Thursday, November 29, 2007

कार्ल मार्क्स के नाम एक कामरेड का खत...

हे देव मार्क्स, लाल सलाम !
अच्छा हुआ कि आप आज इस दुनिया में नहीं हैं, वर्ना नंदीग्राम के बाद जिस तरह से अपने ही लोगों ने हमारे खिलाफ आवाज बुलंद की है, यकीन मानिए आपका सीना भी छलनी हो जाता। आखिर गलती किससे नहीं होती, हमसे भी हो गई। लेकिन इसके बाद हमारे विरोधियों ( इन्हें हम अक्सर गैर लोकतांत्रिक या सांप्रदायिक ताकत कहते हैं) का साथ हमारे ही अपने लोगों ने दिया। क्या इसी दिन के लिए हमने उन्हें वो मंच, प्लेटफार्म या सियासी सहूलियतें दीं, कि एक दिन वो हम पर ही भौंकना शुरु कर दें। Rizwan, नंदीग्राम और अब ये तसलीमा। कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं बचा जब इन लोगों ने हमारी किरकिरी नहीं की। Rizwan के मुद्दे पर तो हमारे अपने ही छात्र संगठन आइसा ने जेएनयू में हमारी भद्द पिट कर रख दी। बेचारे बुद्धदेव के मुंह पर ऐसी कालिख पोत दी जिसे छुड़ाने में शायद कई साल लग जाएं।
खैर, ये तमाम कलाकार, लेखक और संस्कृतिकर्मी भी क्या करते, हमें कभी कभी तो इनकी हालत पर ही तरस आता है। कभी समाज को अपने इशारों पर नचाने वाले ये लोग आज जनता के आगे मजबूर हैं। ये वही जनता है जिसे हम इतिहास और साहित्य जैसे क्षेत्रों में अपने प्रभाव क्षेत्र के जरिए सालों से बरगलाते आ रहे थे। लेकिन अचानक ये इतनी जागरुक हो जाएगी, और सही – गलत का फर्क करना सीख जाएगी, हमें क्या मालूम था? ये सब कुछ देखकर तो हमें भी लगता है कि ये साहित्यकार, कलाकार और संस्कृतिकर्मी करते भी तो क्या करते बिचारे। हर गली मुहल्ले में एक चैनल और हर टोले से एक अखबार निकलने लगा है। इन्हें तो अपनी इमेज की ही कमाई खानी है। अगर कहीं किसी चैनल या अखबार वाले ने इनकी निष्क्रियता को वामतुष्टीकरण का जामा पहना दिया तो ये लोग तो बैठे - बिठाए ही मारे जाते।
हमारा क्या है? अभी भी इस देश की जनता की याद्दाश्त उतनी अच्छी नहीं हो पाई है कि वो लंबे वक्त तक ये सब कुछ याद रख सके। वैसे भी हमने मध्यावधि चुनाव की आशंका तो खत्म कर ही दी है। बहुत दिनों बाद बिचारे कांग्रेसियों के हाथ सत्ता आई है, उन्हें खाने-कमाने का भरपूर मौका तो मिलना ही चाहिए। आखिर इसमें गलत क्या है, हम १९ वीं सदी में तो हैं नहीं। जो क्रांति की बात करके सत्ता हासिल कर सकें। पिछले ३० सालों से पश्चिम बंगाल में हम भी तो यही करते आ रहे हैं। लेकिन किसी ने हमारा क्या बिगाड़ लिया। इसलिए आप हमें लेकर परेशान मत होइएगा। डेढ़ साल का वक्त तो बहुत होता है। मैं आपसे शर्त लगा सकता हूं, इतने लंबे समय में तो मोदी, वसुंधरा राजे, शिवराज चौहान और तोगड़िया जैसे बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता हमें ऐसा कुछ न कुछ दे ही देंगे, जिसकी मातमपुर्सी करके हम इस मुद्दे से सबका ध्यान हटा देंगे।
अगर आपको रोज की खबरें मिल रही होंगी तो आप देख ही रहे होंगे किस तरह हमने तसलीमा का मुद्दा उठाकर नंदीग्राम को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। आप बेफिक्र रहिए, बीजेपी और आरएसएस वो लोग हैं जो जानते समझते हुए भी हमारा काम आसान कर जाते हैं। खैर, आप तस्लीमा नसरीन वाले मुद्दे पर भी हमसे नाराज होंगे, तो मैं आपको हकीकत बताना चाहूंगा कि हम दिल से नहीं चाहते थे कि उसे कोलकाता से जाने दें, लेकिन हम आखिर करते भी तो क्या? बेकार में हमारा मुसलमान वोट मारा जाता। लिहाजा हमें ये सब कुछ मजबूरी में करना पड़ा....। उम्मीद है, आप हमारी परेशानियों को शिद्दत से समझ रहे होंगे।
बहरहाल, आप बिल्कुल भी परेशान न होइए। सत्ता से तो हम जोंक की तरह चिपटे हुए हैं। आगे जो कुछ भी होगा, इतना तो तय है कि लेफ्ट पार्टियों का फिलहाल कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। हमें कई बार लगता है कि शायद हम आपकी विचारधारा को सही परिप्रेक्ष्य में समझ नहीं पाए। पर आप इतना तो हमपे यकीन कर सकते हैं कि हम लेफ्ट को इस देश में खत्म नहीं होने देंगे। और जब तक यहां सांप्रदायिक ताकतों का अस्तित्व कायम है, हम किसी न किसी तरह से यहां मौजूद रहेंगे। फिलहाल, इस वायदे के साथ ये खत खत्म कर रहा हूं कि जल्द ही ये सब कुछ लोग भूल जाएंगे, और हम फिर से जनता का हितैषी होने का तमगा हासिल कर लेंगे। शेष सब कुशल है...!
आपका ही- एक कामरेड (नाम में क्या रखा है?)

11 comments:

Ashish Maharishi said...

शानदार ढंग से धोया है आपने

Anonymous said...

achchi koshish hai...
yours...

बालकिशन said...

करारी चोट. गहरा प्रहार. सही किया.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत अच्छी धुलाई की है भाई! ये तो दूध से भी ज्यादा सफ़ेद हो गए.

Prem said...

bahut khub hai, sir,
patra nahi sawal hai ye,

apne to mujhe sochne per majboor kar diya.

bhupendra said...

left ke aise taise karke rakh de apne. uska dogula charitra uzagar ho gaya hai. public hakkikat samajne lagi hai. jald hi inka ghamand chaknachur hoga.

Satyendra PS said...

विवेक भाई, ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं हूं फिर भी। सब ऐसे ही चल रहा है।कार्ल माक्र्स तो खुद पर रो ही रहा होगा, आम लोग भी रो रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए विस्फोटों पर लिखा था , इयत्ता पर। ईष्टदेव जी को पत्रोत्तर लिखा था, वह भी आपको भेज रहा हूं........


यही तो बात है भइया। मुसलमान के खिलाफ बोलना दक्षिणपंथ है। मुसलमान का समर्थन करना बुद्धिजीविता यानी वामपंथ है। सिर्फ विरोध करने के लिए मुसलमानों का विरोध करना दक्षिणपंथियों का काम है। सही और गलत का आंकलन करना नहीं।
एक बात और। एक नई विचारधारा चल पड़ी है। लोग कहते हैं कि दक्षिण पंथियों ने फैलाई। मुसलमान आतंकवादी है।
उधर एक विचारधारा और चल पड़ी है। लोग कहते हैं कि वामपंथियों ने फैलाई। कश्मीर में आतंकवाद नहीं। वह तो सर्वहारा यानी चरमपंथियों का पूंजीवादी-जमींदारों यानी कश्मीरी पंडितों के खिलाफ संघर्ष है।
हमारे जैसे आम लोगों की जीभ खींचने के लिए तो दोनों पंथी तैयार बैठे रहते हैं। कब समझेंगे ये लोग, कि आतंकवाद, दुराचार, दहशतगर्दी आदि-आदि बुरी चीज है। इसे धर्म से जोड़ना बन्द करें।इसे पंथ से जोड़ना बंद करें।
एक नया अखबार आया है। मेल टुडे। गंदी बात लिखी थी इसलिए चर्चा नहीं की। क्योंकि चर्चा में आने के लिए ही ऐसी बातें लिखी जाती हैं। लेकिन प्रसंगवश। उसके दूसरे संस्करण में ही पहले पेज की खबर थी । साफ लिखा था कि गुजरात में मुसलमानों को वोटिंग आई काडॆ नहीं दिया जा रहा है। उन्हें वोट से वंचित किया जा रहा है। आंकड़े थे सूरत के और फोटो थी ऐसी, जिसमें दूसरे के आई कार्ड पर दूसरे की फोटो थी।
अरे विद्वानों... कब तक आम आदमी को चूतिया बनाकर दुकान चलाओगे। मैंने भी रिपोर्टिंग की है। हर जिले में हजारों लोगों के आई कार्ड नहीं बने हैं। मैं भी उसमें से एक हूं। सूरत जैसे शहर के लिए विद्वान रिपोर्टर ने आई कार्ड न बने लोगों की संख्या हंड्रेड्स लिखी थी । यानी कि जिस जिले की आबादी २० लाख से ऊपर है वहां एक हजार से भी कम। जरा कोशिश करके गिन लेते कि वहां कितने हिंदुओं के आई कार्ड नहीं बने हैं तो शायद उसकी ४० गुनी संख्या निकल आती। सेंसेशन के लिए और दूकान चलाने के लिए खून खराबा की नौबत न लाओ नहीं तो चरमपंथ तो बढ़ेगा ही। स्थितियों का सही आकलन करके ही सही दिशा में चला जा सकता है।

Sanjay Tiwari said...

आपने बहुत कुछ कह दिया है. शायद कार्ल मार्क्स सुन पाते.

Dilip K. Pandey said...

Hi Viv,

I strongly believe CPI [CPI(ML) rather...] to be the best party but in THEORIES...fortunately I came across people of that burning zone (Nandigram), and found that it's a game of existance of group of some people or some political insects...as far as Marx is concerned, he has been assasinated and burried in books long back. Something is missing somewhere Vivek, hope you, me and all other thinkers OVERHERE to join hands together for purification, unification, transformation...I am quite positive now COZ you are there...keep the good work going buddy...all the very best!

यशवंत सिंह yashwant singh said...

माफ करियेगा विवेक, मेरी समझ में कुछ नहीं आया। पत्र लेखक भयंकर कनफ्यूज है। पत्र से जाहिर है कि वो सीपीएम का कैडर है। जब पत्र लेखक सीपीएम का ही कामरेड है जो अपनी पार्टी की खिंचाई और सरकार की धुलाई से दुखी है तो इसमें नई बात क्या है। वामपंथ में ढेरों पार्टियां हैं और सबका लक्ष्य भले एक हो लेकिन उसे पाने के तरीके में मतभेद है। इसी मतभेद के चलते वो एक दूसरे की खिंचाई करते हैं लेकिन बड़े मुद्दों पर वो एक साथ हो जाते हैं जो कि जरूरी भी है। जैसे सांप्रदायिकता। कुछ उसी तरह जैसे संघ, विहिप, भाजपा, भाजयुमो...आदि दल संगठन अलग अलग भले होने के दावे करें लेकिन बड़े मुद्दों पर एक हैं। जैसे हिंदुत्व और मुस्लिम विरोध। हां, लेकिन इनके बीच भी लक्ष्य पाने को लेकर मतभेद है और आपस में धुलाई-खिंचाई करते रहते हैं। अगर विहिप का एक बंदा भाजपा को गाली देते हुए भगवान राम को पत्र लिखे और कहे कि ये भाजपा वाले गद्दार हो गए हैं....टाइप.....तो इसमें नई बात क्या है...।
खैर, आप बता सकेंगे कि पत्र लेखक मार्क्स, वामपंथ आदि को जनरलाइज तरीके से पेश कर उनकी धुलाई कर खुद सुख उठाना चाहता है या फिर वाकई वो इस पत्र के जरिए एक गंभीर डिबेट शुरू करना चाहता है। मंशा तो मार्कस और वामपंथ को गरियाकर अहं तुष्ट करने जैसा ही लगता है।
यशवंत

pururava akhilesh said...

इतनी हाय तौबा काहे मचाये हो बबुआ, माकपा को नहीं जानते थे का, ई त बहुते पहिले एक्सपोज़ हो चुकी है.....याद नहीं आ रहा है का... अच्छा त याद दिला देते हैं....कानू सान्याल और चारु मजूमदार को याद करो बाबू....नक्सल आन्दोलन याद करो. ....बबुआ याद करो, इन्हीं तथाकथित वामपंथियों ने किस तरह नयी व्यवस्था का सपना देखने वालो से उनकी आँखे छीनने कि कोशिश कि थी.....अब काहे का सियापा ....लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हाथ में दारु और लिंग के पास कट्टा खोंस कर हिदू धर्म कि रक्षा करने निकले लोंगो को वामपंथियो को गरियाने दिया जाये.......