मुंबई की तंग सड़कों पर राजनीति करने वाले मराठी मानुष बाल ठाकरे ने बड़े समय की चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने लालू को चुनौती दी है कि वे तमिलनाडु में छठ मनाकर दिखाएं। ठाकरे ने भले ही यह व्यंग्य के लहजे में कहा हो लेकिन हमने उसे दिल खोलकर स्वीकार किया है। हमने तो कभी भी दिशाओं में भेदभाव नहीं किया है। हमारे दिल में दुनियां की संस्कृतियां समा सकती है। हमने तो भारत की सभी दिशाओं को हमेशा अपना ही समझा है जहां भी गए स्वच्छंद तरीके से अपनी पहचान को संजोकर जीवन जिया है। हम मुंबई में अपनी तरह से जीवन जी सकते हैं तो तमिलनाडु में क्यों नहीं छठ मना सकते। छठ को तो हम विदेशों में भी मना रहे हैं। फिर भारत के अंदर ही क्यों नहीं मना सकते हैं। रही बात तमिलनाडु की तो वह भारत का सबसे महत्वपूर्ण शहरों में से एक है। कम से कम वह दकियानूसी विवादों पर अपनी दिनचर्या तो तय नहीं करता। तमिलनाडु के लोग अपनी संस्कृतियों और अपनी धरोहर के प्रति काफी सजग रहने वाले लोग हैं। उनके विरोध में अपना एक तर्क होता है। वे केवल प्रतिस्पर्धा के चलते किसी का विरोध नहीं करते है। वे काफी भावुक लोग होते हैं। भावनाओं में जीने वाले लोग राजनीति के दांव पेंच से काफी दूर होते हैं। बिना ठोस आधार के वे किसी की बुराई तक नहीं करते। उनकी जीवनशैली काफी नियमपूर्ण होती है। नियमो को वे अपनी दिनचर्या में भी पालन करते हैं।फिर उनका कैसे छठ से विरोध हो सकता है। कल को भले ही ठाकरे का यह बयान राजनीतिक रूप ले ले और इस पर खेमे बंट जाएं। तब यदि कहीं से विरोध की आवाज भी सुनाई पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। विरोध अच्छी चीज होती है। हर चीज का विरोध होना चाहिए। इससे एक दिशा मिलती है। लेकिन उसका स्वरूप स्वस्थ होना चाहिए। तमिलनाडु बहक नहीं सकता। मुंबई की तरह। किसी की समझदारी को बहकाना आसान नहीं होगा। इसलिए कुछ लोग लोगों की बेवकूफियों को बहका रहे हैं। मुंबई के हालात कुछ इसी तरहे के नजर आते हैं।
3 comments:
ये राजनेता सिर्फ़ लोगों को भड़काने का काम करते है।
ये प्रदेश की लड़ाई धीरे-धीरे बढ़ ही रही है।
बालासाहब ठाकरे अब तक संकीणॆ मानसिकता से उपर नहीं उठ पाए हैं। उन्हें चाहिए कि सभी लोगों को साथ में लेकर चले। ये देश सभी का है। सभी को यहां रहने का अधिकार है। इस तरह की राजनीति से ठाकरे को कुछ हासिल नहीं होगा। चुनाव के समय सभी उत्तर भारतीयो से झुककर वोट मांगते नजर आएंगे।
शहरों--? राज्यों
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