जिस देश को बर्बाद करने का ठेका नेताओं ने ले लिया हो, वहां अपनी गलती का ठीकरा मीडिया पर थोपना कितना आसान है-इसका ज्वलंत उदाहरण है मीडिया रेगुलेशन का प्रस्तावित बिल। वो तमाम खद्दरधारी जिनके माथे पर न जाने कितने हत्याओं, आत्महत्याओं, किसान हत्याओं और घोटालों का आरोप लगा हुआ है-वे ही आज मीडिया को संयमित होने की सलाह दे रहे हैं। कितना आसान था प्रिंट का जमाना जब कोई भी लालू या आडवाणी आपके रिपोर्ट को तोड़-मोरोड़ कर पेश किया गया बता देता था-लेकिन मजे की बात देखिए मीडिया को लगाम लगाने की बात पर भगवा और हरा दोनों ही एक हो गया है।
उन्हे खुंदक इस बात की नहीं है कि मुम्बई हमलों का फुटेज क्यों दिखाया गया, खुंदक तो इस बात की है कि उनके बिरादरी के कई स्वनामधन्यों को अतीत में घूस लेते हुए सरेआम नंगा क्यों किया गया। माना कि जनता का एक तबका हमसे इसलिए नाराज है कि हमने कुछ दिन भूत-प्रेत और संपेरों का बीन भी दिखाया था-लेकिन इस बात की आलोचना का हक उन नेताओं को कैसे मिल गया जो दिन रात तांत्रिकों और साधुओं के आशीर्वादों के सहारे चुनाव जीतना चाहते हैं ? ये नेता अपनी निजी जिंदगी में इतने जन-विरोधी हैं जितना इस मुल्क का ब्यूरोक्रेट भी नहीं है। हमें ये याद दिलाने की कोई जरुरत नहीं कि दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय और विशाल संसाधनों से लैश संस्थान की नेताओं ने क्या दुर्गति कर रखी है।
दरअसल सरकार तो मीडिया को खुली प्रतिस्पर्धा के लिए खोलना ही नहीं चाहती थी, भला हो 90 के दशक का,जब देश में गठबंधन सरकारें बनने लगी और लालकिला किसी की बपौती नहीं रहा। अब जब एक बार जिन्न बोतल से बाहर आ ही गया है तो इन नेताओं के बाप का दिन नहीं है कि इसे फिर से अपनी बंदरिया बना लें। अभी तो कुछ नहीं हुआ है, एफएम रेडियो में जरा न्यूज आने दीजिए-नेताओं की हालात तो और खराब होने वाली है-रही सही कसर गांवो तक इंटरनेट की पहुंच खत्म कर देगी। दरअसल ये बौखलाहट दिन से दिन जागरुक होते जाते लोगों के खिलाफ है-टीवी न्यूज मीडिया के खिलाफ नही।
नेताओं को लगता है कि अब भ्रष्ट पैसों से बढ़े तोंद को कैमरे से छिपाना अब आसान नहीं है-इसलिए मीडिया को रेगुलेट करने का नायाब बहाना ढ़ूढ़ा गया है। लेकिन इन खद्दरधारियो को ये नहीं पता कि जनता हमारी आलोचना तो करती है-लेकिन वे इन नेताओं से मुहब्बत भी नहीं करती। इस मुल्क का पोलिटिकल सिस्टम आवाम कि चिंताओं को समझने में नाकाम साबित हुआ है और जनता अभी भी अपने आक्रोश और अपनी समस्याओं का अक्श मीडिया में ही तलाशती है-और वो हमारी आलोचना इसलिए करती है कि उसे लगता है हम राह से भटक रहे हैं।
2 comments:
वाह भई, खाली वक्त का इस्तेमाल नेताओं को गरियाने में...बहुत खूब, इससे अच्छा क्या हो सकता है....वैसे अच्छा हो अगर इस बिल के खिलाफ आंदोलन में तुम भी शरीक हो जाओ !
bahut khub likha hai aapne..
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