Sunday, March 16, 2008

बटेंगा उत्तर प्रदेश ......




सबसे बड़ा उत्तर प्रदेश अब शायद नहीं रहेगा.....क्योकि अब इसका बटवारा होने वाला है , इसको अलग करने के लिए मायावती ने केन्द्र को एक पत्र लिख भेजा ..अब बुंदेलखंड , पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश नाम से तीन नए राज्य बनेगे .. अगर केन्द्र इस पर सविंधान के अनु0 ३ के तहत प्रक्रिया शुरू करता है तो इसकी कवायद शुरू हो जायेगी .............

१) इससे सबसे पहले तो क्षेत्रीयता हावी हो जायेगी जिसका की हम लोग विरोध करते है जैसा की महाराष्ट्र में हुआ है .....

२) तमाम नयी पार्टिया बनेंगी जातिगत राजनीती अपने चरम पर होगी...

लेकिन इसका दूसरा सकारात्मक पहलू ये है की इस प्रयास से उत्तर प्रदेश के सभी जगहों में विकाश संभव हो पायेगा जिसकी सबसे अधिक जरुरत है ...शिक्षा के उचित उपाय हो जायेंगे .. ‘‘चूंकि राज्य सरकार ने अपना प्रस्ताव भेज दिया है इसलिए गेंद अब केन्द्र के पाले में है कि वह तय करे कि उत्तर प्रदेश से अन्य राज्य गठित किये जाएं।’’

Saturday, March 15, 2008

यूपी में दलितों की हत्या पर राजनीति -


इटावा समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह का गृह जनपद है लेकिन उनकी पार्टी का भी कोई नेता सांत्वना देने नहीं पहुँचा था. लेकिन राहुल का दौरा घोषित होते ही सपा महासचिव रामगोपाल यादव तत्काल मायावती के बाद वहाँ पहुँच गए. दरअसल मायावती पिछले कुछ महीनों में रैलियाँ और सभाएँ करके कांग्रेस पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाती रही हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पिछले विधानसभा चुनावों में ख़राब स्थिति की वजह दलित वोट बैंक का मायावती के साथ जाना माना जाता है.

नजर दिल्ली पर .....


वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनीं मायावती की नज़रें अब दिल्ली की सत्ता पर टिकी हैं. पिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चौराहों पर इश्तहारों के बड़े-बड़े बोर्ड नज़र आने लगे हैं. इन इश्तहारों में मायावती का हँसता हुआ चेहरा दिखाई पड़ता है. बोर्ड पर लिखा है - "हमारी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकार अन्य पार्टी की सरकारों से अलग है. जहाँ अन्य पार्टियाँ सिर्फ़ वादे करती हैं, हम जो कहते हैं उन पर अमल भी करते हैं." इन इश्तहारों में सरकार की पिछले छह महीनों की उपलब्धियों के ब्यौरे भी दर्ज हैं. मायावती तीन बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं लेकिन पूर्ण बहुमत के अभाव में उनकी सरकार कभी भी पाँच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. मायावती के ज्यादातर समर्थक गाँवों के ग़रीब लोग हैं जो मीडिया से प्रभावित नहीं होते. इन आलोचनाओं से बेख़बर मायावती इनके लिए लोकप्रिय नेता है. लखनऊ में जो इश्तहार लगे हैं उसे कार से चलने वाले लोग भले ना पढ़ें लेकिन साइकिल सवार या पैदल चलने वाली जनता की निगाहें इन पर ज़रूर जाएगी.