Saturday, September 13, 2008
आखिर कितनी बलि लेंगे गृहमंत्री साहब ?
" आज दिल्ली में धमाके हुए हैं और उसमें अब तक जो हमारे पास मालूम्मात आई है उसके मुताबिक 18 लोगों की जानें गई हैं.. जिन्होंने भी ये किया है वो इंसानियत के शत्रु हैं, हमारे देश के शत्रु हैं, औऱ हमारे यहां की शांतता में खलल डालना चाहते हैं.. ऐसा करने वालों की हम घोर भर्त्सना करते हैं...जिनके घरवालों की मृत्यु हुई है...हम उनके प्रति हार्दिक संवेदना प्रगट करते हैं...जिन लोगों ने भी ये किया है... उन्हें भारत के कानून के हिसाब से कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी..." ये सारे अल्फाज़ हमारे देश के काबिल गृहमंत्री शिवराज पाटिल के मुंह से निकले हैं। जो दिल्ली में हुए पांच धमाकों पर अपनी रुटीन बाइट देते हुए उन्होंने कहे। अब तो उन्हें इसकी आदत सी पड़ गई है..और धमाकों के बाद दिए जाने वाले बयान तो उन्हें जुबानी याद हो गए हैं... बस जगह और मरने वालों की संख्या में अपडेट लेकर हेर फेर कर देते हैं। अयोध्या, वाराणसी,लखनऊ, दिल्ली, फैजाबाद, मुंबई, मालेगांव, हैदराबाद, अजमेर, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत, और एक बार फिर दिल्ली। ये स्वर्णिम इतिहास है यूपीए सरकार का। महज पांच साल में अमन के फरिश्तों की इस फौज ने देश को लाल रंग में रंग दिया है। हर धमाके के बाद..सूट बूट पहने हमारे गृहमंत्री साहब मीडिया से मुखातिब होते हैं..और वही घिसी पिटी बातें दोहरा जाते हैं। उनके बयान सुनकर लगता ही नहीं कि देश का गृहमंत्री बोल रहा है। ऐसा लगता है.. धमाकों से हैरान परेशान पुलिस का कोई मामूली प्रवक्ता अपनी सफाई दे रहा है... क्या यही सलीका है एक गृहमंत्री के बयान देने का। शिवराज पाटिल साहब कितने भोलेपन से कह देते हैं, कानून अपना काम कर रहा है..। धमाकों के बाद राज्य सरकार औऱ केन्द्र के बीच जो कुत्ते बिल्ली की लड़ाई शुरु हो जाती है... वो बताता है कि कोई भी आम आदमी की जिंदगी की हिफाजत की गारंटी लेने को तैयार नहीं है। सुरक्षाबलों की टुकड़ी से लैस बंगलों में रहने वाले..और बुलेटप्रूफ गाड़ियों में सैर करने वाले इन नेताओं को भला क्या मालूम...। कैसा लगता है एक शख्स को हजारों किलोमीटर
दूर अपने घरवालों को धमाके के बाद ये बताते हुए कि इस बार भी वो बच गया है। मिस्टर शिवराज पाटिल अगर आप निहायत ही गांधियाना अंदाज में हमें ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अब हिंदुस्तान भी अफगानिस्तान,इराक, फलस्तीन औऱ पाकिस्तान बन चुका है...जहां लोगों को धमाकों औऱ गोलीबारी के बीच जीने की आदत पड़ गई है... और हमें भी
इसके साथ ट्यूनिंग बना लेनी चाहिए... तो आपको बता दें, आप गलतफहमी में हैं.. कि आप यूं हीं आवाम की लाशों पर खड़े होकर शांतिपूर्वक भाषण देते रहेंगे...और हम इंतजार करते रहेंगे कि अब हमारी सरकार आतंकवादियों को सबक सिखाएगी। हमें मालूम है... कश्मीर से लेकर इस्लामी आतंकवाद पर बोलते हुए आपका गला फंस जाता है। मगर आप ये भी समझ लीजिए.. न्यूक्लियर डील के सब्जबाग दिखाकर अगली बार आप सत्ता तक नहीं पहुंच पाएंगे...। बेगुनाहों की जिंदगी से खेलने वाले हिजड़ों को तो ये जनता हर बार बताती है... कि उनकी औकात कितनी है। मगर, क्या आपको ये समझ में नहीं आता इस्लाम और जेहाद के नाम पर खून की होली खेलने वालों का कोई मजहब नहीं है... फिर वोटबैंक की चिंता कैसी...किसी भी समुदाय का तुष्टिकरण कैसा। आखिर बेखौफ जीने के लिए कितनी और बलि देनी होगी हमें..।
कम से कम यही साफ कर दीजिए....।
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4 comments:
अफसोसजन..दुखद...निन्दनीय घटना!!
साहब, गृहमंत्री, प्रधानमन्त्री, विदेशमंत्री, अन्य मत्री मलसन लालू, मुलायम और न जाने कितने ही... हमारे देशभक्त (और यहाँ देश से मेरा मतलब "भारत" है) कई संगठन जिनके नाम बार आते रहे है - सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, हमारे देश में पलते अन्य धर्म के ठेकेदार बार बार कह तो रहे हैं कि बड़ी निंदनीय घटना है, हम इस की भर्त्सना करते हैं ..... अब और क्या चाहिए आप को साहब ?
"शान्ति बनाएं रखें .... हमें पूर्ण विश्वास है कि हर समस्या का समाधान बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से निकाला जा सकता है ......" इतने सालों से आप इतनी सी बात नहीं समझ सके ?
"टांक रही हो सुई चर्म, पर शांत रहें हम तनिक न डोलें
यही शान्ति, गर्दन कटती हो, पर हम अपनी जीभ न खोलें ?
बोलें कुछ मत क्षुधित, रोटियाँ श्वान छीन खाएं यदि कर से
यही शान्ति, जब वे आयें, हम निकल जाएँ चुपके निज घर से ?
हब्शी पढ़ें पाठ संस्कृति के, खड़े गोलियों कि छाया में
यही शान्ति, वे मौन रहें, जब आग लगे उनकी काया में ?
(दिनकर)
शांत रहिये जनाब, वरना इस देश में साम्प्रदायिक क़रार दे दिए जायेंगे .... और हाँ .... निंदा, भर्त्सना करना बदस्तूर जारी रहे ....
अगर हम भीड-भड़क्के में जाकर रहेंगे तो बम विस्फोट में मारे जाएंगे..वीराने में जाकर रहेंगे तो वन- डकैत आकर मार डालेंगे...इन सबसे बचकर अगर पेड़ पर मचान बना लें तो अब वहां भी सुरक्षित नहीं है ...सूरत में पेड़ से टंगा एक टाइमर बम पुलिस ने उतारा था...तो कहां जाकर रहें....भागने से कुछ नहीं होगा ये मानकर जिएं कि मौत तो आनी है ...यूपीए सरकार के रहते ही आजाए..या इसके बाद बाद आने वाली सरकार में आए....अच्छा है कि हर रिश्ते क भूलकर जीने के आदत डाल लें...माने लें कि हमारा कोई नहीं है ..और हम किसी के नहीं....रोज सुबह गीता पढ़ा करें...मन शांत रहेगा...तब तक जब तक कृष्ण हमें अपने पास न बुला लें....जिंदगी से कैसा मोह...सरकार चाह भी ले तो हमें सौ साल से ज्यादा तो जिंदा रख नहीं सकती ...ये तो शिवराज पाटिल के बस में है नहीं....तो मौज ली जाए....मस्ती में जिओ और सस्ते में मरो...बीमा मत कराओ ...मरोगे अगर धमाकों में तो सरकार 5-6 लाख दे ही देगी...ये सबसे बढ़िया इंश्योरेंस पॉलिसी है ....गृहमंत्री जी आप भी बीमा मत कराइएगा....कुछ पटाखे हो सकता है आप पर भी मेहरबान हो जाएं...फिर हम भी कहेंगे कि हम दिल की गहराइयों से इसकी निंदा करते हैं...आंतक के मंसूबो को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा....दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा....
"कानून अपना काम कर रहा है..।"
कानून अगर अपना काम कर रहा होता तो मौत का यह तांडव इतने आराम से हर शहर में न हो रहा होता.
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