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कहने को हैं पत्रकार
है हमारा विचारों से सरोकार
पर हैं, हम बेबस और लाचार
क्या करें...
प्रोडक्ट जो बन चुका है अखबार
या यूं कहें, पूरे मीडिया जगत को है आधार
पहले भैया एडवरटिजमेंट, फिर देखेंगे समाचार।
editorial की जगह ले ली है aditorial ने
ऐसे में, विचार बन रहा आचार
कहने को हैं पत्रकार
पर हैं, बेबस और लाचार।
सुनता हूं, पहले होनी थी पत्रकारिता
वजह थी, कारण था सामने जो थी परतंत्रता।
कहने को, अब हम आजाद हैं,
स्वतंत्र हैं, उन्मुक्त हैं और भविष्य ही बुनियाद हैछ
पर सोचता हूं, पत्रकारों के लिए स्वतंत्रता शब्द बकवास है
क्योंकि पूरे मीडिया जगत पर उपभोक्तावाद का वास है।
परिमल कुमार
लेखक एनडीटीवी के पत्रकार हैं।
3 comments:
बिल्कुल सही कहा परिमल जी--
पत्रकारों के लिए स्वतंत्रता शब्द बकवास है
क्योंकि पूरे मीडिया जगत पर उपभोक्तावाद का वास है।
बिल्कुल सही बात. वर्ड वेरिफ़िकेशन हटाए,
अच्छा लिखा है।
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