Friday, November 7, 2008

हिंदू शैतान बनाम ईसाई भगवान् - 1

सितम्बर में कर्नाटक के उत्तर कनाडा में था जब हिंदू बनाम ईसाई के सांप्रदायिक तनाव और चर्च के तोड़ने की घटना अखबारों की सुर्खिया बन रही थी । मैं कर्नाटक में आगामी संभावित बिधानसभा चुनावों के मद्देनज़र ओपिनियन पोल में जुटा था । उत्तर कनाडा में ये मेरा तीसरा दिन था । हिन्दुओ ने यहाँ भी चर्चो को निशाना बनाया था । यही पर मेरी मुलाकात रोजी से हुई। ४२ साल की इस महिला की बेकरी की दुकान है । मैं इसकी दुकान के पास के एक होटल में ठहरा था । ५-७ दिनों में अच्छी जान -पहचान हो गई थी । रोजी पहले हिंदू थी । पति की मृत्यु के बाद उसके सामने जब रोजी रोटी की समस्या खड़ी हुई तो इसने पास के दो -चार ईसाई घरों में सफाई वगैरह का काम शुरु किया । इसी क्रम में इसकी मुलाकात एक नन से हुई । वो उस घर में आती थी जहाँ रोजी काम करने जाती थी । उस नन ने इसको कोई अपना काम करने की सलाह दी, उसके छोटे बच्चो का हवाला दिया इसके बाद रोजी अपना कोई बिज़नस करने को तैयार तो हो गई लेकिन उसके सामने पूंजी का सवाल अब भी था । ऐसे में उसकी मदद की उसी नन ने । उसने रोजी को कही से ५०,००० रुपये का क़र्ज़ दिलवाया और उसकी बेकरी की दुकान खुलवाई । रोजी अब तक हिंदू ही थी । दुकान खुलने के बाद उसके घर का खर्च तो दुकान की आमदनी से चलता पर खर्च से ज्यादा बचना मुस्किल था जिससे क़र्ज़ अदा की जाए । क़र्ज़ की रकम दुकान खुलने के सात महीने के बाद भी क़र्ज़ की रकम जस की तस् थी। बकौल रोजी " मैं इसी दुकान से उतना नही कमा पा रही थी की क़र्ज़ भी चूकौ । तब रोजी के सामने ये विकल्प रखा गया की अगर बप्तिस्ता ले ले तो उसका पुरा क़र्ज़ केन्द्र सरकार के लोन योजना माफी की तरह माफ़ हो सकता है । अंत में वही हुआ उसने ईसाई धर्म स्वीकार किया और अपने ५०,००० के क़र्ज़ से मुक्त हुई। अब भाई एक गरीब हिंदू होने से अमीर ईसाई होना ज्यादा भला है । तो यह थी पी शांति के ईसाई बनने की कहानी । आदिवासी बहुल राज्यों में ऐसी अनेक शांति मिलेंगी जिनके साथ कमोबेश ऐसा ही कुछ हुआ होगा । ईसाई मतान्तरण उनके निज के विश्वास और धारणा का परिणाम नही बल्कि जिन्दगी जीने की उनकी जद्दोजहद और रोटी के संघर्ष का परिणाम है । मैं अबतक दसेक ऐसे लोगो से लोगो से मिल चुका हूँ जिनका मतान्तरण पहले क़र्ज़ देकर और बाद में उनका क़र्ज़ माफ़ कर के किया गया। क्रमश ........

8 comments:

sushant jha said...

कुल मिलाकर अविनाश...आपकी कहानी एक बात की तरफ इशारा करती ही है कि हिंदू समाज और देश की सरकार पिछले कई दशकों में अभी भी ये माहौल नहीं बना पाई है कि लोग एक औसत जिंदगी जी सकें। अलवत्ता, इसाई मिशनों को इस बात के लिए तो कानूनन नहीं रोका जा सकता कि वो किसी को क्यों मदद करते हैं..और न ही इसमें जबरन धर्मांतरण की बात है। हां, पैसे में इतनी ताकत जरुर है कि वो अच्छे -अच्छे लोगों को अपने मत से डिगा सकता है, खासकर अगर वो गरीब हो।

P.N. Subramanian said...

"उत्तर कनाडा" लिखने के बजाय उत्तर कर्नाटक लिखें. बड़ी भ्रांति होती है. आभार.

roushan said...

जिन्हें धर्म परिवर्तन से परेशानी हैं उन्हें ऐसी घटनाओं में दिलचस्पी होनी चाहिए न कि सिर्फ़ शिकायत करने में

संजय बेंगाणी said...

बड़ी धूर्तता है भाई.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बाकी दुनिया को हमारे महान नेता क्यों अपनी राजनीति से लाभान्वित नहीं करते. हिन्दू की समस्या उसकी सहनशीलता रही है.

Unknown said...

"हिंदू शैतान', तो अविनाश तुमने फ़िर शुरू कर दिया हिन्दुओं को गाली देना.

कर्जा देने के लिए धर्म बदलने की शर्त लगना किसी की मजबूरी का अमानवीय फायदा उठाना है. यह बैसा ही है जैसा किसी मजबूर औरत को कर्ज के बदले अपना शरीर देने के लिए मजबूर करना.

अविनाश said...

मैंने इसमें जिस प्लेस का जिक्र किया है वो उत्तर कन्नडा ही है ये कर्णाटक का एक जिला है । जो गोवा की सीमा से मिलता है ।

drdhabhai said...

पूरे देश मैं बहुत जगह गरीबी है...हर व्यक्ति की अपनी समस्यायें है....पर क्या इनसे इनको मतांतरण का अधिकार मिल जाता हैं...क्या ये ऐसा मुसलमानों के साथ कर सकते हैं ..जहां हिंदुओं से भी ज्यादा गरीबी हैं....चीरकर दो फांक कर देंगे वे और उन पर सांप्रदायिकता का आरोप भी नहीं लगेगा..आपकी पोस्ट किसी हिंदु शैतान की बात नहीं करती इसलिए शीर्षक कृपया थोङा रिलेवैंट दें ये बङा ही अटपटा हैं...हां जरूर पाठक आपको ज्याादा मिले होंगे