Dear Friends,
I got a chance to watch this...fantastic performance... a must watch.
http://renaissancepr.blogspot.com/2009/02/must-watch.html
Thanks,
Friday, February 27, 2009
Monday, February 9, 2009
ब्लॉगर्स मेनिफेस्टो- लोकसभा 2009
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सारी पार्टियां मेनिफेस्टो बनाने में जुट गई हैं, जिसमें ऐसी-ऐसी बातें होंगी जो सियासी पार्टियों के लिए इस जनम में करना संभव नहीं। फिर से मेनिफेस्टोज में व्यावहारिक कम, भावनात्मक और वोट खिचाऊं बातें ज्यादा होंगी।मुझे लगता है वक्त आ गया है कि जनता की तरफ से भी मेनिफेस्टो जारी किया जाए, जो विभिन्न मंचो से प्रकाशित-प्रसारित हों।
൧. हर पार्टी की एक बिजली- सड़क नीति हो, उस पर उसकी राय हो, समाधान के तरीके हों और उसका वादा हो कि अगले पांच साल में कितने मेगावाट और किलोमीटर वो जोड़ेंगे।
൨. देश में अलग से शिक्षा का बजट हो, जीडीपी का कमसे कम ൬ फीसदी हमें चाहिए। हर दो किलोमीटर पर एक हायरसेकेंडरी स्कूल और हर जिले में एक यूनिवर्सिटी और एक मेडिकल क़ॉलेज।
൩.प्राथमिक स्तर से अनिवार्य अंग्रेजी हो, यूनिवर्सिटी में सिर्फ अंग्रेजी माध्यम हो-इस पर खुलकर बहस हो।
൪. हर साल कमसे कम एक आईआईटी और एक एम्स की स्थापना।
൫. शिक्षकों और सेना के लिए अलग से बेतन आयोग।
൭. विवादस्पद मुद्दों को सुलझाने के लिए पार्टियों की राय का खुलासा हो।
8.डिफेंस बजट को तार्किक किया जाए.
൯. दलित- आदिवासियों और महिलाओं का अलग बजट हो।
൧൦. पर्यावरण के बारे में नीति
൧. हर पार्टी की एक बिजली- सड़क नीति हो, उस पर उसकी राय हो, समाधान के तरीके हों और उसका वादा हो कि अगले पांच साल में कितने मेगावाट और किलोमीटर वो जोड़ेंगे।
൨. देश में अलग से शिक्षा का बजट हो, जीडीपी का कमसे कम ൬ फीसदी हमें चाहिए। हर दो किलोमीटर पर एक हायरसेकेंडरी स्कूल और हर जिले में एक यूनिवर्सिटी और एक मेडिकल क़ॉलेज।
൩.प्राथमिक स्तर से अनिवार्य अंग्रेजी हो, यूनिवर्सिटी में सिर्फ अंग्रेजी माध्यम हो-इस पर खुलकर बहस हो।
൪. हर साल कमसे कम एक आईआईटी और एक एम्स की स्थापना।
൫. शिक्षकों और सेना के लिए अलग से बेतन आयोग।
൭. विवादस्पद मुद्दों को सुलझाने के लिए पार्टियों की राय का खुलासा हो।
8.डिफेंस बजट को तार्किक किया जाए.
൯. दलित- आदिवासियों और महिलाओं का अलग बजट हो।
൧൦. पर्यावरण के बारे में नीति
Monday, February 2, 2009
नीतीश बने पॉलिटिक्स के स्लमडॉग
नीतीश कुमार को सीएनएन-आईबीएन ने पालिटिशियन आफ द ईयर का अवार्ड दिया है। कुछ ही दिन पहले बिहार सरकार को बेहतरीन ई-गवर्नेंस के लिए चुना गया। भारत सरकार ने भी प्राथमिक शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार के लिए बिहार सरकार की तारीफ की थी। उससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास मंत्री भी बिहार सरकार की ताऱीफ कर चुके हैं। जाहिर है नीतीश कुमार के कामकाज की तारीफ करनेवालों में उनके राजनीतिक विरोधी भी कोताही नहीं बरत रहे हैं। ये बात अलग है कि प्रचार के विभिन्न मंचों पर ये खबरें बहुत जगह नहीं बना पाईं है।
नीतीश कुमार को पालिटिशियन आफ द ईयर अवार्ड में शीला दीक्षित से काफी कड़ी टक्कड़ झेलनी पड़ी। लेकिन नीतीश के इन उपलव्धियों को कुछ लोग कई नजरिये से देखते हैं। बिहार जैसे सूबे में जहां विकास के काम कभी ढ़ंग से हुए ही नहीं, ऐसे जगह पर कुछ भी थोड़ा काम किसी नेता को काफी आगे बढ़ा सकता है-इसमें कोई शक नहीं। लेकिन दूसरी तरफ इसका एक सकारात्मक पक्ष ये भी है कि बिहार जैसे कार्य संस्कृति विहीन सूबे को पटरी पर लाना भी कोई आसान काम नहीं है, और इसमें नीतीश को सफलता मिलती नजर आ रही है।
एक बात तो तय है कि बिहार में अब विकास राजनीति के एजेंडे में शामिल हो गया है। लालू यादव हों या रामविलास पासवान सभी विकास को अपना एजेंडा बना रहे हैं। हलांकि ये कहना अभी भी जल्दबाजी है कि ये विकास, वोट में कितना तब्दील हो पाएगा। फिलहाल बिहार में किसी भी दल के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी का फैक्टर नहीं है। नीतीश के लिए ये बात तो सूकून की है ही, लालू यादव के प्रति भी लोगों का पुराना आक्रोश कम हुआ है। ऐसे में सियासी पार्टियां अगले चुनावों में कोई बड़ा फैक्टर नहीं रहेंगी-हां, उम्मीदवारों का बेहतर चयन जरुर चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा। फिलहाल तो नीतीश कुमार के लिए अवार्डों की बरसात जरुर सुकून देनेवाली है।
नीतीश कुमार को पालिटिशियन आफ द ईयर अवार्ड में शीला दीक्षित से काफी कड़ी टक्कड़ झेलनी पड़ी। लेकिन नीतीश के इन उपलव्धियों को कुछ लोग कई नजरिये से देखते हैं। बिहार जैसे सूबे में जहां विकास के काम कभी ढ़ंग से हुए ही नहीं, ऐसे जगह पर कुछ भी थोड़ा काम किसी नेता को काफी आगे बढ़ा सकता है-इसमें कोई शक नहीं। लेकिन दूसरी तरफ इसका एक सकारात्मक पक्ष ये भी है कि बिहार जैसे कार्य संस्कृति विहीन सूबे को पटरी पर लाना भी कोई आसान काम नहीं है, और इसमें नीतीश को सफलता मिलती नजर आ रही है।
एक बात तो तय है कि बिहार में अब विकास राजनीति के एजेंडे में शामिल हो गया है। लालू यादव हों या रामविलास पासवान सभी विकास को अपना एजेंडा बना रहे हैं। हलांकि ये कहना अभी भी जल्दबाजी है कि ये विकास, वोट में कितना तब्दील हो पाएगा। फिलहाल बिहार में किसी भी दल के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी का फैक्टर नहीं है। नीतीश के लिए ये बात तो सूकून की है ही, लालू यादव के प्रति भी लोगों का पुराना आक्रोश कम हुआ है। ऐसे में सियासी पार्टियां अगले चुनावों में कोई बड़ा फैक्टर नहीं रहेंगी-हां, उम्मीदवारों का बेहतर चयन जरुर चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा। फिलहाल तो नीतीश कुमार के लिए अवार्डों की बरसात जरुर सुकून देनेवाली है।
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