरिष्ठ पत्रकार हैं...)
मोहनदास करमचंद गांधी और कस्तूरबा के खून से पैदा हुई संतति की संख्या बढ़कर सौ के पार हो चुकी है लेकिन इस खानदान की मौजूदा पीढ़ी को अब तक एक भी ऐसा मौका मयस्सर नहीं हो सका है कि वे एक साथ जुट सके। तारा से लेकर तुषार तक परिवार के सदस्यों को इसका मलाल भी है।
महात्मा गांधी के दूसरे पुत्र मणिलाल गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि यह नहीं हो पाया है। परिवार इतना फैल चुका है कि उसे एक साथ कर पाना मुश्किल हो गया है। उन्होंने बताया कि बापू और बा के चार पुत्रों हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास के पुत्र-पुत्रियों का वंश अब सौ से ऊपर हो चुका है और इस खानदान के कुल 130 सदस्य हिन्दुस्तान के अलावा दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया आदि देशों में रह रहे हैं। इसी संदर्भ में गांधी के तीसरे पुत्र देवदास गांधी की ज्येष्ठ पुत्री तारा भट्टाचार्य ने कहा कि हमारी मर्जी तो बहुत है कि हमें मिलना चाहिए लेकिन हम सब अपने-अपने क्षेत्रों में लगे हैं। इस बारे में सोच भी है कि सभी इकट्ठा हों लेकिन हो नहीं पाया है।
कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक न्यास की उपाध्यक्ष तारा ने बताया कि इस बारे में कोशिश की जा रही है और उन्हें उम्मीद है कि साल के अंत में ऐसा कोई समागम हो पाएगा। उन्होंने कहा कि विदेश में रहने वालों को जुटा पाना संभव नहीं हो पा रहा है लेकिन भारत में रहने वाले लोग समय समय पर मिलते रहते हैं और हमलोग खुश होते हैं।
करमचंद गांधी और पुतली बाई के सबसे छोटे पुत्र मोहन दास का विवाह मात्र 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से हो गया था और उनके चार पुत्र हुए और उसके बाद यह खानदान लगातार बढ़ा है। महात्मा ने हालांकि भारतीय आजादी की लड़ाई की कमान संभालने से पहले 1914 में ही परिवार का परित्याग कर दिया था और सभी भारतीयों को अपना मानस पुत्र मान लिया था लेकिन गांधी के सबसे बड़े पुत्र हरिलाल की चार संतानें हुई और उनकी सबसे बड़ी पुत्री नीलम पारिख पिछले साल मुंबई में गांधी के अस्थि कलश विसर्जन में शामिल हुई।
महात्मा के सबसे बड़े पुत्र से मेल न खाने की बात सभी लोगों को पता है और उन्होंने खुद लिखा भी है कि मेरे जीवन के दो सबसे बड़े खेद- दो लोगों को मैं कभी रजामंद नहीं कर सका- मेरे मुस्लिम दोस्त मोहम्मद अली जिन्ना और मेरे अपने पुत्र हरिलाल गांधी।
नीलम ने अपने पिता पर एक पुस्तक भी लिखी है- महात्मा गांधीज लास्ट ट्रेजर-हरिलाल गांधी जिसमें इस बात पर कुछ रोशनी डाली गई है। गांधी के दूसरे पुत्र मणिलाल गांधी के एक पुत्र अरुण गांधी और दो पुत्रियां सीता और इला हुई। अरुण हाल के दिनों में विवादों में भी घिर गए थे जब उन्होंने वाशिंगटन पोस्ट वेबसाइट पर एक आलेख प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने यहूदियों और इजरायल के बारे में कुछ टिप्पणी की। इस विवाद के बाद उन्हें अमेरिका के रोचेस्टर विश्वविद्यालय में उनके द्वारा स्थापित महात्मा गांधी शांति पीठ से इस्तीफा देना पड़ा।
अरुण गांधी के ही पुत्र तुषार गांधी हैं जो फिलहाल कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और पेशे से बैंकर हैं। वह सामाजिक और राजनीतिक कार्यो में लगे हैं। महात्मा के तीसरे पुत्र रामदास की पुत्री सुमित्रा गांधी कुलकर्णी राज्यसभा [1972 से 1976] की सदस्य रहीं और आपातकाल के मुद्दे पर इंदिरा गांधी से उनका मतभेद हुआ। उन्होंने गांधी पर एक पुस्तक अनमोल विरासत लिखी और देश के राष्ट्रपति पद के चुनाव में उतर कर सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचने का प्रयास भी किया। गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी खुद हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक रहे और उन्हें कभी-कभार बापू के निजी सहायक के तौर पर साबरमति आश्रम में काम करने का भी मौका मिला। देवदास के एक पुत्र गोपाल कृष्ण गांधी मौजूदा समय में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं और उन्होंने पूर्व में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के तौर पर विभिन्न देशों में भारतीय मिशनों में काम किया जिसमें श्रीलंका भी शामिल है जहां से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया।
देवदास गांधी के एक अन्य पुत्र राजमोहन गांधी भी राज्यसभा के दो साल तक सदस्य रहे और उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा। राजमोहन ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं। उनके सबसे छोटे भाई रामचंद्र गांधी पिछले साल जून में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मृत पाए गए थे जो पेशे से दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे और फक्कड़ी उनके मिजाज में थी। गांधी खानदान की अब पांचवीं छठीं पीढ़ी पैदा हो चुकी है और महात्मा गांधी हिज अपोस्टल्स पुस्तक के लेखक वेद प्रकाश मेहता के अनुसार गांधी खानदान के लोग कई देशों में जीवन बीमा बेचने से लेकर अंतरिक्ष इंजीनियरिंग तक के क्षेत्र में सक्रिय हैं। पोरबंदर से लोकसभा का चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले तुषार ने गांधी रक्त वंशजों के राजनीति में सफल नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि मैं समझता हूं कि शायद हमारी काबलियत में वह नहीं है जो आज राजनीति में सफल होने के लिए चाहिए। बापू ने अपने जीवनकाल में परिवार को कभी आगे नहीं बढ़ाया और इसका सम्मान उस समय परिवार ने भी किया और राजनीति तथा सार्वजनिक जीवन से दूर रहा। उन्होंने कहा कि मेरे चाचा [राजमोहन], बुआ [सुमित्रा] और मैंने कोशिश की। हमारे में वह काबलियत नहीं है जो जरूरी होती है। जो निपुणता चाहिए वह शायद नहीं है। तुषार ने कहा कि उन्होंने 1998 में लोकसभा पहुंचने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सके। तुषार पहले समाजवादी पार्टी के सदस्य थे। उन्होंने बताया कि उनकी एक बुआ इला गांधी दक्षिण अफ्रीका में वहां की संसद की सदस्य रहीं। मणिलाल गांधी की पुत्री इला 1994 से 2004 तक दक्षिण अफ्रीकी संसद की सदस्य रहीं और वह गांधीवाद के प्रचार प्रसार में सक्रिय हैं।
महात्मा गांधी के परिवार के भारतीय राजनीति में सफल नहीं रहने के बारे में गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि जिस तरह का संरक्षण अपने बच्चों को देकर अन्य राजनेता उन्हें आगे बढ़ाते हैं गांधीजी ने वह संरक्षण नहीं दिया। वे मानते थे जिनमें क्षमता है वे खुद आगे बढ़ें। यह पूछे जाने पर कि समाज को क्या गांधी परिवार से राजनीतिक उम्मीद करनी चाहिए उन्होंने कहा समाज को किसी परिवार से नहीं बल्कि चिंतन से उम्मीद रखनी चाहिए। यह गांधीवादी चिंतन ही है जो गोपालकृष्ण गांधी [पश्चिम बंगाल के राज्यपाल] को अग्रिम पंक्ति में खड़ा करता है।
1 comment:
aapne gandhiji aur unke parivaar ke baare mein bahut hi rochak jaankari di hai.
Iss lekh ke liye aapko badhai dena chahta hoon.
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