Monday, June 30, 2008

कश्मीरियत का असली चेहरा तो ये है....

सुशांत कुमार झा
आज मेरा मन कम्यूनल हो रहा है। सुबह उठते ही अख़बार की पहली ख़बर है कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने श्राईन वोर्ड को दी गई जमीन पर से अपना दावा छोड़ दिया। पूरा का पूरा कश्मीर जश्न मना रहा है। कौन कहता है ये भोले-भाले, गंगा-जामुनी संस्कृति को मानने वाले लोग कश्मीरियत के झंडाबरदार हैं.. ? इनमें और तालिबान में कोई अंतर हैं? क्या पीडीपी, क्या नेशनल कांन्फ्रेंस...सबके सब हुर्रियत की तरह झूम रहे हैं। फिर भी उनका कहना है कि अभी उनकी मांगे पूरी नहीं हुई है। वे राज्य की कैबिनेट के उस फैसले को ही बदलवा देना चाहते है जिसके तहत ज़मीन दी गई है। कांग्रेस अंत तक सेकुलर बनने का प्रयास करती रही लेकिन उसे कट्टरपंथियों के आगे झुकना ही पड़ा। सवाल यह है कि कश्मीर में हिंदुओं के लिए अभी भी कोई उम्मीद है...क्या आज कश्मीर में कोई भी मुसलमान ऐसा दिखता है जो खुद को सेकुलर कह सके..?.क्या वो आनेवाले समय में भारतीय सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाने की सूरत में दिल्ली या दूसरे जगह अपने लिए हिंदू हमदर्द खोज़ पाएंगें...?

गौरतलब है कि 2001 में एक कानून बनाकर अमरनाथ यात्रा से संबंधित सारे अधिकार राज्यपाल को दे दिए गए। लेकिन सरकार में हावी कट्टरपंथी तत्व समय समय पर श्राईन बोर्ड के कामों में दखल अंदाजी करते रहे। साल 2004 में एक सड़क बनवाने के सवाल पर श्राईन बोर्ड को इतना तंग किया गया कि अंतत बोर्ड को कोर्ट के शरण में जाना पड़ा। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई तब जाकर कहीं मामला सुलझा। पिछले दिनों श्राईन बोर्ड ने जम्मुकश्मीर सरकार से बालटाल के निकट जंगल में 30 हेक्टेयर(तकरीबन 100 एकड़) जमीन मांगी..जिसका इस्तेमाल अमरनाथ यात्रियों के लिए आवश्यक सुविधांए बनाने में किया जाना था। गौरतलब है कि हरेक साल अमरनाथ की यात्रा में जानेवाले श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ती ही जा रही है और इस साल उनके पांच लाख तक हो जाने की संभावना है। ऐसे में उन्हे सुविधांए देना सरकार का फर्ज है। दूसरी बात वो निजी जमीन नहीं है। जंगल और पहाड़ी की जमीन है जिसमें किसी को विस्थापित नहीं किया गया है।

कश्मीर के लोग इसका विरोध इसके लिए कर रहे हैं कि वो जमीन हिंदु तीर्थयात्रियों को क्यों दी जा रही है। जो बात हिंदुस्तान का एलीट तबका खुलकर नहीं कहना चाहता वो ये कि कश्मीर में इस्लाम और हिंदुत्व की लड़ाई हो रही है..और इसे मान लेना चाहिए। लेकिन फिर इसका फायदा किसे मिलेगा ? क्या भाजपा और संघ इसका फायदा नहीं उठाएँगे..?.अगर बालटाल में हिंदू तीर्थ-यात्रियों को जमीन नही् मिलेगा तो फिर हज हाउस के लिए मुसलमानों को किस मुंह से जमीन मांगने का हक होगा...और हज की सब्सिडी उन्हे क्यों दी जाएगी..। आज वक्त आ गया है कि पूरे मुल्क का मुसलमान तबका कश्मीरी मुसलमानों की इन संकीर्ण सोंच के खिलाफ आवाज उठाएं...और तमाम मौलाना इस मसले पर फतवा जारी करें...नहीं तो आनेवाले वक्त में मुसलमान,बहुसंख्यक समुदाय में बड़ी तेजी से अपना हमदर्द खोते चले जाएंगे।

13 comments:

संजय शर्मा said...

हुजूर आते -आते बहुत देर कर दी ! देर आए दुरुस्त आए और छा गए .आज सोलह आने सच उगलती पोस्ट पर आपको बधाई और ढेर सारी शुभकामना . बहुत उम्दा सवाल उठाया है .येही सवाल बहुत दिनों से हर हिंदू का है . आभार . छूट का मतलब फ्री नही होता .

समयचक्र said...

सोलह आने सच उगलती पोस्ट.बहुत उम्दा सवाल उठाया है.

Unknown said...

बेहतरीन पोस्ट, धोकर रख दिया… लेकिन कोई फ़ायदा नहीं है, इस देश में "धर्मनिरपेक्षता" नाम की च्युइंग-गम चबा-चबा कर ही तो नेहरू से लेकर येचुरी तक की रोजी-रोटी चली है… जो सवाल आज कश्मीर में है वही कल असम में होगा…
"मेरा भारत महान नहीं है, लेकिन यह मेरा ही दोष है…"

Anonymous said...

सही कह रहे हैं।
चलिये आज हम भी थोड़े कम्युनल हो जाते हैं।

CG said...

सही मुद्दा उठाया है आपने. सवाल ज़मीन का नहीं, intolerance का है. क्या कश्मीर में हिन्दू इतने अवांछित हैं? यह पता न था.

मेरा दोस्तों में एक निर्वासित कश्मीरी हिन्दू है, अब कुछ समझ आता है कि निर्वासित क्यों है.

Shiv Kumar Mishra said...

आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. साठ साल हो गए मुद्दों को कारपेट के नीचे खिसकाते जा रहे हैं. भविष्य में भी ऐसा ही होगा, यही प्रतीत होता है.

Rajiv K Mishra said...

यूपीए सरकार को आईना दिखला दिया.....क्लैसेज़ ऑफ सिविलाईज़ेशन है....अब तो यकीन हो चला है।

संजय बेंगाणी said...

पहले निवासी हिन्दू अब प्रवासी हिन्दू....


रटते रहें धर्मनिरपेक्षता को....

Prabhakar Pandey said...

बहुत ही उम्दा लेखन बड़े भाई। बधाई। सटीक और यथार्थ लेखन।

Udan Tashtari said...

अच्छा मुद्दा उठाया है आपने.

Anonymous said...

For how long we will treated as second grade citizen in our own country...... for the sake of secularism?

bhupendra said...

आपने बिल्कुल ठीक बात कही। इन अलगाववादियों का कहना है कि जमीन इसलिए दी जा रही है ताकि गैर मुस्लिमों को घाटी में बसाया जा सके। मैं पूछता हूं कि क्या कश्मीर में रहने का हक इन तथाकथित मुस्लिमों को ही है। संविधान में हर भारतीय को छूट दी गई है कि वो देश के किसी भी हिस्से में रह सकता है। अगर दशकों पहले कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम साथ रहते थे। तो आज क्यों नहीं। ये सब अलगाववादियों की साजिश है कश्मीर हथियाने की। एक बात और। जब मुस्लिमों को हज यात्रा के लिए सब्सिडी दी जा सकती है। तो क्या अमरनाथ यात्रियों की सहूलियत के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जा सकती।

अविनाश said...

बहुत ही सटीक और दिल को छु लेने वाली बात कही है आपने इस लेख में ,
कांग्रेस से लेकर पीडीपी तक सब लगे है मुसलमानों को संतुस्ट करने में लेकिन कब तक.स्वाधीन भारत में १९४७ तक ब्रिटिश शासकों द्वारा जिस ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को अपनाया गया उसने हिन्दू चेतना को तो धर्मं , भाषा और क्षेत्र के आधार पर बांटा है वही मुस्लिमों को मजहब के नाम पर संगठित किया है जिसके कारन मुस्लिम एक बड़े वोट बैंक के रुप में उभरा है मुसलमानों को खुश करने के लिए गए हर सही गलत धर्मानिरपेक्षता। क्यों हर बार उनका हर मामला धार्मिक हो जाता है और हमारा हर धार्मिक मामला ामजिक् शायद इसके लिए ये तथाकथित धर्मानिरपेक्ष पार्टिया जिम्मेवार है जो इन्हें शह देती है ।