Monday, January 26, 2009

मैथिल ब्राह्मण संस्कार

ब्राह्मण हमेशा सँ संस्कारक लेल विख्यात रहल अछि। ओना ई बात अलग अहि जे आई ब्राह्मण अपन संस्कार केँ बिसरि रहल छथि। जाति-प्रथा में ब्राह्मण कें सबसँ श्रेष्ठ मानल गेल अहि जाहि चलते हुनकर कर्तव्य होईत छनि जे ओ अपन ज्ञान आ शास्त्रसम्मत कर्म सँ समाजक मार्ग दर्शन करैत रहथि। ब्राह्मणक किछु प्रमुख संस्कारक बारे मे एतए बतएबाक प्रयास क’ रहल छी...

छठिहार: ब्राह्मणक संस्कारक पहिल शुरुआत छठिहार दिन सँ होईत अछि। छठिहार बच्चा के जन्मक छठम दिन मनाओल जाइत अछि। एहि दिन सांझक समय सति भगवती के सामने अरिपण द विशेष पूजा-पाठ कएल जाईत अछि। एहि अवसर पर मां आ बच्चा के पीयर कपड़ा विशेष तौर पर पहिराओल जाइत अछि आ ओकर बढ़िया संस्कारक कामना कएल जाइत अछि। एहि प्रथा मे महिले टा हिस्सा लैत छथि। छठिहार में प्रयुक्त होबए वला सामग्री: कागत, लाल रोसनाई, पुरहर पाटिल, बियैन, दीप, कजरौटा, शाही कांट, चक्कु, छूरा आ लावा।

नामकरण: जन्मक एगारहम वा बारहम दिन बच्चा केर नामकरण कएल जाइत अछि। एहि अवसर पर पंच देवता, विष्णु, नवग्रह आ पार्थिव शिवलिंग के पूजा विधि विधानक संग कएल जाइत अछि। एकर बाद बच्चा के राशि के हिसाब सँ कोनो उपयुक्त नाम देल जाईत अछि। बच्चा आ मां नबका कपड़ा पहिर भगवानक पूजा-अर्चना करैत छथि। एकर बाद दुरबा पातक डांट के मौध में डुबा बच्चाक ठोर पर नाम लिखल जाईत अछि। नब वस्त्र अक्सरहां बच्चा के मात्रिक सं अबैत अछि। ओना ई कोनो जरूरी नै। अन्नपराशन: अगर बेटा हो त छह सं आठ महिना के बीच आ बेटी हो तो सात सं नौ महिना के बीच कोनो शुभ मुहुर्त मे बच्चा के नबका कपड़ा पहिरा घरक कोनो बुजुर्ग महिला इ विधि करैत छथि। एहि विधिक तहत बच्चा के पहिलुक बेर अन्न खुआओल जाइत अछि। एहि अन्न के तहत मुख्य रूप सँ बच्चा के पायस आ मिठाई खुऔबाक प्रथा अछि। कतेक ठाम इ विधि बच्चा के मामाक द्वारा कयल जाईत अछि। कहल जाईत अछि जे मामा चांदी के बाटी मे बच्चा के पायस खुआबैत छथि। ओना मामाक सामथ्र्य गुने बाटी कोनो आरो चीज के भए सकैत अछि। एहि बारे मे एकटा धारणा ईहो अछि जे अगर इ विधि नै कएल जाइत छैक त बच्चा तोतराय लागैत अछि।

मुड़न: मुड़न अक्सरहां एक सं पांच सालक बीच मे कोनो शुभ मुहुर्त पर कएल जाइत अछि। एहि अवसर पर बच्चा के केस हजाम द्वारा कैंची सँ काटल जाइत अछि जकरा घरक कोनो बुजुर्ग महिला बच्चाक पाछू बैसि अपना आंचर में रखैत छथि। केस कटला के बाद बच्चा के नाहाओल जाइत अछि आ फेर नबका पकड़ा पहिरा दुर्बाछत देल जाइत अछि। एकर बाद बच्चा पहिने भगवती के प्रणाम करैत अछि आ तकर बाद सब केँ पैर छूबि आशीर्वाद लैत अछि। एहि अवसर पर सांझ में भोज-भात आ मिठाई सेहो बांटल जाईत अछि। कतेक ठाम मुड़न पर बलि प्रथाक सेहो प्रचलन अछि जकरा प्रायः जगमुड़न कहल जाईत अछि। सांझ मे केस के बंसबिट्टी या फेर कोनो पवित्र नदी में भंसाओल जाइत अछि। मुड़नक अवसर पर कतेक ठाम बच्चा के कान सेहो छेदल जाईत अछि। बच्चा के कान सोनाक कुंडल सं छेदल जाइत अछि। ओना ई कोनो जरूरी नै कि कुंडल सोने के होमए। हालांकि ई प्रथा कतेक ठाम उपनयन में सेहो कयल जाईत अछि।

अक्षारंभ: प्रायः तीन सँ पांच सालक बीच में कहियो बच्चाक शिक्षारंभ कएल जाईत अछि। हालांकि ई बिधि कतेक ठाम मुड़नेक दिन क’ लेल जाईत अछि। बच्चा के हाथ में चैक पकड़ौबाक शुरुआत आचार्य भोरका उखराहा मे करैत छथि। एहि अवसर पर पंच देवता, कुल देवता, लक्ष्मी-गणेश, सरस्वती, विष्णु, महादेव और ब्रह्मा केेर पूजा कएल जाईत अछि। एकटा साबूत केराक पात पर अरिपण द’ पांच किलो अरबा चाउर ओहि पर पसारल जाईत अछि। एकर बाद आचार्य बच्चा के अपना कोरा मे ल’ बच्चा के दहिना हाथ मे चैक पकड़ा ओहि चावल पर ओम नमः शिवाय लिखबावैत छथि। एकर बाद एहि चावल के पीयर कपड़ा सँ झांपि देल जाईत अछि। चाउर के सांझ में उठा लेल जाईत अछि। ओना बहुत केयो ई बिधि सरस्वती पूजा के दिन क’ लैत छथि। सरस्वती के विद्या के देवी मानल गेल अहि आ लोक एहि दिन के एहि कार्यक लेल विशेष शुभ मानैत छथि।

उपनयन: कहल जाईत अछि जे उपयनक बादे ब्राह्मणत्वक संस्कार लोक मे अबैत अछि। एहि दिन सँ बच्चा के ब्रह्मक ज्ञान होईत अछि आ ओ अपन संस्कारक प्रति सजग होईत अछि। उपनयनक लेल ओना त’ उम्रक कोनो सीमा नहि अछि मुदा कहल जाईत अछि जे जँ पांच सालक भीतर भ’ जए तं ई विशेष उत्तम। उपनयनक विधि विवाहो सँ कहिं भाड़ी होईत अछि। उपनयनक विधि के शुरुआत उद्योग सँ होईत अछि। एकर बाद मैट मंगल, मरब ठट्ठी, चरखकट्टी, कुमरम, मात्रिका पूजा, अभ्युदयक श्रद्धा, चूड़ाकर्ण, उपनयन, वेदारंभ, समाबर्तन आ उपनयनक चारिम दिन रातिम होईत अछि। रातिम दिन सत्यनारायण भगवानक पूजा क’ उपनयनक विधि-विधानक समाप्ति कएल जाईत अछि। उपनयनो मे कतेक ठाम बलि प्रदानक प्रथा अछि।

विवाह: कहल जाईत अछि जे विवाहक बादे मानव जन्म के पूर्ण मानल जाईत अछि वरना जन्म अधूरा अछि। मैथिल विवाहक विधि अछि - सिद्धांत, कुमरम, लाबा भुजाई, आज्ञा डाला, मात्रिका पूजा वा अभ्युदयक श्रद्धा, आम-मौह विवाह, पैर धोआई, परिछन, धोबिनयां सँ सोहाग, नैना-जोगिन, कन्यादान, बिवाह, सिंदुरदान, चतुर्थी आ फेर दुईरांगमन। ओना कतेक ठाम मैथिल विवाह मे कुमरमक प्रथा नहीं अछि। एतबे नहि कतेक ठाम मात्रिका पूजा बरियातिक एलाक बाद होईत अछि तँ कतेक ठाम पहिने भ’ जाईत अछि।

मरण: संस्कारक अंतिम चरम थिक मरण। ताहि चलते एकरा अंतिम संस्कार सेहो कहल जाईत अछि।

Tuesday, January 20, 2009

प्रेम के बारे में कुछ विचार

16, 30 और 48 साल का प्यार खतरनाक होता है !
बुद्धिजीवी लड़की से प्रेम तो और भी खतरनाक होता है !
बुद्धिजीवी लड़के मांसल लड़कियां चाहते हैं !
ज्यादा दिमागदार पुरुष कई-कई प्रेम करते हैं। उनका मानना है कि उनमें बहुत उर्जा है जिसे एक महिला नहीं संभाल सकती !
(सदी के सबसे जीनियस का खिताब पाए बर्टेंन्ड रसेल ने भी शायद एकबार कहा था कि दुनिया में बुद्धिमानों की कमी है-इसलिए उनकी जिम्मेदारी है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं से प्रेम कर ज्यादा से ज्यादा बुद्धिमान पैदा करें।)
कभी-कभी बुद्धिजीवी पुरुष एक ही साथ समर्पित और अपने से उम्र में कम लड़की चाहते हैं तो साथ ही साथ एक बुद्धिजीवी लड़की भी।
कुछ काबिल लोगों का मानना है कि लड़की की आंख और आवाज खूबसूरत नहीं है तो वो ज्यादा देर तक आकर्षित नहीं कर पाएगी !!
आध्यात्मिक प्रेम दूसरे ग्रह पर पाया जाता है। कृपया आध्यात्मिक प्रेमीगण इस कथन को अपने अपमान के तौर पर मत लें।
महिलाओं के सामने ज्यादातर पुरुषों की शराफत उसे पटाने का ही एक तरीका होता है।
एक हालिया शोध कहता है प्रेम में पड़े हुए आदमी की कार्यक्षमता और खूबसूरती बढ़ जाती है।
दोस्तों में एक मजाक प्रचलित है कि जो एक लड़की नहीं पटा पाया वो कारपोरेट जगत को खाक पटाएगा। यानी लड़की पटाने का आपके आत्मविश्वास से गहरा नाता दिखाया गया है।
(हलांकि ये हर हाल में आवश्यक नहीं कि आप प्रेम में पड़ गए तो कारपोरेट जगत में भी सफल ही होंगे। एक अंतर्मुखी और तीन-पांच न जाननेवाला व्यक्ति भी प्रेम में पड़ सकता है। लेकिन कारपोरेट जगत में....हरि.. हरि...)
नोट- उपर्युक्त विवरणों के आधार कुछ अपने अनुभव हैं, तो कुछ मित्रों के। इन विवरणों में सार्वभौम सत्य का दावा नहीं किया गया है।)

Monday, January 19, 2009

अरे भइया, कहां चांदनी चौक, कहां चाइना, इहां तो खाली जोकरई और कुंगफू

हम गए चांदनी चौक से चाइना, शुरुआत में तो लगा कि पहुंचिए जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे पता चला...कि भइया कहां चांदनी चौक है, अउर कहां चाइना, मुझे तो केवल दीपिका पादुकोण की खूबसूरती, अक्षय की जोकरई और कुंगफू ही नजर आया हर मिनट। मैं परसों गया था चांदनी चौक टू चाइना देखने, देखने से पहले ही अखबारों और वेबसाइटों में पढ़ा कि औसत दर्जे की है, बहुत बकवास है, महानिराशाजनक है। लेकिन प्रोमो देखकर गाने सुनकर फिल्म देखने का मोह नहीं छोड़ पाया। लेकिन फिल्म शुरू होते ही जैसे क्रिटिक्स की क्रिटिक याद आने लगी। अक्षय के पिछवाड़े पर मिथुन की लात पड़ना और उसके बाद सिद्दू बने अक्षय का हवा में उड़ते जाना,फिर वापस आकर जमीन पर गिरना। मिथुन की एक और लात और अक्षय फिर हवा में....कुछ मिनटों तक तो यही चलता रहा। भई अगर यही कॉमेडी है तो रियल कैरेक्टर क्यों चुनते हो भई, कार्टून फिल्म बना दो, ज्यादा हंसी आएगी। यहां हंसी आई तो समझ में आता है, लेकिन हंसी वहां भी आ गई जब फिल्म के विलेन होजो ने अपनी टोपी के जलवे दिखाए। जनाब, ऐसी टोपी हम सबके पास होनी चाहिए। जिसमें इतनी तेज धार हो, और भगवान श्रीकृष्ण के चक्र की तरह वो दुश्मन की गर्दन काटकर वापस आपके सिर पर आकर सवार हो जाए। इस टोपी ने तो हद तब कर दी जब कुंगफू सीख चुके सिद्दू ने उस टोपी से लू शेन की मूर्ति ही काट डाली। होजो की खासियत ये जादुई टोपी हो तब तो कुछ हजम हो जाता, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। होजो चीन का इतना बड़ा बड़ा गैंगस्टर है, लेकिन उसके गुर्गे गोली बंदूक नहीं चलाते, बल्कि खंजर, दांती, या चाकू से ही लड़ते हैं, लगता है उसने इन सब चीजों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है, ताकि कोई उसकी टोपी गोली से न उड़ा दे। होजो की टोपी का शिकार होते हैं सिद्दू के दादा मिथुन दा। सिद्दू बदला लेने के लिए कुंगफू सीखता है। ये कुंगफू कोई आम कुंगफू नहीं है जनाब। एक से एक शॉट्स और मूव्स हैं इसके। इस कुंगफू से सिद्दू पल भर में तूफान भी खड़ा कर देता है, इसका नाम है कॉस्मिक किक। बस एक फ्लाइंग किक सीने पर और उसके बाद आंख बंद कर कांसंट्रेट किया और आस-पास समुद्र में उठ गया बवंडर। जिसमें न तो सिद्दू उड़ा, न उसका दोस्त और न उसका कुंगफू गुरू। बस उड़ गया तो होजो का बेटा, जैसे सबसे लूज शंटिंग उसी की हो, बाकी सब तो पत्थर के बने हों। इन सबके बीच अच्छा हुआ कि सखी और सूजी की ठूंसी हुई कहानी की बदौलत दीपिका पादुकोण आती रहीं, वरना अक्षय की जोकरई से ९० के दशक की फिल्में याद आने लगतीं। पूरी फिल्म में बस एक चीज दिखी और वो थी कुंगफू की महानता। अगर आपको कुंगफू आती है तो आप बड़े से बड़े गैंगस्टर को भी नेस्तनाबूद कर सकते हैं।

Friday, January 16, 2009

जिन्न को बोतल में बंद करना नामुमकिन है नेताजी...

जिस देश को बर्बाद करने का ठेका नेताओं ने ले लिया हो, वहां अपनी गलती का ठीकरा मीडिया पर थोपना कितना आसान है-इसका ज्वलंत उदाहरण है मीडिया रेगुलेशन का प्रस्तावित बिल। वो तमाम खद्दरधारी जिनके माथे पर न जाने कितने हत्याओं, आत्महत्याओं, किसान हत्याओं और घोटालों का आरोप लगा हुआ है-वे ही आज मीडिया को संयमित होने की सलाह दे रहे हैं। कितना आसान था प्रिंट का जमाना जब कोई भी लालू या आडवाणी आपके रिपोर्ट को तोड़-मोरोड़ कर पेश किया गया बता देता था-लेकिन मजे की बात देखिए मीडिया को लगाम लगाने की बात पर भगवा और हरा दोनों ही एक हो गया है।

उन्हे खुंदक इस बात की नहीं है कि मुम्बई हमलों का फुटेज क्यों दिखाया गया, खुंदक तो इस बात की है कि उनके बिरादरी के कई स्वनामधन्यों को अतीत में घूस लेते हुए सरेआम नंगा क्यों किया गया। माना कि जनता का एक तबका हमसे इसलिए नाराज है कि हमने कुछ दिन भूत-प्रेत और संपेरों का बीन भी दिखाया था-लेकिन इस बात की आलोचना का हक उन नेताओं को कैसे मिल गया जो दिन रात तांत्रिकों और साधुओं के आशीर्वादों के सहारे चुनाव जीतना चाहते हैं ? ये नेता अपनी निजी जिंदगी में इतने जन-विरोधी हैं जितना इस मुल्क का ब्यूरोक्रेट भी नहीं है। हमें ये याद दिलाने की कोई जरुरत नहीं कि दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय और विशाल संसाधनों से लैश संस्थान की नेताओं ने क्या दुर्गति कर रखी है।

दरअसल सरकार तो मीडिया को खुली प्रतिस्पर्धा के लिए खोलना ही नहीं चाहती थी, भला हो 90 के दशक का,जब देश में गठबंधन सरकारें बनने लगी और लालकिला किसी की बपौती नहीं रहा। अब जब एक बार जिन्न बोतल से बाहर आ ही गया है तो इन नेताओं के बाप का दिन नहीं है कि इसे फिर से अपनी बंदरिया बना लें। अभी तो कुछ नहीं हुआ है, एफएम रेडियो में जरा न्यूज आने दीजिए-नेताओं की हालात तो और खराब होने वाली है-रही सही कसर गांवो तक इंटरनेट की पहुंच खत्म कर देगी। दरअसल ये बौखलाहट दिन से दिन जागरुक होते जाते लोगों के खिलाफ है-टीवी न्यूज मीडिया के खिलाफ नही।

नेताओं को लगता है कि अब भ्रष्ट पैसों से बढ़े तोंद को कैमरे से छिपाना अब आसान नहीं है-इसलिए मीडिया को रेगुलेट करने का नायाब बहाना ढ़ूढ़ा गया है। लेकिन इन खद्दरधारियो को ये नहीं पता कि जनता हमारी आलोचना तो करती है-लेकिन वे इन नेताओं से मुहब्बत भी नहीं करती। इस मुल्क का पोलिटिकल सिस्टम आवाम कि चिंताओं को समझने में नाकाम साबित हुआ है और जनता अभी भी अपने आक्रोश और अपनी समस्याओं का अक्श मीडिया में ही तलाशती है-और वो हमारी आलोचना इसलिए करती है कि उसे लगता है हम राह से भटक रहे हैं।

Wednesday, January 14, 2009

पत्रकारिता पर शिकंजा .....

दोस्तों ...लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को सरकार की टेढी नजर लगनी शुरू हो गई है ........सरकार की नई नीति में अब न्यूज़ चैनल वालो को किसी प्रसारण के पहले उनकी अनुमति लेनी पड़ेगी । कोई ख़बर दिखाने के पहले सम्बंधित जिलाधिकारी को दिखाना पड़ेगा फ़िर उसको दिखाना पड़ेगा । सरकारी तंत्र के लचर रवैये को देखते हुए किसी ख़बर को तुंरत दिखा पाना .....आसमान से तारे तोड़ लाने के बराबर होगा । क्या ये सही है ?????जायज है ???
नही ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में संवैधानिक रूप से ये अधिकार मिला हुआ है की हर कोई अपनी बात कह सकता है । अनुच्छेद १९ (1) इस बात का गवाह है कि भारत का हर एक नागरिक अपनी बात को बेखौफ होकर व्यक्त कर सकता है । लेकिन मुंबई हमलो के बाद प्रसारण मंत्रालय को लगा कि प्राइवेट न्यूज़ चैनल टी आर पी को लेकर कुछ ज्यादा ही दिखा रहे है । यहाँ हम ये भी बता देना चाहते है कि ख़ुद सरकारी मिडिया भी मुंबई हमले की कवरेज़ कर रही थी ।
कई मामलो में खबरिया चैनल बहुत ही बढ़िया है, जैसे एन एस जी के जवानो की जांबाजी को दिखाना या फ़िर हमलो की हर बारीक़ से बारीक़ जानकारिया दिखाना ।इसी बीच में आंतकवादी टीवी देख कर जवानो के हर कदम को जानने लगे तो यही न्यूज़ चैनल लाइव प्रसारण बंद कर दिए ।
चाहे कड़ी धुप हो या मुसलाधार बारिस हमारे पत्रकार बंधू कैमरे की नजर से सब कुछ हम लोगो के बीच पहुचाते है । हाँ ये सही है की बाजारवादी युग में टी आर पी के मायने थोड़ा बदल गए है फ़िर भी अभी जो स्थिति है वो सरकारी तंत्र से बहुत ही बढ़िया है ।
हालाँकि हमारे संपादक लोग इसका विरोध कर रहे है और प्रधानमंत्री जी से भी मिलकर इस बारे में बात करेंगे ....देखते है क्या होता है ।