Thursday, July 31, 2008

तलवे चाटने वालों की नस्ल हड़प्पा संस्कृति के वक्त की...पुख्ता सबूत मिले!

(एक दफा मैंने चाटुकारिता पर बहुत बड़ा लेख लिखा था..... उस वक्त मैंने इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर बात की थी.. लेकिन मुझे नहीं मालूम था... मेरा वो सपना इतनी जल्द पूरा हो सकता है... दरअसल मुझे सबसे ज्यादा चिंता फैकल्टी मेंबर्स को लेकर थी... चाटुकारिता पढ़ाना मेरे वश की तो बात थी नहीं... और काबिल शिक्षकों के बिना ये संस्थान चलता कैसे.. पर अब मेरी तलाश पूरी हो चुकी है... अचानक मेरे एक मित्र का वास्ता ऐसे काबिल लोगों से पड़ गया है.. उसने भी बिना देरी किए मुझे इसकी जानकारी दे दी... अपनी ओर से मैं जरुर साफ कर देना चाहूंगा... जो कुछ भी मैं लिखने जा रहा हूं... वो मेरे मित्र के निजी अनुभव हैं... इसका मुझसे जुड़े किसी भी जीवित या मृत शख्स से कोई वास्ता नहीं है...किसी तरह की समानता संयोग मात्र होगा.. आगे लिखा गया एक एक हर्फ मेरे मित्र ने भेजा है... उसमें मैंने ना तो एक शब्द जोड़ा है... और ना ही एक शब्द घटाया है... उम्मीद है... आपको पसंद आएगा... और आपके ज्ञानचक्षु भी खुलेंगे...एक बात के लिए जरुर क्षमाप्रार्थी हूं... लेख पढ़कर इसके शीर्षक पर विचार ना करें...... धन्यवाद- विवेक सत्य मित्रम्)



प्रिय मित्र विवेक... महीनों पहले तुम्हारा एक लेख पढ़ा था.. जिसमें तुमने चाटुकारिता का अखिल भारतीय संस्थान खोलने की योजना का खुलासा किया था। उसमें तुमने फैकल्टी मेंबर्स को लेकर अपनी असमर्थता जाहिर की थी....। तुम्हे बताते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है...कि आजकल मेरे साथ कुछ ऐसी महान आत्माएं काम कर रही हैं.. जिनमें ये गुण कूट कूट कर भरा है। लिहाजा अब तुम अपने चाटुकारिता संस्थान का रजिस्ट्रेशन करा ही लो। देर सबेर मैं तुम्हारी इनसे मुलाकात करा दूंगा... । लेकिन उससे पहले मैं तुम जैसे लोगों की जिज्ञासा शांत करना चाहता हूं... जो इनके बारे में कोई जानकारी नहीं रखते। सबसे पहले तो मैं तुम्हे बता दूं... ये चाटुकार लोग भी हमारे तुम्हारे जैसे ही दिखते हैं.. इनमें और हममें बेहद मामूली फर्क होता है... जो देखने और छूने से पता नहीं चलता। जो सबसे अहम फर्क है... वो ये कि इनके पास दो आत्माएं होती हैं.... जिनमें से एक वो हमेशा के लिए गिरवी रख देते हैं.... और दूसरी दिन में 20 बार बॉस के केबिन में चक्कर लगाती रहती है....। दूसरा जो बड़ा फर्क मुझे दिखा... वो ये कि इनके पास रीढ़ की हड्डी नहीं होती...साथ ही शरीर में लाफिंग गैस का बड़ा भंडार मौजूद होता है....। इसका फायदा ये है कि बॉस इन्हें चाहे जितना गरिया ले... चाहे जितना बेइज्जत कर ले... चाहे जितने जूते मार ले.... लचकदार होने की वजह से इनका कुछ नहीं बिगड़ता....और छूटते ही ये बॉस के सामने खीसें निपोरने लगते हैं.... मानो कुछ हुआ ही ना हो....। हां... अभी तक ये पता नहीं चल पाया है... ये लक्षण इनमें शुरु से मौजूद थे... या फिर योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत पर अमल करके इन्होंने खुद विकसित कर लिए....। हो सकता है... इनकी नस्ल के पूर्वजों ने आंधी आने पर झुक जाने वाले पेड़ों की कहानी चुपके से सुन ली हो...खैर, इस पर रिसर्च चल रहा है....। इनकी एक और बड़ी पहचान ये है...ये हमेशा परेशान दिखाई देते हैं... हमेशा काम की बात करते नजर आते हैं... (ध्यान दें- काम की बात....काम नहीं) ....ऐसा लगता है...अगर ये ना हों...तो दुनिया में कोई काम ही ना हो... इनमें जिम्मेदारी का अहसास भी कूट कूट कर भरा होता है...लिहाजा वो बॉस की परेशानी भी खुद ही गिनाना शुरु कर देते हैं.... और अक्सर उस वक्त जब बॉस उनके सामने बैठा हो.... ये अपने बॉस को रत्ती भर भी परेशान नहीं देख सकते... जब कभी भी ऐसा हादसा पेश आता है....दूसरे की गलती के लिए वो खुद ही शर्मसार होने लगते हैं...मानों दुनिया का सबसे बड़ा पाप उन्हीं के हाथों हुआ हो... इनका ह्यूमर सेंस भी गजब का होता है....खुदा ना खास्ता कभी फंसने की नौबत आ जाए तो संजीदा से संजीदा बात की ऐसी खिल्ली उड़ा देते हैं... जैसे अभी अभी द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैंपिंयंस का ऑडिशन देकर निकले हों... इन्हें काम तो क्या आता होगा... ये उनका बॉस भी जानता है...लेकिन इतनी काबिलियत कम है क्या... नाकाबिल होकर भी सबसे काबिल दिखें.... क्या क्या बताऊं तुम्हें.... बस इतना समझ लो.... अगर तुम इनसे 5 फीसदी भी सबक ले लो... तुम्हें चाटुकारिता का संस्थान खोलने की जरुरत नहीं पड़ेगी... और पड़ी भी तो तुम खुद ही उसके प्रिंसिपल बन सकने की काबिलियत हासिल कर लोगे.... लेकिन अगर तुम इनसे प्रेरणा नहीं ले सके... और किसी दिन रोड पर आ गए... तो कोई बात नहीं.... इन्हें अपने चाटुकारिता संस्थान में रख लेना.... पलक झपकाते ही वो बुलंदियों पर होगा.....मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं....
- तुम्हारा ही : अनिल नागवंशी

4 comments:

Anonymous said...

चाटुकारिता की बात पर, कभी You’re Too Kind – A Brief History of Flattery पुस्तक पर भी नज़र डालिये।

sushant jha said...

कमाल का लिखा आपने...शब्दश: सही...बल्कि इसतरह का बंदा इससे भी ज्यादा कर सकता है। और हां...ये लोग रात को दिन भी साबित कर सकते हैं।

बालकिशन said...

हा हा हा (वैसा नहीं जैसा आपने कहा)
तीखा कटाक्ष.

Anonymous said...

kabhi to saab kuchh serious kaam karen. bekaar me kyon samay barbad karte hain.

yours
guess