Tuesday, September 30, 2008

क्या मीडिया में बिहारवाद चलता है ?

इंडिया न्यूज में बतौर प्रोड्यूसर काम कर रहे सचिन अग्रवाल काफी परेशान हैं। उनकी बेचैनी और परेशानी इस लेख में साफ झलकती है। शायद ऑफिस में प्रतिक्रिया जताने का मौका उन्हें नहीं मिल पाया। लिहाजा वो अपनी बात यहां रख रहे हैं। सचिन अग्रवाल ईटीवी, टोटल टीवी, एस 1 और आजाद न्यूज जैसे जमे जमाए चैनलों में काम कर चुके हैं। अपनी बात बेहद बेबाकी से रखते हैं। जो कुछ वो कह रहे हैं, उससे सहमति असहमति अलग मुद्दा है...पर उनसे सहानुभूति जरुर है।- मॉडरेटर

क्या बिहारी बॉस बिहारी लोगों को सपोर्ट करते हैं......कहा तो ये ही जाता है कि हां करते हैं....मैं भुक्तभोगी हूं भी और नहीं भी....कभी लगता है कि ये होता है कभी लगता नहीं ...आखिर बॉस को भी तो नौकरी करनी है ...मालिक को दे या ना दे बाजार को तो जवाब देना ही पड़ेगा.... अगर वाद चलाएगा तो खुद बर्बाद हो जाएगा...अब वो फिदाईन तो हैं नहीं कि किसी वाद के लिए अपनी जान देदे .....मैं जहां का रहने वाला हूं वहां के लोगों की मदद इस हद तक तो नहीं करूंगा कि मेर ऊपर इल्जाम लगने लगें मुझे जगह जगह जाकर जवाब देना पड़े....मेरा अखिल भारतीय होने की छवि को क्षेत्रीय बना दिया जाए....बॉस भी तो इन चीजों से जूझता होगा....लेकिन फिर भी मन नहीं मानता ...मन में ये हर वक्त चलता रहता है कि बिहार के लोग बिहारियों को सपोर्ट करते हैं...ऐसा न होता तो आज हर जगह हर बड़ी कुर्सी पर यही लोग क्यों बैठे हैं.....कुछ तो है....क्या बिहार से ज्यादातर लोग पलायन करते हैं इसलिए मीडिया में भी ज्यादातर बिहारी है ...क्या बिहार के लोग पढ़ने लिखने वाले ज्यादा होते हैं...एक कारण ये भी है कि बिहार के लोग यूपीएससी के ग्लैमर में जब बिखर जाते हैं और नेता बनने के उनके पास चांस नहीं रह जाते तो ताकत की खोज उन्हे मीडिया में ले आती हो ...हो सकता है .....क्या बिहार के लोग अपने लोगों की मदद करते हैं....अगर करते हैं तो कोई बुराई नहीं...लेकिन मेरा नुकसान करके अगर उनकी मदद करेंगे तो बुराई है ...क्योंकि मैं शायद उनकी जगह होऊं तो ऐसा नहीं करूंगा...तो क्या बॉस अपनी कुर्सी को मजबूत करने के लिए अपने वफादार लोगों को भरने के चक्कर में बिहारवाद में पड़ जाता है....कुर्सी पर जो भी बैठेगा उसे काम करके तो देना होगा वरना नमस्कार होने में टाइम नहीं लगेगा...लेकिन कुर्सी पर बैठने के बाद उसके चारो पाए मजबूत भी करने पड़ते हैं...तो क्या पाए मजबूत करने के चक्कर में अधिकारी काबिलियत की बजाय़ इलाके को तरजीह देने लगते हैं.....मेरा ये मतलब नहीं कि बिहार के लोग प्रतिभाशाली नहीं होते ...हां मेरा मतलब ये जरूर है कि बिहार का हर पत्रकार मुझसे ज्यादा प्रतिभाशली नहीं....मैं जानता हूं मीडिया के कुछ लोगों को जिनके बारे में सुना है कि वो सिर्फ बिहार के लोगों को ही नौकरी देते हैं...उनके साथ काम करने को नहीं मिला....मिल भी गया तो राज ठाकरे तो मैं नहीं बन पाऊंगा.....लेकिन सच जानने ललक जरूर है ...आप लोग मेरी मदद करें......बताइए मैं दिल की सुनूं या दिमाग की ...या कहीं ऐसा है कि दोनो ही एक ही बात बोल रहे हों और मुझे अलग अलग लग रही हों.....दिल कहता है कि मान लो मीडिया ...प्लीज मेरी मदद करें.....

7 comments:

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

सचिन जी, आप क्यों एक फालतू 'वाद' में अपना वक्त और दिमाग बर्बाद कर रहे हैं...अरे जो लोग ठीक से लिख-बोल तो पाते नहीं गुटबाजी का सहारा ऐसे ही लोग लेते हैं....प्रतिभाशाली और मेहनतकश लोगों को क्या कोई कभी रोक पाया है....मीडिया में लाख चापलूसी और क्षेत्रवाद का बोलबाला हो लेकिन जिसको काम आता है...वो अकड़ के भी रहे तो बॉस लोगों को उसे सहना पड़ता है...कोई बॉस अपने सभी नकारे भाई-बंधुओं को भर्ती कर ले या प्रमोशन दे दे...सेलरी बढ़ा दे..लेकिन जब वाकई कोई अहम काम उसके सामने आएगा..तो उसे कम सेलरी वाला ज्यादा योग्य आदमी ही याद आएगा..उसके बिना उसका काम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाएगा...आपके आस-पास इस तरह के कई उदाहरण मिल जाएंगे...इसलिए 'बिहारवाद' जैसी निहायत ही घटिया पर सर फोड़ने का क्या मतलब...जैसा आप ऊपर से मस्तमौला रहते हैं वैसे ही अंदर से भी रहिए...बिहारियों को गुटबाजी करने दीजिए..हम 'भारतीय' हैं और भारतीय बने रहेंगे...रही बात आपके सवाल की तो मेरा सीधा-सा जवाब है हां, मीडिया में प्रचण्ड बिहारवाद है...

sushant jha said...

शायद हां...साथ-साथ गार्डों के पेशे में, मजदूरों में, आईआईटी जाने वालों में और कुछ हद तक आईएएस बनने में भी...नहीं है तो प्रधानमंत्री जैसे पद को हथिहाये में जिसमें सिर्फ यूपीवाद चला है। बाद बांकी आपकी बातों से सहमति है।

jholabharjooth said...

सचिन जी ने अबतक जितना और जहां काम किया है... वहां नौकरी के लिए आप अपनी सीभी में लिखिए कि परचून की दुकान चलाता था... कोई फर्क नहीं पड़ता है... जिस बिहारवाद से भाई त्रस्त हैं... मुझे मालूम है कि जब तब उससे उपकृत ही हुए हैं... वरना योग्यता और क्षमता के बरोसे बैठे होते तो अपने सहर में एसटीडी बूथ चला रहे होते... कुछ और भाई बंधु भी हैं इनके... आजकल इस हाइड्रोफोबिया में अजीब अजीब हरकत कर रहे हैं... वैलै सचिन भाई आदमी अच्छे थे... पता नहीं आजकल क्या हो गया है... अगर ऐसा है तो इस सीन को बदलो यार... किसी लकीर को छोटा करने के लिए उसके सामने बड़ी लकीर खींचनी पड़ती है... लकीर को मिटाने लगोगे तो नहीं होगा ना... हिंदूस्तान में पत्रकारिता का इतिहास ही बिहार-बंगाल के फर्टाइल इंटेलिजेंसिया से हुआ है... पूरा का पूरा उत्तरवैदिक साहित्य तभी रचा गया जब आर्य मगध के पार गए...6 वेदांगों में से 5 का केंद्र बिहार ही रहा... आज भी हंस हो या वागर्थ या कोई अन्य साहित्यिक पत्रिका... सबसे ज्यादा बिहार मैं ही पढ़ी जाती है... दोस्त हीरो होंडा मोटरसाइकिल और मारुति 800 जब आई थी तो सबसे ज्या बिहार में ही बिकी थी... जापानियों ने कोई बिहारवाद नहीं किया था... रही बात यूपीएससी से निराश लोग... मीडिया में आते हैं... तो सचिन भाई उस गोलंबर में जाने के लिए शेर का कलेजा चाहिए... जितने की आज हमतुम नौकरी करते हैं... उतना पैसा घर से मंगा कर राजधानी की सड़कों पर बिखेर देने का जज्बा... बिहारियों में है...तभी तो मुखर्जी नगर और यमुना विहार जैसै इलाकों में कितने परिवार का पेट पल रहा है... सिविल की पढ़ाई अपने आप में इतनी मुकम्मल है कि इससे चूक गए तो फिर से पैदा लेना पड़ेगा... याद रखना हस्तमैथून करने से बच्चा पैदा नहीं होता है...

Unknown said...

सचिन जी पीडा में है। वजह वे बेहतर जानते है, पर बताना नहीं चाहते । वैसे इनका बायोडाटा वजनदार है, पावरफुल है । क्योंकि छोटे से कैरियर में ही ये कई घाट का पानी पी चुके है । वजह वे यही बताएंगे कि उनकी प्रतिभा को समझा नहीं गया, योग्यता के हिसाब से वेतन नहीं मिला, बास चू... था... वगैरह... वगैरह... । बार- बार दुकान बदलने की वजह वे अपने अंदर तलाशने की जहमत नहीं उठाएंगे । तकनीक की समझ उनको होगी, बहुत अच्छी होगी, सबसे अच्छी होगी । पर वे ये भूल जाते हैं कि तकनीक से समझ और प्रतिभा नहीं विकसित होती । यही गड़बड़ी है । वैसे ये भी समझ का ही मामला है और समझ का सीधा रिश्ता ज्ञान और प्रतिभा से होता है । भाई साहब ये समझ नहीं पाए और बिहारियों के पीछे पड़ गए ।
बाल ठाकरे से लेकर शीला दीक्षित तक सब परेशान है इन बिहारियों से । अब अपने ये सचिन भाई भी परेशान हो गये । ये बिहारी होते ही ऐसे है । एकदम चिरकुट ,गन्दे ,बकवास,मूर्ख... और क्या -क्या कहूं इन्हें ? कुछ भी कहने से इनकी परेशानियों का अन्त तो होगा नहीं । ठाकरे और शीला का नहीं हुआ तो इस अदने पत्रकार का कैसे होगा ? लाठी- डंडे से बात तो बनी नहीं है । पर बात बनेगी । एक पत्रकार बिहारी मुसीबतों का मारा है । इसलिए उसकी मदद करना हमारा परम कर्तव्य है । अब लोग जो कहें, सोंचे, पर भई हम तो इनकी मदद अवश्य करेंगे ।
प्रिय सचिन जी, आप मेरे नुस्खों को आजमाइये और बिहारी भूतों को दूर भगाइये । सबसे पहले बिना वक्त गवाएं आज से ही कुछ पढ़ना-लिखना शुरु कर दें । भाषा वगैरह दुरुस्त करें । अपने दिमाग के बंद दरवाजों को खोले । जातिवाद के जंजाल से निकलें । जिस दफ्तर से काम करें वहां ज्यादा तीन- पांच ना करें । प्रभु अवश्य आपका कल्याण करेंगे । आप इतना कष्ट झेल चुके है, इसलिए आपसे बेहतर ये बात और कौन जानता होगा कि 'ब' से बिहारी और 'ब' से ही ब्रेन होता है । इसलिए इन बिहारियों का ब्रेन काफी तेज होता है । है न सचिन जी !

एक बात और । आप तो जानते ही हैं कि ये बिहारी बड़े चालू होते है । इसलिए क्षेत्रवाद ... यू नो न क्षेत्रवाद ... क्षेत्रवाद बोले तो यूपीवाद(जो सहारा, जागरण और अमर उजाला में होता है), पहाड़वाद (जो दैनिक हिंदुस्तान में होता है) ... आदि... आदि । इसे बिहारियों ने बाकियों के लिए छोडा दिया है । बिहारी बिहारवाद नहीं,जातिवाद करते है। जातिवाद और क्षेत्रवाद में बड़ा फर्क है । जातिवाद मसलन,लालावाद,बनियावाद,पंडितवाद इत्यादि । खास तौर से मीडिया में जातिवाद का बोलबाला है । दैनिक हिंदुस्तान में क्या हो रहा है ? हर कही यही हो रहा है । अपनी जाति का हो और साथ ही क्षेत्र का तो सोने पे सुहागा जैसा मामला जमता है । हर वाद दूसरे वाद को करना चाहता है बर्बाद । सचिन जी आपका मामला भी ऐसा ही है । अब आपको क्या बताऊं आपका तो 'ब' से ही पंगा है।
.नागरिक

अतुल राय said...

ये मेरे विचार हैं अन्यथा नहीं लीजिएगा...सबको अपनी बात रखने की छूट है.... http://renukoot.blogspot.com/

Unknown said...

sachin bhaiya,
aap to aise na the. aap to sentimental hone wale admi nahi najar aate the, apke dimag me to bas pa... hi ghumta rahta tha phir kyun in chakkar me pad gaye. dont be frustated yaar. bihar aur UP ya dusre states ki patrakarita ko dekh lijiye antar samajh me aa jayega. bihar me kisi patrakar ke pass sarkari makan nahi hai, na hi kisi ko vivekadhin fund se noto ki gaddi mili hai. Bihar ka shayad ki koi reporter mulayam, mayawati ya kalyan shingh jaise neta ke samne dum hilata najar aayega. Bura mat mane lekin sach yahi hai ki desh me jin logo ne patrakarita jo jinsa rakha hai unme jyadatar bihari hi hain. kam kijiye aapka kaam sab pe bhari padega.
vinod

Anonymous said...

Mr.Sachin ...
i read your blog ...
biharwad ..par apne bahut kuch keh gaye ..par India k kis state mein yeh nahi hota ...MAHARSTRA KO aap bhul nahi sakte ..aur bhi baaki k states ka yahi haal hai ..I am not from Bihar,I am purly From UP..par kya Inn bato se aap kuch change kar denge ..aap mujhe sirf ek baat batiye ..KYA BIHAR YA UP WAALE DIL K BURE HOTE ..Kitni baar iss state k logo ne aapse batmiji ki hai ..
sochiyegaa iss baat par ..
hume ek dusre ko prmote karna hai na ki demote ..aap media me hai ..aapki toh line hi aisi hai ki zyaada din tak koi burai ko prmote nahi kar sakta ..chahe koi sifarish se aaye ya kisi aur tarike se..laksya ek hi hai .."he is for society "
aap kisi bhi state k ho ...
par aapki qoulities ..aisi hone chahiye ki log apne aap ko badlne par majboor ho jaye ..