Sunday, September 21, 2008

मैं कब बनूंगा आतंकवादी

मेरे जैसे लोग क्य़ों बन जाते हैं आंतकवादी....पढ़ने वाले ..लिखने वाले...परिवार से प्यार करने वाले ...जिंदगी से प्यार करने वाले...मौत से डरने वाले.....नौकरी करने वाले ...महत्वाकांक्षी...पैसा कमाने की जिद पाले हुए....दुनिया को खूबसूरत मानने वाले...कम्प्यूटर पर गिटपिट करेन वाले......मोबाइल इस्तेमाल करने वाले...लड़कियों से प्रेम करने वाले...,क्या है जो सारे रास्ते बदल देता है....सारे सपनों की दिशा बदल देता है ....सारे रिश्तों को जुनू से ढक देता है ...जिंदगी से मोहब्बत खत्म कर देता है .....लाश बनाकर छोड़देता है ...एक तारीख नवाज देता है ....जिस दिन होगी शरीर की मौत....मरने से पहले कितनी बार मरते होंगे मेंरे जैसे वो लोग जो बन गए आतंकवादी....पैसा तो नहीं होता होगा इसकी वजह....भविष्य बनाना तो नहीं होता इसका अंजाम....सिस्टम से तो मैं भी नाराज हूं फिर मैं क्यों नहीं बन पाता आतंकवादी...क्या उसे हासिल करने के लिए ज्यादा कलेजा चाहिए....क्या वो बनने के लिए जितना गुस्सा चाहिए मुझमें नहीं...क्या नाइंसाफी के शिकार लोग ही बनते हैं आतंकवादी....या जो अपराधी हैं वही बनते हैं आतंकवादी......ये सच है कि आंतकवादी क्रूर सिस्टम चाहिए...ये भी सच है कि आतंकवादी को खतरनाक बनाने के लिए एक नियोजित साजिश चाहिए....ट्रेन्ड टीचर चाहिए....ये सब मौजूद है...सारी वजहें मौजूद हैं ...सारे साधन मौजूद हैं.....फिर भी मैं नहीं बन सकता आतंकवादी....क्योंकि मैं नहीं लेता नफरत से इनर्जी....दहशत फैलाने के लिए चाहिए नफरत.चारों तऱफ फैली और मेरे अंदर बसी नफरत अबतक मेरे चलने फिरने सोचने समझने की वजह नहीं बना पाई है ....जबतक ऐसा है मैं नहीं बन सकता आतंकवादी ....

7 comments:

Anonymous said...

सचिन का सवाल लाजिमी है...आजकल हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वो आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक है...हर कोई बम का थैला लेकर घूम रहा है...आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब कौन सा बम आपकी कुर्सी के नीचे फिट कर दिया गया....आसिफ, जुनैद या सैफ तो फिर भी हमसे अच्छे थे जो अनजान लोगों का खून बहाते थे...हमें तो अपनों का खून बहाने में मजा आता है...अपनों से मेरा मतलब उन लोगों से है जिनके साथ हम उठते बैठते हैं काम करते हैं...हर कोई उस मौके की तलाश में है कि कहां कैसे और कौन सा मौका मिले और वो अपना बदला निकाल ले...इसमें हमारा दोष भी नहीं...ये सिस्टम ही ऐसा है....काम का बोझ...आगे बढ़ने की ललक...जिम्मेदारियां लेने की होड़...इन सब के बीच पता ही नहीं चलता कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन...हर कोई एक दूसरे को शक की निगाह से देखता है...दरअसल हम सब एक सिस्टम के शिकार हो रहे हैं...जहां दुश्मन तो हो सकते हैं दोस्त नहीं मिल सकता...जो दोस्ती की बात भी करते हैं उनके दिल में बस यही बात है कि सामने वाला उसका कुछ बुरा न कर दे....
घर से लेकर दफ्तर तक एक ऐसा माहौल है जिसमें आदमी न तो जी सकता है और न ही मर सकता है...तनाव अगर अंदर हो तो आदमी झेल भी जाए...लेकिन यहां तो माहौल में तनाव है जिसकी जद में हम सब हैं...

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

अरे बाप रे, शीर्षक से तो मैं एकदम घबरा ही गया था कि अपने बीच एक आतंकवादी पौधा पनप रहा है...हाहाहाहाहा...खैर, सही कहा है आपने जिंदगी की इस आपाधापी में जहां हमारे सपनों का एक-दो बार नहीं हजारों-लाखों बार खून होता है....रोज जख्म पे जख्म बनते जाते हैं और उनसे धीरे-धीरे रिसता जाता है हमारा सारा ईमान, सारी संवेदनाएं...और शायद धीरे-धीरे हमारे अंदर एक खतरनाक बम आकार लेता जाता है...वो कब फट पड़े खुद हमें भी नहीं पता होता....खैर, ब्लॉग की दुनिया में बहुत-बहुत स्वागत!

मिथिलेश श्रीवास्तव said...
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विवेक सत्य मित्रम् said...

यार, साफ्टवेयर तो डाउनलोड ही है, पर ये मुआ एंटीवायरस काम करने लगता है. कोई बात नहीं सिस्टम शट डाउन करके रिस्टार्ट कर लो, देखो शायद मन मांगी मुराद पूरी हो जाए, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं!

Udan Tashtari said...

शायद कभी भी न बन पाओ...यह इच्छा पूरी करने को आमीन न कह पायेंगे..सॉरी मित्र.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.


डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

रंजन राजन said...

शीर्षक से तो मैं एकदम घबरा ही गया था कि अपने बीच एक आतंकवादी पौधा पनप रहा है....
एक सप्ताह के अंदर पहले हिंदुस्तान की राजधानी नई दिल्ली, फिर यमन की राजधानी साना और अब पाकिस्तान की राजधानी इसलामाबाद। आतंक के धमाके जहां कहीं भी हों, पीड़ा एक जैसी होती है और पीड़ित आम निर्दोष लोग ही होते हैं। इनकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी।
you are welcome on www.gustakhimaaph.blogspot.com

sushant jha said...

देर आए.. लेकिन दुरुस्त आए सचिन जी...मैं सोचता था कि आप ब्लॉगिंग क्यों नहीं करते...लेकिन आपने आज पहले गेंद पर छक्का जड़ा है...दिल खुश हो गया ...जारी रहिए..