(Yesterday I posted a new article on this blog. Since its a new blog and we want to inform others about this, I specially askd Mr. Yashwant Singh to view the blog, and let us know his own view on the topics discussing over here. He has been moderating a community blog (http://www.bhadas.blogspot.com)for/ for so many months. its a high TRP blog, and more democratic than others. Mr.Yashwant has made a comment on my Post (which you can see in Comments section). But, here I am posting that article which is written on his own blog in its original form. whatever observations and questions are asked in this post. I will reply later, But before that I want to know, what others (you) think about these observations. We are thankful to Yashwant for diversifying this plateform. Plz have a look and express your views.) Cheers...
Vivek Satya Mitram
वामपंथ और मार्क्स को गरियाने के सुख से सुखी ये साथी??
विवेक सत्य मित्रम के अनुरोध पर मैंने उनके लिखे एक पोस्ट काल मार्क्स के नाम एक कामरेड का खत पर टिप्पणी की है। हालांकि वहां पहले से जितनी भी टिप्पणियां थीं वो सब मार्क्स और वामपंथ को गरियाने से मिले सुख से मुग्ध लोगों की थी। मुझे एक बार लगा, टिप्पणी करना चाहिए या नहीं। लेकिन लगा, अगर विवेक ने अनुरोध किया है तो जरूर करना चाहिए लेकिन बातें साफ-साफ कहूंगा, भले विवेक को बुरा लगे क्योंकि विवेक से मेरा संबंध भी भड़ासी सहजता और सरलता के चलते ही हुआ और हम दोनों चाहते हैं कि बातें जो कही, करी जाएं वो साफ-साफ हों, मुंहदेखी नहीं। तो मैंने वहां जो कमेंट किया है, उसे भड़ास पर भी डाल रहा हूं। मूल पोस्ट पढ़ने के लिए विवेक के बिलकुल नए ब्लाग आफ द रिकार्ड पर जाना होगा। इस ब्लाग के पैदा होने की भी पूरी एक कहानी है लेकिन उसे मैं आफ द रिकार्ड ही रखना चाहूंगा, जब तक कि खुद विवेक न बता दें। विवेक के गुस्से से उपजा ब्लाग है आफ द रिकार्ड। लेकिन मुझे डर यह है कि यह गुस्सा केवल वामपंथ के विरोध का अड्डा ही न बन जाए। मुझे लगता है कि इसका सृजनात्मक इस्तेमाल करना चाहिए। जैसा कि हम लोगों की बातें भी हुई हैं। भोजपुरी भाषा में एक ब्लाग होना चाहिए और वो कम्युनिटी ब्लाग हो जिसमें लोग सिर्फ भोजपुरी में लिखें। इससे शायद हम अपनी बानी और लोक संवेदना को बड़ा योगदान दे पाएंगे। वाम और दक्षिण पर बहस करने के लिए जनरलाइज एप्रोच नहीं होना चाहिए, पढ़ाई-लिखाई के साथ फैक्ट्स आधारित बातें होनी चाहिए। सीपीएम की जो दिक्कत बंगाल में है दरअसल वह एक ट्रेंड है वामपंथ में। ऐसे ट्रेंड से खुद कार्ल मार्क्स भी लड़ते रहे हैं, लेनिन भी लड़ते रहे हैं। रूसी क्रांति के दस्तावेजों को पढ़िए तो पता चलेगा कि किस तरह दर्जनों कम्युनिस्ट पार्टियां थीं जो आपस में विचारधारात्कम रूप से बंटी हुई थी और वो बंटाव नकली नहीं था बल्कि ट्रेंड आधारित और विचार आधारित था। आखिर में लेनिन की बोल्शेविक धारा विजयी बनी जिसने सत्ता का पार्ट होने की बजाय खूनी क्रांति का रास्ता अपनाया। ये सारी बातें पढ़ने पर पता चलेंगी। रूसी क्रांति पर कई किताबें हैं जिसमें कम्युनिस्टों के आपसी मतभेदों का जिक्र है। मुझे भारत में भी कुछ वैसा ही लगता है लेकिन बाजी कौन मारेगा, यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इतना सच है कि सीपीएम का मार्क्सवाद दरअसल क्रांतिकारी मार्क्सवाद है ही नहीं। बातें फिर होंगी, फिलहाल इतना ही....टिप्पणी पढ़िए और मूल पोस्ट पढ़िए....। समझ में आए तो इस कमेंट पर भी कमेंट करिये....जय भड़ास यशवंत